उलझते प्रश्नों के यथार्थवादी उत्तर

कर्म ज्ञान को अच्छे से समझने का प्रयास कीजिए

चलो महाभारत काल में चलते है।
पहली बात, मेरे मन में एक प्रश्न उठता रहा है कि महाभारत में कर्ण व श्री कृष्ण का क्या दोष?

कर्ण की माँ ने कर्ण को जन्म देते ही त्याग दिया, क्या ये कर्ण का अपराध था कि उसका जन्म एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ? बच्चा कैसे अवैध हो सकता है। सम्बन्ध तो अवैध हो सकते है, अमर्यादित हो सकते है। लेकिन बच्चा नहीं।

दूसरी बात महाभारत में कर्ण को गुरुजी दोर्णाचार्य ने शिक्षा देने से मना कर दिया था क्योंकि वो कर्ण को क्षत्रिय नहीं मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था।

तीसरी महत्वपूर्ण बात महाभारत में कर्ण को द्रौपदी के स्वयंवर में अपमानित किया गया, क्योंकि कर्ण को किसी राजघराने का कुलीन व्यक्ति नहीं समझा गया था।

कुछ एसे ही प्रश्न श्रीकृष्ण के लिए भी है।

श्रीकृष्ण का जन्म जेल में हुआ था।

उनका पैदा होने से पहले ही उनकी मृत्यु प्रतिक्षा कर रही थी।  इसी कारण जिस रात उनका जन्म हुआ, उसी रात उन्हे नियति ने माता-पिता से अलग कर दिया था।

श्री कृष्ण ने गायों को चराया और गायों के गोबर को अपने हाथों से उठाया। उनका दूध भी पिया।

जब वो चल भी नहीं पाते थे, तब उनके ऊपर प्राणघातक हमले हुए। एक नही अनेक हुएं।

जब उनके पास कोई सेना नहीं थी, कोई शिक्षा नहीं थी, कोई गुरुकुल नहीं था, कोई महल नहीं था, फिर भी उनके मामा ने उन्हे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा था।

बड़ा होने पर श्रीकृष्ण को ऋषि संदीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला। उन्होंने वहां से शिक्षा प्राप्त की, गुरुदेव ने उनसे कहांं कि मै ज्ञान स्थानांतरण विद्या से अपने मस्तिष्क से तुम्हारे मस्तिष्क में स्थानांतरित करना चाहता हूँ। मुझे तुम इस योग्य लगते हो। क्या तुम तैयार हो?

श्रीकृष्ण को बहुत से विवाह, राजनैतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े, जिन्हें उन्होंने राक्षसों से छुड़ाया था।  श्रीकृष्ण उन्हे देवी की तरह और वो देवी उन्हे पति मानती है।

जरासंध के प्रकोप के कारण, उन्हे अपने परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त, समुद्र के किनारे द्वारका में बसना पड़ा।

इस शोध – अनुसंधान से मुझे ज्ञात हुआ कि किसी का भी जीवन चुनौतियों से रहित नहीं है। सबके जीवन में सब कुछ ठीक नहीं होता। उतार चढ़ाव इस जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। सब कुछ हमारी मर्जी से अथवा हमारे चाहने मात्र से नही होता। कुछ आरोप, घटनाएं एसी होती है, जिन्हे समझना बहुत ही कठिन है। और कुछ तो असम्भव है।

सत्य क्या है और उचित क्या है? ये हम अपनी आत्मा की आवाज़ से स्वयं निर्धारित करते हैं।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है। ये अन्याय, दण्ड कितनी बार हमारे कर्मों से, हमारी गलतीयों से, और कितनी ही बार बिना किसी गलती के मिलते है।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, कितनी बार हमारे साथ न्याय होता है। ये न्याय, पुरस्कार, सम्मान कितनी बार हमारे कर्मों से, हमारी अच्छाइयों से, और कितनी ही बार बिना किसी कर्म के मिलते है।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, कितनी बार हमारा अपमान होता है।

इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है।

फ़र्क़ तो सिर्फ इस बात से पड़ता है। कि हम उन सबका सामना व समाधान किस प्रकार कर्मज्ञान के साथ करते हैं। कितने विवेक से करते है। कितने आत्मबल से करते है। कितने धैर्यपूर्वक करते है, कितनी सहनशीलता से करते है।

कर्मज्ञान है तो जीवन का हर पल आनन्ददायक है, आनन्दित है। वरना समस्या तो सभी के साथ प्रतिदिन है। सोच समझ समझकर किया कार्य, और अचानक किया जाने वाला कर्म प्रभु इच्छा है। इसके फल को हमें प्रभु का प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिएंं।

 

श्री गुरुजी भू

(मुस्कान योग के प्रणेता, प्रकृति प्रेमी, विश्व चिन्तक)

 

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