घर में मौजूद खाद्य पदार्थों से एनीमिया पर करें वार

• विटामिन एनीमिया से लड़ने में कारगर
• हरी साग-सब्जी का नियमित सेवन काफ़ी जरूरी
• पोषक तत्वों की कमी के साथ संक्रामक रोग एनीमिया का प्रमुख कारण

लखीसराय / 29 मई –

एनीमिया यानी खून की कमी एक ऐसी स्थिति है जिसमें लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या उनमें हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम जाती है। ऑक्सीजन ले जाने के लिए हीमोग्लोबिन की आवश्यकता होती है। यदि शरीर में बहुत कम या असामान्य लाल रक्त कोशिकाएं हैं, या पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं है, तो शरीर के ऊतकों तक ऑक्सीजन ले जाने के लिए रक्त की क्षमता कम हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप थकान, कमजोरी, चक्कर आना और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। एनीमिया के कारण बच्चों में उम्र के मुतबिक वजन एवं लंबाई भी कम जाती एवं वे दुबलापन व नाटापन के शिकार हो जाते हैं। जिससे बच्चों में शारीरिक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाती है।

पोषक तत्वों की कमी के साथ संक्रामक रोग ज़िम्मेदार:
एनीमिया के सबसे आम कारणों में पोषक तत्वों की कमी, विशेष रूप से आयरन की कमी शामिल होती है। साथ ही विटामिन की कमी भी एनीमिया के लिए जिम्मेदार होते हैं। शरीर में विटामिन सी, ए, डी, बी12 एवं ई की भूमिका अधिक होती है। विटामिन सी शरीर में आयरन के चयापचय को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है। विशेष रूप से यह आयरन के अवशोषण एवं इसकी गतिशीलता को भी बढ़ाता है। इसलिए विटामिन सी युक्त आहार जैसे आँवला, नींबू एवं अमरुद जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन जरुर करना चाहिए। ये खाद्य पदार्थ आसानी से घरों में उपलब्ध हो जाते हैं। एनीमिया के प्रमुख कारणों में पोषक तत्वों की कमी के साथ कई संक्रामक रोग भी शामिल होते हैं। जिसमें मलेरिया, टीबी, एचआईवी और अन्य परजीवी संक्रमण शामिल हैं। इन रोगों से ग्रसित होने के बाद अमूमन शरीर में खून की कमी हो जाती है।

2 साल से कम उम्र के बच्चों के आहार पर दें ध्यान:
एनीमिया किसी भी आयुवर्ग के लोगों को हो सकता है लेकिन 2 साल से कम उम्र के बच्चों में खून की जरूरत अधिक होती है। 2 साल से कम उम्र के बच्चों की वृद्धि दर बहुत अधिक होती है। 6 से 24 महीने की उम्र के बीच, शरीर के वजन के प्रति किलोग्राम आयरन की आवश्यकता जीवन के अन्य चरणों की तुलना में अधिक होती है। जन्म के समय कम वजन और समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं को अधिक जोखिम होता है। 2 साल की उम्र के बाद विकास की दर धीमी हो जाती एवं हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ जाती है। इस लिहाज से इस दौरान शिशु के आहार पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। जन्म से 6 माह तक केवल स्तनपान जरूरी होता है। इस दौरान ऊपर से पानी भी शिशु को नहीं देना चाहिए। वहीं, 6 माह के बाद स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार जरूरी होता है। जिसमें बच्चे को अर्ध ठोस आहार देना चाहिए। साथ ही यह ध्यान भी देना चाहिए कि उनके आहार में अनाज, विटामिन एवं वसा की मात्रा शामिल हो।
एनीमिया को दूर करने के लिए सरल खाद्य पदार्थ:

• हरी साग-सब्जी
• चना एवं गुड़
• मौसमी फ़ल
• मीट, मछली एवं चिकन

दवा से अधिक जागरूकता की जरूरत :
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ अशोक कुमार भारती ने बताया एनीमिया से लड़ने के लिए स्वास्थ्य विभाग कई प्रयास कर रहा है। पाँच से 59 महीने के बालक और बालिकाओं को आईएफए की सिरप एवं 5 से 9 साल के लड़के और लड़कियाँ, 10 से 19 साल के किशोर और किशोरियां, 20 से 24 वर्ष के प्रजनन आयु वर्ग की महिलाएँ( जो गर्भवती या धात्री न हो), गर्भवती महिलाएं एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं को आईएफए की गोली निशुल्क दी जा रही है। ताकि एनीमिया के दंश से उन्हें बचाया जा सके। साथ ही यह जरूरी भी है कि सभी आयुवर्ग के लोग अपने खाद्य पदार्थों पर ध्यान भी दें एवं पौष्टिक आहार का सेवन करें। दवा से अधिक एनीमिया को लेकर जागरूकता की जरूरत है।

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