सिने कलाकार या देशद्रोह के ठेकेदार ?

JNU में हुई शर्मनाक हिंसा के बाद

मुम्बई में कुछ गद्दार, देशद्रोही सिनेमा कलाकारों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया। करें भी क्यों ना क्योंकि इनको फाईनेंस तो वही से आता है।

इन देशद्रोहियों ने एक बार भी ननकाना साहब में हुएं हमलें पर कुछ नही बोला, चुप्पी साध रखी है।

जिसपर, पूरा सोशल मीडिया उबल रहा है.!

इसीलिए मैं सोचता हूँ कि इन सब पर लिखने से अच्छा है कि आज
एक कहानी ही लिख दूँ !

एक गाँव में तरंगिणी नाम की एक महिला रहती थी।

वो तरंगिणी नींबू और चीनी का शर्बत बहुत अच्छा बनाती थी। वो अच्छी नृत्यांगना भी थी।

जब किसी के घर जन्मदिन की पार्टी हो अथवा शादी विवाह या फिर कहीं पूजा पाठ हो तो हर जगह तरंगिणी ही नींबू-चीनी का शर्बत पिलाया करती थी। ओर नाचती भी थी। सबका मनोरंजन करके पैसे भी कमाती थी।

धीरे-धीरे बहुत से लोग तरंगिणी को जानने लगे।

और लोगों ने उसके नृत्य कला व शर्बत बनाने की कला से प्रभावित होकर उसे गांव का मुखिया बना दिया।

अब मुखिया बन गई तो जिम्मेदारी भी बढ़ गई।

लोग उसके पास अपनी छोटी मोटी समस्याएं लेकर आते,
और, लाजवंती उस सबको बहुत प्यार से शर्बत पिलाया करती थी। कभी कभी नृत्य करके कहतीी कि तनावग्रस्त मत रहो, आनन्द करो, तनाव मुक्ति के लिए नृत्य देखो। वो परेशान लोगों की जेब से भी पैसे निकाालने मे मास्टर हो चुुुुकी थी।

एक बार गांव में बहुत तेज बारिश हुई और लगभग आधा गांव डूब गया।

लोग घबड़ाए हुए अपनी मुखिया तरंगिणी के पास आये और उसे उस गंभीर स्थिति की जानकारी दी।

लाजवंती ने भी पूरी गंभीरता से उन सबकी बात सुनी और, उस दिन उसने ढेर सारा शर्बत बनाया एवं सबको नाच नाचकर पिलाने लगी ! सबको बडा आश्चर्य हुआ।

इस पर गांव वालों ने गुस्सा करते हुए उससे कहा कि

यहाँ हम सबके जान पर पड़ी हुई है, बच्चे भूखे तडप रहें है और आप हमें शर्बत पिला कर नाच दिखा रही हो ???
आप स्थिति की गंभीरता को क्यों नहीं समझती ???

इस पर तरंगिणी ने कहा कि मैं स्थिति की गंभीरता तो समझ रही हूँ तभी तो आज ढेर सारा शर्बत बनाया है। और उम्दा नृत्य कर रही हूँ।

अब चूँकि मुझे यही काम आता है तो मैं वही काम कर रही हूँ..!

मैंने तो ये आपलोगों से कभी नहीं कहा कि आप मुझे आइकॉन बनाओ, मुझे हीरो या मुझे मुखिया बना दो।

आप सब ने खुद से मुझे आइकॉन बना रखा है, मुझे बहुत समझदार समझ रखा है, मैंं तो आपकी तरह ही आम मानव ही हूँ !

इसमें भला मेरा क्या दोष है ???

👉कमोबेश यही स्थिति आज हमारे देश की भी है…!
जिन्हें आप अंग्रेजी में सिने तारिका अथवा हीरोइन, हीरो कहते हैं।

उस कैटेगरी के लोगों को आज भी गांव देहात में
“नचनिया” और “लौंडा नाच” कह कर पुकारा है।

उनका काम नाच-गा कर आपका मनोरंजन करना एवं बदले में आपसे बख्शीश के तौर पर कुछ पैसे लेना ही है। जिसे, आप टिकट के तौर पर भुगतान करते हैं.

उनका पेशा ही ये है।

और…. अगर आपके पास उन्हें देने लायक पैसा है…. तो, आप भी अपने घर की शादी , जन्मदिन अथवा किस अन्य फंक्शन में उन्हें कपडों के साथ अथवा ना के बराबर कपड़ों में भी नचवा सकते हैं.

ऐसे नचनियों , भांडों और लौंडों को … अगर आप अपना आइकॉन मानते हैं तो इसमें आपकी बुद्धि की बलिहारी है…!

इसके लिए भला उन्हें दोष क्यों देते है ???

जहाँ तक रह गई बात अक्ल की तो…

KBC में एक नचनिया की “”संजीवनी बूटी वाली बात” बहुत वाइरल हुई थी…
और, उससे पहले एक और नचनिया…. “देश की राष्ट्रपति”” तक का नाम नहीं बता पाई थी.

यहाँ तक कि…. अभी CAA वाले मैटर में भी … एक लौंडा (मर्द नचनिया) ये नहीं बता पाया कि… CAA क्या है और… वो इसका विरोध क्यों कर रहा है ???

इसीलिए… मेरे ख्याल से… इन भांडों, लौंडों और नचनियों को सीरियसली लेने जरूरत ही नहीं है.

क्योंकि… उनकी अपनी कोई आइडियोलॉजी नहीं होती है और उन्हें पैसे देकर कोई भी बुला सकता है.

हमारा देश ऐतिहासिक रूप से बेहद ही समृद्ध है….

और, अपना हीरो मानने के लिए हमारे पास…. राम, कृष्ण, अर्जुन, से लेकर…. राणा सांगा, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, सुभाष चंद्र बोस , भगत सिंह, वीर सावरकर जैसे हजारों आइडल हैं.

इन सब को छोड़कर … अगर आप फिर भी फिल्मी नचनियों और भांडों को अपना आइडल मानते रहेंगे तो फिर…

शायद भगवान भी आपका भला।नहीं कर पाएंगे…!!

भारत माता की जय और जय हिंद

साभार

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