अतीक और अशरफ की हत्या हुई या वध हुआ ? उसके सताए लोगों में सन्तुष्टि, कोई जनाक्रोश नहीं

अतीक और अशरफ की हत्या हुई या वध हुआ लेकिन उसके सताए लोगों में सन्तुष्टि है। इन दोनों की तथा अतीक के बेटे की मौत पर कोई जनाक्रोश नहीं है क्योंकि ये लोग इतने खूँखार अपराधी थे की इनके द्वारा सताए गए लोगों की संख्या हजारों में है। यही कारण है कि अधिकांश लोगों का कहना है कि ये दुर्योधन के वध जैसा ही है। लोगों का कहना है कि यह समझना जरूरी है कि यह हत्या नहीं ,वध कहलाएग।

लेकिन फिर भी एक दूसरे को मारना कानून व्यवस्था को बिगाड़ने वाला कृत्य है जोकि गलत है। अपराधियों को सजा देना कानून और न्यायालय का काम है। किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य को मारने या अन्य सजा देने का अधिकार नहीं है। बाक़ी राजनीतिक दलों के रूदाली तो रोने का बहाना खोजते ही रहेंगे। क्योंकि उनकी तो रोजी रोटी इसी से चलती है।

ये सभी मौका परस्त राजनेता राजू पाल की हत्या पर चुप रहे, उमेश पाल की हत्या पर चुप रहे, विकास दूबे द्वारा 8 पुलिस कर्मियों की हत्या किए जाने पर भी चुप रहे, कुछ दिन पहले ही कई लोगों के सिर काटने पर भी चुप रहे, पालघर में साधुओं की हत्या करने पर भी चुप रहे इसके अलावा भी इसी तरह की अनेक घटनाओं पर ये राजनेता बिल से बाहर नहीं निकले।

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