तीर्थराज प्रयाग में उतर आया है स्वर्ग, ऋषि मुनि महात्मा साधु संन्यासियों का आगमन, आधुनिक कलयुग में हो रहा है सतयुग का आभास

प्रयागराज।

तीर्थराज प्रयाग में उतर आया है स्वर्ग, ऋषि मुनि महात्मा साधु संन्यासियों का आगमन, आधुनिक कलयुग में सतयुग का आभास पुण्यनगरी प्रयागराज में हो रहा है। लोगों में श्रद्धा भक्ति लबालब छलक रही है इसी का एक उदाहरण है कि एक गांव से आई महिला अपनी बहन को वीडियो कॉल पर संगम दिखा रही है और कह रही है – “ये देखो गंगा मईया, जल्दी से जय गंगा मईया बोलो और वहीं घर में डुबकी मार लो।” बहन वहीं से मां गंगा को अपनी आँखों में और हृदय में बसाकर प्रणाम करती है और यहां ये महिला संगम किनारे की रेती को माथे से लगा लेती है।

अखाड़ों से लाउडस्पीकर पर आवाज आ रही है। श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि…। किसी शिविर में कथा बांची जा रही है। कहीं अर्जुन की कहानी सुना रहे हैं, कोई गीता का सार पढ़ रहा है। और इसी बीच संत करगिल युद्ध और सैनिकों का भी जिक्र कर देते हैं।

ये संतों का उत्सव है। चारों ओर संत ही नजर आ रहे हैं। कोई ब्रह्मचारी, कोई कोतवाल, कोई पुजारी, महंत, श्रीमहंत तो कोई पदाधिकारी और महामंडलेश्वर। कोई भगवा, कोई गेरुआ, कोई सफेद तो कोई काली पोषाक पहने। कोई गुरु के आगे दंडवत है, कोई साष्टांग है, कोई टखने तक झुकता है, तो कोई सिर्फ गुरु के पैरों के आगे की जमीन छू लेता है। किसी की आंखों में आंसू हैं, तो कोई आंखें भींचे मंत्र बुदबुदा रहा है।

हर बार की तरह इस बार भी कुंभ में कई ब्रह्मचारी साधु बन जाएंगे, कई महामंडलेश्वर चुने जाएंगे और कई पहली बार संन्यासियों वाला संस्कार पाएंगे। निरंजनी अखाड़े की एक-एक मढ़ी पर जाकर 55 साल का एक आदमी हर साधु को …नमो नारायण महाराज जी कह रहा है। वो कहता है, इस बार गुरुमहाराज ने कहा है कि वो मुझे भी नागा बना लेंगे।  साधु बाबा उसे कहते हैं, भक्ति करो, तपस्या करो, चिंता ना करो। हर अखाड़े में अलग रौनक है।

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