केजरीवाल वोटरों को जाल में लाने के लिए डाल रहे हैं हर तरह का दाना, मुठ्ठी भर खा जाये तो क्या हुआ, वोट तो देगा, बाद में किसने देखा है

जो दस साल में याद नहीं आया वो चुनाव आते ही याद आ गया। चुनाव में गरीब को लॉलीपॉप देकर कैसे बेवकूफ बनाया जाता है, केजरीवाल ये अच्छी तरह जानते हैं। कई सालों से वृद्धावस्था पेंशन के पंजीकरण तक भी बंद रखने वाले केजरीवाल ने चुनाव आते ही पंजीकरण शुरु कर दिए।

दस वर्षों में मस्जिदों के मौलवियों को वेतन दिया लेकिन पंडित और गंथियों की याद नहीं आये। चुनाव आते ही ग्रंथियों और पंडितों पर प्यार उमड़ आया और उन्हें वेतन का लॉलीपॉप चूसने के लिए थमा दिया।

महिलाओं को पहले से ही बसों में करा यात्रा रहे हैं, भले ही डीटीसी का दिवाला निकल गया है। कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा हैं। बसों में मार्शल नियुक्त किये थे लेकिन वेतन नहीं मिला तो छोड़ कर चले गए। 200 यूनिट फ्री बिजली भी दे रहे हैं, पानी रहे हैं, भले ही जल बोर्ड का दिवाला निकल चुका है, इससे केजरीवाल को कोई फर्क नहीं पड़ता।
टैक्स देने वाले टैक्स दे रहे हैं और महान गरीब – अपने बंगले में 9 करोड़ के परदे लगाने वाले, 85 लाख के टॉयलेट सीट पैर शौच करने वाले अरविन्द केजरीवाल हमारा पैसा ऐसे लुटा रहे हैं जैसे उनके घर का पैसा है। टैक्स का पैसा विकास के लिए होता है लेकिन नेता उस पैसे को वोट पाने के लिए उड़ा रहे हैं। ऐसा क्यों ? क्या इसका जवाब कोई नेता देगा ?

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