बाबासाहेब आंबेडकर ने 370 का प्रारूप बनाने से स्पष्ट मना कर दिया था।

 *डॉ. आंबेडकर जैसे महान विद्वान ने आर्टिकल-370 का ड्राफ्ट बनाने से किया था इनकार*
  • तब आंबेडकर ने कहा था, आप सारी सुविधाएं भारत से लेंगे और चाहेंगे कि आपका विशेष संविधान भी हो, जो अन्य भारतीय राज्यों से अलग हो तो ये भारतीय नागरिकों के साथ भेदभाव होगा जो गलत होने के साथ-साथ अन्याय भी होगा।
26 अक्टूबर, 1947 को जम्मू में जब महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार के साथ विलय की संधि पर हस्ताक्षर किये तो उस विलय में कहीं ये जिक्र नहीं था कि राज्य को विशेष दर्जा (जिसे बाद में धारा 370 के रूप में लागू किया गया) देने के लिए किसी खास कानून की व्यवस्था की जाएगी। अलबत्ता राज्य की स्वायत्तता बरकरार रखे जाने की बात जरूर थी। तब राज्य के अंतरिम प्रधानमंत्री बनाए गए शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि राज्य को खास तरीके का विशेष दर्जा दिए जाने का प्रावधान संविधान में किया जाए, लेकिन भीमराव आंबेडकर ने न केवल इसका प्रारूप बनाने से स्पष्ट मना कर दिया था वरन् ये भी कहा था कि ऐसा प्रावधान किसी देश के लिए ठीक नहीं होगा।
ओर वही हुआ भी। ना तो ये भारत के हित में  रहा और ना हि कश्मरियों का कोई भला हो पाया। हां कश्मीर में अराजकतावादियों, अलगाववादियों की चांदी कटती रही गरीब जनता और भारत के वीर सपूत मरते रहे।
 मार्च, 1948 को शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए।  उन्होंने कई सदस्यों के साथ शपथ ली। प्रधानमंत्री बनने के बाद शेख अब्दुल्ला ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, हमने भारत के साथ काम करने और जीने-मरने का फैसला किया है, लेकिन वो शुरू से ही कश्मीरियों के लिए स्वायत्तता और अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप शासन करने का सपना देख रहे थे। क्योंकि दूसरे तमाम रजवाड़ों की तरह कश्मीर का भारत के साथ विलय पत्र शर्तहीन नहीं था।
भारत की संविधान सभा में जम्मू और कश्मीर के लिए चार सीटें रखी गईं। 16 जून, 1949 को शेख अब्दुल्ला, मिर्जा मोहम्मद, अफजल बेग, मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी और मोतीराम बागड़ा संविधान सभा में शामिल हुए। पंडित जवाहर लाल नेहरू की सलाह पर शेख अब्दुल्ला संविधान निर्माता समिति के चेयरमैन डॉ. भीमराव आंबेडकर के पास इस संविधान का मसौदा तैयार करने का अनुरोध लेकर गए।

