ब्रिटेन के आम चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी के नेता बोरिस जाॅनसन की विजय का भारत स्वागत करता है, क्योंकि लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कोर्बिन के मुकाबले जॉनसन ने भारत और ब्रिटेन के भारतीयों के प्रति काफी मैत्रीपूर्ण रवैया प्रदर्शित किया है।
कंजर्वेटिव पार्टी को 365 सीटें मिली हैं। उसे 76 सीटों का बहुमत मिला है। इतना प्रचंड बहुमत इससे पहले मार्गेरेट थेचर को 1987 में मिला था।
जाॅनसन को ब्रिटेन के अखबार गंभीर नेता नहीं मानते थे लेकिन उन्होंने लेबर पार्टी को इस बुरी तरह से धो दिया है कि वह अपने ही गढ़ों में हार गई हैं।
उसके नेता कोर्बिन को अपना नेता पद छोड़ना पड़ गया है। जाॅनसन 55 साल के हैं और कोर्बिन 70 के। इस अपेक्षाकृत युवा नेता ने लेबर पार्टी को क्यों पछाड़ दिया ?
इसके कई कारण हैं पहला, यह कि यूरोपीय संघ से ब्रिटेन को बाहर निकालने का अभियान जितनी निष्ठा से जाॅनसन ने चलाया, किसी अन्य नेता ने नहीं चलाया।
उन्होंने ब्रिटिश जनता को वे सब फायदे सरल भाषा में गिनाए, जो ब्रिटेन के बाहर आने से हो सकते हैं। दूसरा, उन्होंने अपने इस चुनाव का खास मुद्दा इसी प्रश्न को बनाया, जबकि लेबर पार्टी गोलमोल बातें करती रही।
तीसरा, जाॅनसन ने कंजर्वेटिव पार्टी की परंपरागत नीति में नया आयाम जोड़ा। उन्होंने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी योगदान को बढ़ाने की बात कही।
चौथा, उन्होंने 15 लाख प्रवासी भारतीयों के वोट लेने के लिए वैसे ही पैंतरे अपनाए, जैसे कि हमारे नेता अपनाते हैं.
उन्होंने हिंदू मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना की, भारतीय वस्त्र पहने, हिंदी बोली और भारतीयों के प्रवास-नियमों में नरमी लाने के वादे किए।
पांचवा, कश्मीर और आतंकवाद के सवाल पर उन्होंने भारत का खुला समर्थन किया जबकि लेबर पार्टी ने कश्मीर पर भारत का विरोध किया और लंदन में हुए भारत-विरोधी प्रदर्शनों को प्रोत्साहित किया।
लेबर पार्टी ने भी ‘हिंदू आदर्शों के सम्मान’ की बात कही लेकिन वह एक सैद्धांतिक जुगाली बनकर रह गई। लेकिन अब कंजर्वेटिव और लेबर पार्टी के 15 सांसदों से, जो भारतीय मूल के हैं।
उम्मीद की जाती है कि वे अब भारत-ब्रिटेन के व्यापारिक असंतुलन को दूर करने में, व्यापार को बढ़ाने में और सामरिक संबंधों को मजबूत करने में विशेष योगदान करेंगे।
अब यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर आ जाने से भारत के लिए अवसरों के नए द्वार खुलेंगे। अब भारत चाहे तो राष्ट्रकुल का सबसे बड़ा राष्ट्र होने के नेता बेहतर और अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
जाॅनसन के लिए यूरोपीय संघ छोड़ने के सवाल पर स्काॅटलेंड और उत्तरी आयरलैंड समस्या खड़ी कर सकते हैं लेकिन वे इन आंतरिक समस्याओं को सुलझाने में सक्षम हैं।
यदि 31 जनवरी 2020 को वे यूरोपीय संघ से ब्रिटेन को बाहर निकाल लेते हैं तो ब्रिटिश इतिहास में उनका नाम चमक उठेगा।