विवाह और शादी में है बडा अंतर

#विवाह_और_शादी_में_अन्तर –

विवाह एक तपस्या है , जिसमें पत्नी पति के लिये स्वयं को न्यौछावर कर उसकी आजीवन उपासना करती है और पति अपनी पत्नी को उस भूमि की तरह ग्रहण करता है , जिससे किसान अपने लिये अन्न प्राप्त करता है । एक किसान के लिये उसकी भूमि ही उसका सब-कुछ होती है, ऐसे ही पति के लिये पत्नी होती है ।

पतिव्रता – में दो शब्द हैं –
१.पति २.व्रता

किसी के लिये व्रत करने पर स्वयं को तपस्या में तपना पड़ता है । जैसे हम सोमवार का , मंगल का , बृहष्पति का , शुक्र का या फिर सत्यनारायण का , जो भी व्रत करते हैं , उस पूरे दिन में हमको निराहार रहना पडता है , कईं नियमों का पालन करना पड़ता है । ऐसे ही एक पतिव्रता का धर्म है , जो कि एक आजीवन व्रत है । इस व्रत में पति ही एक स्त्री का गुरु , पति ही देवता , पति का परिवार ही गुरुकुल होता है । और वो ये सब इसलिये पालन करती है , क्योंकि इसीसे उसके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है, उसका आत्मकल्याण होता है ।

विवाह और शादी में अन्तर है । विवाह योगप्रधान है और शादी भोगप्रधान । विवाह उपासनाप्रधान है , शादी वासनाप्रधान । हमारी उच्च कुलीन ब्राह्मण परम्परा में “विवाह” होता है , शादी नहीं होती ।

शादी- ये पाश्चात्य प्रभावित शब्द है , जबकि विवाह- ये हमारा सनातन संस्कृत शब्द है ।

विवाह पवित्रता और मोक्ष प्रदान करने वाला वो संस्कारविशेष है , जिसमें दान , व्रत और उपासना का समावेश है । किन्तु शादी , जो कि आजकल फैल रही है , बस एक समझौताभर है , जिसमें लोभ , विलास और वासना है ।

इसीलिये “विवाह” करने पर पति और पत्नी का कभी सम्बन्ध विच्छेद होता ही नहीं, कभी जीवन में परस्पर कोई मनमुटाव, कुण्ठा या फिर शिकायत रहती ही नहीं और सम्बन्ध पूर्णता को प्राप्त हो जाते हैं किन्तु शादी करने पर भीतर ही भीतर परस्पर मनमुटाव , कुण्ठा, शिकायतें जन्म लेतीं हैं और कभी कभी तो तलाक /डाइवोस जैसे नकारात्मक परिणाम भी निकल जाते हैं और सम्बन्ध सदैव अधूरा ही रहता है ।

आजकल लोगों की स्थिति ऐसी है कि हम क्या कर रहे हैं , क्यों कर रहे हैं , क्या आवश्यकता है , क्या उद्देश्य है , कुछ पता नहीं । आप पूछोगे कि आप ऐसा क्यों करते हो तो बोलेंगे – सब चल रहे हैं, इसलिये हम भी चल रहे हैं । जी इसलिये रहे हैं क्योंकि मौत नहीं आयी है , #भेड़चाल इसी को कहते हैं ।

इस अज्ञान से बचना चाहिये और बुद्धिमान् होकर चलना चाहिये , तभी जीवन लेना सफल है अन्यथा नहीं ।

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