आंबेडकर ने स्पष्ट मना कर दिया था । 

ब्लॉग लॉ कॉर्नर के अनुसार, 1949 में प्रधानमंत्री ने कश्मीरी लीडर शेख अब्दुल्ला से कहा कि वह बी आर आंबेडकर से सलाह करके कश्मीर के लिहाज से एक संविधान बनाएं। तब डॉ. आंबेडकर भारत के पहले कानून मंत्री थे। संंविधान मसौदा कमेटी के चेयरमैन थे। उन्होंने अनुच्‍छेद-370 का ड्राफ्ट बनाने से स्पष्ट मना कर दिया, क्योंकि उन्हें लगता था कि इसकी बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है।
अंबेडकर को लगता था कि अगर जम्मू – कश्मीर राज्य के लिए अलग कानून बनता है तो भविष्य में कई समस्याएं पैदा करेगा, जिन्हें सुलझाना और उनसे निपट पाने में हमारी आने वाली पीढ़ी को बहुत मुश्किल हो जाएगा।
डॉ. आंबेडकर ने शेख से मुलाकात के दौरान कहा, आप चाहते हैं कि भारत आपकी सीमाओं की रक्षा करे, आपकी सड़कें बनवाए, आपको खाना, अनाज पहुंचाए, फिर तो उसे वही स्टेटस मिलना चाहिए जो देश के दूसरे राज्यों का है। इसके उलट आप चाहते हैं कि भारत सरकार के पास आपके राज्य में सीमित अधिकार रहें और भारतीय लोगों के पास कश्मीर में कोई अधिकार नहीं रहे। अगर आप इस प्रस्ताव पर मेरी मंजूरी चाहते हैं तो मैं कहूंगा कि ये भारत के हितों के विरुद्ध है। एक भारतीय कानून मंत्री के हिसाब से मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा।
तब नेहरू के कहने पर आयंगर ने ड्राफ्ट बनाया।
जब अंबेडकर ने इसको सिरे से खारिज कर दिया, तब शेख अब्दुल्ला ने नेहरू को फिर एप्रोच किया। तब प्रधानमंत्री के निर्देश पर आयंगर ने इसे तैयार किया। वो उस समय संविधान प्रारूप समिति के सदस्य थे। वो राज्यसभा सदस्य तो थे ही, साथ ही महाराजा हरि सिंह के पूर्व दीवान भी रह चुके थे। साथ ही जम्मू-कश्मीर विलय में भी उनकी भूमिका खासी अहम थी। इसके बाद ही नेहरू ने उन्हें कैबिनेट में शामिल भी किया था।
हालांकि, इसमें खासी अड़चनें आईं। कश्मीर के भारत से संबंधों को लेकर अनुच्‍छेद-370 (प्रारूप में अनुच्‍छेद-306 ए) को लेकर गोपालस्वामी आयंगर, पटेल, शेख अब्दुल्ला और उनके साथियों के बीच तीखी बहस चलीं। शेख अब्दुल्ला के साथ आयंगर की जो बातचीत होती थी वो बहुत उत्साह पैदा करने वाली नहीं थी। आयंगर ने एक खत में इस बारे में भी लिखा। उन्होंने कहा, “मुझसे उम्मीद की जा रही है कि मैं दिक्कतों के लिए एक समाधान पेश करूं.” दरअसल आयंगर भी इसको उस तरह बनाने के लिए तैयार नहीं थे, जैसा शेख अब्दुल्ला चाहते थे।
चार सीटे दी गयी जम्मु व कश्मीर को
भारत की संविधान सभा में जम्मू और कश्मीर के लिए चार सीटें रखी गईं. 16 जून, 1949 को शेख अब्दुल्ला, मिर्जा मोहम्मद, अफजल बेग, मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी और मोतीराम बागड़ा संविधान सभा में शामिल हुए. पंडित जवाहर लाल नेहरू की सलाह पर शेख अब्दुल्ला संविधान निर्माता समिति के चेयरमैन डॉ. भीमराव आंबेडकर के पास इस संविधान का मसौदा तैयार करने का अनुरोध लेकर गए।

