बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी डॉ कुसुम लुनिया

नईदिल्ली।

श्रीमती डॉ. कुसुम लुनिया सरदारशहर के श्रद्धानिष्ठ श्रावक स्व. श्री जतनलालजी व श्रद्घाकी प्रतिमूर्ति गटूदेवी बोथरा की सुपुत्री एवं चाडवास निवासी, सूर्यनगर प्रवासी डॉ. धनपत लुनिया की धर्मपत्नी हैं। आप हिन्दी व अंग्रेजी साहित्य में स्नातक व जैनदर्शन एवं तुलनात्मक धर्मदर्शन की अधिस्नातिका (एम.ए) होने के साथ विश्वविधालय अनुदान आयोग की राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा (नेट) उत्तीर्ण कर पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की है।

डॉ. कुसुम लुनिया वर्तमान मे संयुक्त हिन्दी सलाहकार समिति विज्ञान व प्रोधोगिक मंत्रालय एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार की सदस्या है।

डॉ. कुसुम लुनिया की साहित्यिक गतिविधियों में बचपन से रूचि रही है। इन्होने अपनी कलम से शब्द और अर्थ के यथावत सहभाव द्वारा सत्साहित्य सृजन से मानवसमाज को सुन्दर बनाने की साधना की है, जिससे समग्र विश्व के साथ एकत्व का अनुभव हो सके। साहित्य से सौहार्द व स्थायी शान्ति के विमर्श को प्रमुख रूपसे प्रस्तुत किया ताकि आने वाली पीढियों को खुशहाल दुनिया दी जासके। विभिन्न संस्थाओं के साथ अपने सक्रिय जुडाव के चलते आप अपनी लेखन व वक्तृत्व कला से मानवीय मुल्यों के प्रसार तथा समाज की उन्नति के पावन उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सतत प्रयत्नशील रही है।

डॉ. लुनिया ने उपन्यास नाटक आदि विधाओं में अनेक लोकोपयोगी पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें समसामयिक समस्याओं के सटीक समाधान रूप में नैतिक व चारित्रिक मूल्यों पर आधारित अणुव्रत दर्शन का व्यापक प्रयोग प्रस्तुत किया। बिना किसी देश जाति लिंगभेद के पाठकों को आत्मसंयम पालन को प्रेरित करते हुए अंहिसात्मक समाज और मजबूत राष्ट्रनिर्माण की दिशा में घरातल पर ठोस कार्य किया।

डॉ. कुसुम लुनिया द्वारा लिखित साहित्य में शाकाहार के महत्व को रेखांकित करती पुरस्कृत पुस्तक “शाकाहारः श्रेष्ठ आहार” तथा “सीक्रेट्स ऑफ हेल्थ द वेजिटेरियन” वे, नक्सलवाद की गम्भीर समस्या का समाधान प्रस्तुत करता उपन्यास “शिखर तक चलो”, स्वाध्याय पुस्तिकाए “समता की सुगंघ” व “दिव्य ज्योति” आदि शामिल हैं। महान समाज सुधारक आचार्य तुलसी के जीवन दर्शन को प्रस्तुत करती पुस्तक “युगदृष्टा” नाटक का मंचन 120 देशों में प्रसारित हुआ। “ऊंची उडान” को इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती से सम्मानित किया। कन्यासुरक्षा पर आधारित इस नाटक काअनेक थियेटर ग्रुपों द्वारा मंचन हुआ।

डॉ. कुसुम लुनिया विगत 26 वर्षों से निरन्तर लेखन, संपादन से जुडी है। आपके द्वारा लिखित पुस्तकों को प्रभात प्रकाशन जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशकों ने प्रकाशित किया है। इन पुस्तकों को लाखों सुनकर, हजारों लोग पढकर जीवन संवारते हैं। इन पुस्तकों को जिज्ञासु शौधार्थी अपनी रिसर्च में उपयोग करते हैं।

साहित्यिक, सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में आपने अनेक उपलब्धियां प्राप्त की है। अणुव्रत विश्व भारती और अन्य कई संस्थाओं के विशिष्ट पदों से जुडकर धरातल पर ठोस कार्य किया है। भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के साथ सभी वैज्ञानिक मंत्रालयोंव विभागों के साथ अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर “भारत भारती भाषा महोत्सव-2022” एवं चैन्नई के वैज्ञानिकों के साथ “उनन्यन-2022” का सफल आयोजन किया।

राष्ट्रीय अणुव्रत साहित्यकार व कवि समेमेलनो, संगोष्ठियों, कार्यशालाओं आदि के आयोजनों में निरन्तर संलग्न रहकर आपने अनेक लेखकों, कवियों को सकारात्मक रचनाओं के सृजन के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार सैंकडो रचनाकारों, हजारों पाठकों, लाखों श्रोताओं तक अपनी लेखनी द्वारा डॉ. कुसुम ने रोचक विधा में सकारात्मकता, भारतीयता , राष्ट्रभक्ति के संस्कारों को पंहुचाया है।

सुप्रसिद्ध साहित्यकार, गम्भीर सामाजिक कार्यकर्ता, दार्शनिक शिक्षाविद डॉ. कुसुम लुनिया मानती हैं “जीवन सिर्फ अपने लिए ही नहीं जीना है; बल्कि दूसरों के लिए भी जीना है।” साहित्य जगत की सघन सेविका डॉ. कुसुम लुनिया का नाम भारत के राष्ट्रीय सम्मान पद्मश्री पुरस्कार के लिए हम प्रस्तावित करते हैं।

