सरकार ने ई-सिगरेट पर लगाया बैन

नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में ई-सिगरेट पर पूरी तरह से बैन लगाने का फैसला लिया गया है. सरकार ने इसके निर्माण ,  वितरण , बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.
ई-सिगरेट का चलन सबसे ज्यादा युवाओं में था , यहां तक कि स्कूल के बच्चे इसका ज्यादा उपयोग कर रहे थे , जिसके चलते बैन का फैसला लिया गया है.

उल्लंघन पर ये होगी सजा

हेल्थ मिनिस्ट्री ने अध्यादेश में पहली बार नियम तोड़ने पर 1 साल की जेल और एक लाख रुपये जुर्माना लगाए जाने का प्रस्ताव रखा है. इसके अलावा एक से ज्यादा बार नियमों का उल्लंघन करने पर 3 साल की जेल और 5 लाख रुपये का जुर्माना प्रस्तावित किया है.

क्या है ई-सिगरेट

ई-सिगरेट यानी इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट. ई-सिगरेट एक तरह की ENDS (इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलीवरी सिस्टम) डिवाइस है. ENDS बैटरी से ऑपरेट होने वाले डिवाइस हैं, जिनका इस्तेमाल शरीर में निकोटिन पहुंचाने के लिए होता है. ENDS में सबसे ज्यादा डिमांड रहती है ई-सिगरेट की.

आपको बता दे ई-सिगरेट के अंदर लिक्विड निकोटिन का कार्टेज मौजूद होता है. खत्म होने के बाद कार्टेज को बदला जा सकता है. हालांकि कुछ ई-सिगरेट में यूज-एंड-थ्रो वाला हिसाब होता है.
ई-सिगरेट में मौजूद लिक्विड निकोटिन जलता नहीं है, इसलिए इससे धुआं नहीं निकलता और सिगरेट जैसी गंध भी नहीं आती. लिक्विड निकोटिन गर्म होकर भाप बन जाता है. इसलिए जो लोग ई-सिगरेट पीते हैं वो धुंए की बजाय भाप खींचते हैं।

ई-सिगरेट के तीन हिस्से होते हैं-

  • रिचार्जेबल लिथियम बैटरी
  • निकोटिन कार्टेज
  • एवोपोरेट चैंबर- इस हिस्से में छोटा हीटर लगा होता है, जो बैटरी से गर्म होता है निकोटिन को भाप में बदलता है.
  • ई-सिगरेट को आम सिगरेट की तुलना में कम हानिकारक बताया जाता है. इसकी मार्केटिंग भी सिगरेट की आदत छुड़ाने वाले प्रोडक्ट के रूप में की गई है, जबकि इसके हजारों फ्लेवर, किसी सिगरेट के आदी शख्स की सिगरेट की लत छुड़ाने की बजाय सिगरेट न पीने वालों को ई-सिगरेट पीने के लिए ज्यादा प्रेरित करते हैं. युवाओं की बड़ी तादाद में ई-सिगरेट की डिमांड बढ़ती नजर आ रही है.

ई-सिगरेट के नुकसान

  • निकोटिन की मौजूदगी, हार्ट, लीवर और किडनी के लिए खतरनाक है.
  • इसमें कैंसर पैदा करने वाले एजेंट मौजूद होते हैं.
  • WHO के मुताबिक ई-सिगरेट के फ्लेवर युवाओं को चुंबक की तरह खींचते हैं और अपना आदी बनाते हैं.
  • टीनेजर्स और यूथ में फेफड़ों की बीमारियां बढ़ रही हैं.

 

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