महात्मा गांधी का अहिंसक हिन्दू धर्म

महात्मा गांधी का अहिंसक हिन्दू धर्म

श्री गुरूजी भू 

नई दिल्लीः आज से 70 वर्ष पहले 30 जनवरी 1948, का दिन था जब शाम पांच बजकर पंद्रह मिनट पर महात्मा गांधी बिरला हाउस के प्रार्थना स्थल की ओर बढ़ रहे थे, तभी ठीक दो मिनट बाद लगातार तीन गोली चलने आवाज़ आयी।  उन तीन गोलियों ने महात्मा गांधी के शरीर को तो लगभग समाप्त ही कर दिया लेकिन न तो गोलियां अंहिसा के विचार को मार पाई और न सत्य के उस राह को खत्म कर पाई जिसे बापू सबको दिखा गए थे। इसका मतलब बापू के बाद भी उनके विचार जिंदा रहे, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद से ही उनके विरुद्ध कई तरह के विचार प्रस्तुत कर उन्हें भारत विभाजन का उत्तरदायी बनाने की कोशिश हुई। पता चला ये गोली नाथूराम गोडसे ने अपनी बेरेटा पिस्टल से महात्मा गांधी को मारी थी। जिसका कारण उन्हें हिन्दुओं से अधिक मुसलमानों के पक्ष में होना बताया।

ऐसे में आज उनकी पुण्यतिथि पर यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि महात्मा गांधी ‘धर्म’ और खासकर हिन्दू धर्म के बारे में क्या सोचते थे।  क्या उनके विचार सच में हिन्दुओं के विरोध में थे जिस कारण से इसी धर्म के एक व्यक्ति ने उन्हें गोली मार दी।

गांधी जी का मानना था कि सब धर्मों का लक्ष्य एक ही है। एक बार किसी ने उनसे हिन्दू धर्म की परिभाषा पूछी गई।  बापू ने कहा ”मैं एक सनातनी हिन्दू हूं लेकिन मैं हिन्दू धर्म की विशालता की व्याख्या नहीं कर सकता। हां एक समान्य मनुष्य की तरह मैं कह सकता हूं कि हिन्दू धर्म सभी धर्मों को, सब तरह से आदर का पात्र समझता है.”

” मैं अन्य मतों का भी उतना ही आदर करता हूं जितना अपने मत का मेरा हिन्दू धर्म मुझे वह सबकुछ प्रदान करता है जो मेरे उत्थान के लिए आवश्यक है। मैं चाहता हूं दूसरे धर्म के लोग भी अपने धर्म में उन्नती करें। एक ईसाई एक अच्छा ईसाई बन सके और एक मुसलमान एक अच्छा मुसलमान।”

मेरा मानना है कि समय काल परिस्तिथि के अनुसार मान्यता बदलती रहती है। उस काल में जब महात्मा गांधी ने जो अहिंसा का मार्ग चुना वो उस समय से आज तक सही है। क्योकि अंग्रेजी सेना से जीत पाना उस समय असंभव सा लगने लगा था।

लेखक:

मुस्कान योग के प्रणेता, प्रकृति प्रेमी, पूर्व टीवी चैनल के सम्पादक,  संचालक, अध्यात्मिक शक्तियों के शोधकर्ता है।

gurujibhu@outlook.com

SHARE