इनका सम्मान सकारात्मक साहित्य सृजन को प्रोत्साहित करेगा, महिलाओं के लिए प्रेरकशक्ति बनेगा।भारत के नव निर्माण में सहयोगी बनेगा।

डॉ. कुसुम लुनिया के साहित्य का लक्ष्य मनुष्यता है जो सहज भाषा में ऊंचे विचारों और श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को अनायास ग्राह्य बनाता है। इसमें प्रेषणधर्मिता का मुख्य गुण है जिससे इनका साहित्य युग को बदलने की क्षमता रखता है। “शिखर तक चलो” उपन्यास में नक्सलवाद की समस्या का प्रत्येक पहलु से अध्ययन कर सटीक समाधान प्रस्तुत किया है। इसको ऑडियो बुक के रुप में तीन लाख लोगो ने पढा, सुना और सराहा है। अनेक विधार्थी इसपर शोघ कर चुके हैं। सामाजिक रूंढियों पर प्रहार के साथ अणुव्रत दर्शन की राह सुझाती पुस्तक “युगदृष्टा” के भव्य मंचन को देश विदेश में बहुत सराहना मिली। महिला सशक्तिकरण व कन्या भ्रूण रक्षा को प्रमुखता से प्रस्तुत करती पुस्तक “ऊंची उडान” के भी अनेक नाट्य मंचन हुए। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इसके क्लाईमेक्स के दौरान अश्रुपुरितआखों से दर्शक वर्ग ने खडे होकर कन्या भ्रूण हत्या नहीं करने – नहीं करवाने – नही अनुमोदन करने के संकल्प लिये। शाकाहार विषयक पुस्तकें “शाकाहारः श्रेष्ठ आहार”  व “सीक्रेट्स ऑफ हेल्थ द वेजीटेरियन वे” से शाकाहार का प्रचुर प्रसार हुआ। “दिव्य ज्योति” और “समता की सुगंध” पुस्तकों से संयम व समता का संदेश प्रसरित हुआ। “जैन जीवन शैली” शौधग्रन्थ में जीवन जीने की कला को प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपे इनके समसामयिक लेखों में उच्च चिन्तन, स्वाधीनता का भाव, सौन्दर्य का सार, सृजन की आत्मा और जीवन की सच्चाईयों का प्रकाश है जो पाठकों में गति व बैचेनी पैदा करके समाज परिष्कार का पथ प्रशस्त कर रहा है।

इस प्रकार स्पष्टहै कि डॉ. लुनिया ने समाज के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए साहित्य को माध्यम बनाया। बहुविध साहित्य का सृजन किया। कहानी, कविता, नाटक, लेख आदि द्वारा ज्ञान शशि के कोष को संचित किया। इनका साहित्य मनुष्य की शक्ति-दुर्बलता, जय पराजय, हास-अश्रु और जीवन मृत्यु की कथा कहता है। इनकी रचनाएं मनुष्य समाज को रोग-शोक, दारिद्रय अज्ञान तथा परामुखापेक्षिता से बचाकर उसमें आत्मबल का संचार करता है। इनके साहित्य में उच्चचिंतन, स्वाधीनता का भाव, सौन्दर्य का सार, सृजन की आत्मा और जीवन की सच्चाइयों का प्रकाश है जो पाठकों, श्रोताओं दर्शकों में गति और बैचेनी पैदा करता है।

साहित्य व शिक्षा के माध्यम से शाश्वत मानवीय मूल्यों से समाज की बेहतरी हेतु प्रयासरत डॉ. कुसुम लुनिया विभिन्न संस्थाओं से जुडकर उनमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। भारत सरकार के विज्ञान व प्रोधोगिकी मंत्रालय व पृथ्वी विज्ञान मन्त्रालय की संयुक्त हिन्दी सलाहकार समिति की सदस्या, अणुव्रत विश्व भारती की संगठन मन्त्री, अणुव्रत उदबोधन सप्ताह की राष्ट्रीय संयोजिका, अणुव्रत स्थापना दिवस की राष्ट्रीय संयोजिका, अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के बौद्धिक प्रकोष्ठ की संचालिका हैं। इतिहास संकलन समिति पूर्वी दिल्ली की व तेरापंथ प्रोफेशनल फोर्म की परामर्शक, जैन विश्व भारती विश्व विधालय की समन्वयक रही हैं। फिल्म राईटर्स एशोसियेशन की एसोसियेट मेम्बर, इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती, दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन की आजीवन सदस्या हैं।

डॉ. कुसुम लुनिया साहित्यिक, सामाजिक, शैक्षणिक व धार्मिक संगठनों से जुडकर विधार्थियों व आम लोगों के भावनात्मक, सामाजिक, नैतिक और चारित्रिक कल्याण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।साहित्य सृजनकारों में नातिकता पुष्टि हेतु इन्होने अनेक अणुव्रत साहित्यकार व कवि  सम्मेलनों का सफल आयोजन किया है।सम्पूर्ण मानवता के प्रति उत्तरदायित्व निभाती इनकी लेखनी ने समस्याओं पर प्रहार ही नहीं उनका संहार भी किया है।  सरस्वती मां के चरणों में वर्षो से सेवारत डॉ. लुनिया ने सत्साहित्य सृजन द्वारा समाज कल्याण किया है।

SHARE