आंबेडकर ने कर दिया था मना 

आंबेडकर को लगता था कि कश्मीर के लिए अलग विशेष संविधान की व्यवस्था कहीं ना कहीं भारत के अन्य नागरिकों और देश के लिए अन्याय होगा।
आंबेडकर को लगता था कि अगर जम्मू – कश्मीर राज्य के लिए अलग कानून बनता है तो भविष्य में कई समस्याएं पैदा करेगा, जिन्हें सुलझाना और उनसे निपट पाना मुश्किल हो जाएगा।
डॉ. आंबेडकर ने शेख से मुलाकात के दौरान कहा, “आप चाहते हैं कि भारत आपकी सीमाओं की रक्षा करे, आपकी सड़कें बनवाए, आपको खाना, अनाज पहुंचाए फिर तो उसे वही स्टेटस मिलना चाहिए जो देश के दूसरे राज्यों का है. इसके उलट आप चाहते हैं कि भारत सरकार के पास आपके राज्य में सीमित अधिकार रहें और भारतीय लोगों के पास कश्मीर में कोई अधिकार नहीं रहे. अगर आप इस प्रस्ताव पर मेरी मंजूरी चाहते हैं तो मैं कहूंगा कि ये भारत के हितों के खिलाफ है. एक भारतीय कानून मंत्री के हिसाब से मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा.”
तब नेहरू के कहने पर आयंगर ने ड्राफ्ट बनाया
जब आंबेडकर ने इसको सिरे से खारिज कर दिया, तब शेख अब्दुल्ला ने नेहरू को फिर एप्रोच किया. तब प्रधानमंत्री के निर्देश पर आयंगर ने इसे तैयार किया. वो उस समय संविधान मसौदा समिति के सदस्य थे. वो राज्यसभा सदस्य तो थे ही, साथ ही महाराजा हरि सिंह के पूर्व दीवान भी रह चुके थे। साथ ही जम्मू-कश्मीर विलय में भी उनकी भूमिका खासी अहम थी. इसके बाद ही नेहरू ने उन्हें कैबिनेट में शामिल भी किया था.
हालांकि, इसमें खासी अड़चनें आईं. कश्मीर के भारत से संबंधों को लेकर अनुच्‍छेद-370 (मसौदे में अनुच्‍छेद-306 ए) को लेकर गोपालस्वामी आयंगर, पटेल, शेख अब्दुल्ला और उनके साथियों के बीच तीखी बहस चलीं. शेख अब्दुल्ला के साथ आयंगर की जो बातचीत होती थी वो बहुत उत्साह पैदा करने वाली नहीं थी. आयंगर ने एक खत में इस बारे में भी लिखा. उन्होंने कहा, “मुझसे उम्मीद की जा रही है कि मैं दिक्कतों के लिए एक समाधान पेश करूं.” दरअसल आयंगर भी इसको उस तरह बनाने के लिए तैयार नहीं थे, जैसा शेख अब्दुल्ला चाहते थे।
आंबेडकर के मना करने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री ने ये काम उनकी कैबिनेट के जूनियर मंत्री केएन गोपालस्वामी आयंगर को सौंपा।
आयंगर भी जानते थे, उन्हें पेचीदा काम मिला है
आयंगर ने एक और खत में लिखा, ” समय निकलता जा रहा है. मैं समझ नहीं पा रहा हूं. बहुत सी बातों से मैं सहमत नहीं हूं”. यहां तक कि आयंगर ने एक बार आजिज आकर संविधान सभा से त्याग पत्र देने की धमकी भी दे डाली। उन्होंने कहा कि ये ठीक नहीं हो रहा है।
भारत में विलय के पहले से लेकर आर्टिकल 370 खत्म होने तक ये है जम्मू-कश्मीर की कहानी।
इसी बीच प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू अमेरिका दौरे पर चले गए और पटेल को इस बारे में कह गए कि इसे वो संसद में पास करा देंगे। अशोक कुमार पांडेय की किताब “कश्मीरनामा: इतिहास और समकाल” में लिखा गया है, ” 12 अक्टूबर को सरदार पटेल ने संविधान सभा में कहा, ‘उन विशेष समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जिनका सामना जम्मू और कश्मीर सरकार कर रही है, हमने केंद्र के साथ राज्य के संवैधानिक संबंधों को लेकर वर्तमान आधारों पर विशिष्ट व्यवस्था की है’।
आयंगर ने उपधारा एक में खुद बदलाव किया, जो अब काम आया।
16 अक्टूबर को एक मसौदे पर सहमति बनी, लेकिन आयंगर ने बिना शेख को विश्वास में लिए इसकी उपधारा-1 के दूसरे बिंदू में बदलाव कर दिया। यही परिवर्तित रूप संविधान सभा में पास भी करा लिया। हालांकि, इसे लेकर शेख अब्दुल्ला नाराज हुए और संविधान सभा से इस्तीफा देने की धमकी दी। वस्तुस्थिति यही है कि इसी उपधारा एक और दो में जो स्थितियां थीं, उन्हीं दरारों को भांपकर मौजूदा एनडीए सरकार ने अब अनुच्‍छेद-370 को बहुत हल्का कर दिया बल्कि यों कहें कि इस आर्टिकल की हवा ही निकाल दी है।
अनुच्‍छेद-370 के हाशिए पर ये नोट भी है कि जम्मू -कश्मीर राज्य के संदर्भ में अस्थाई विधान अनुच्छेद-370 के अस्थाई होने का मतलब ये था कि इसका भविष्य कश्मीर की जनता के अंतिम निर्णय द्वारा तय होगा। वैसे ये धारा अपने निर्माण के साथ ही विवादों के घेरे में रही है।
कौन थे गोपालस्वामी आयंगर
गोपालस्वामी आयंगर तंजौर तमिलनाडु में पैदा हुए थे। मद्रास में पढ़े लिखे। 1905 में उन्होंने मद्रास सिविल सर्विस ज्वान की और कई पदों पर काम किया। उन्‍होंने डिप्टी कलेक्टर बोर्ड रेवेन्यू के सदस्य के तौर पर काम किया। वो 1937 से लेकर 1943 तक कश्मीर के प्रधानमंत्री रहे। फिर स्टेट कौंसिल के सदस्य बने। फिर संविधान सभा और तेरह सदस्यों की मसौदा कमेटी के सदस्य बने। वो भारत के प्रतिनिधि बनकर संयुक्त राष्ट्र गए और कश्मीर के विवाद पर भारत का पक्ष रखा। गोपालस्वामी आयंगर का निधन मद्रास में 10 फरवरी, 1953 को हुआ। तब वो 71 साल के थे।
SHARE