अति प्रबन्धन के प्रभाव

वे लोग जो कभी ग़लतियाँ नही करते !
बड़ी हैरत में पड़ जाता हूं मैं उन्हें देखकर, जो लोग अपना पूरा जीवन प्लानिंग औऱ मैनेजमेंट के साथ जीते हैं !
..समय पर पढ़ाई , अच्छे ग्रेड्स , समय पर नौकरी ,
ठीक उम्र में शादी , सही वक़्त पर बच्चे !!
सब काम प्लानिंग अनुसार करते हैं !
इतने पैसे का मकान , इतने का इंश्योरेंस ,
इतने में बच्चों की शादी !
इतना बुढ़ापे में बीमारी का व्यय !!

..रात समय से सोना , कम खाना , अलसुबह गार्डन जाना , तेल मसालों से तौबा ..
हर जगह कैलकुलेटिव !!
..किससे , कितनी बात करना ,
किसको हिक़ारत से देखना , किसके आगे झुक जाना !!
परलोक का भी पूरा प्रबंधन कर लेते हैं !
इष्ट भी बना लेते हैं ,
ज़रूरत पड़े , तॊ गुरू भी कर लेते हैं !!

मुझे हैरत होती है कि फ़िर वे लोग ..ख़ुश क्यों नही दिखते ??
उनके चेहरे मुरझाए क्यों रहते हैं ?
वे खिलखिला के हंस क्यों नही पाते ?
….फ़िर वे बीमार कैसे पड़ जाते हैं ?
उनके जीवन में संकट क्यों आ जाता है ?

उनकी सारी प्लानिंग फ़ेल क्यों हो जाती है ??

क्या ‘कुछ गड़बड़ ना हो जाए’.. का गणित , सब गड़बड़ कर देता है ??
…क्या अति प्रबंधन , जीवन के गणित को हल करने का सही तरीका है ???
यदि हां , तॊ उत्तर ग़लत क्यों निकल आता है हर बार ? ?

-अब एक नज़र उन बातों पर , जो इन “अनुशासित” औऱ “सटीक प्रबंधन” के साथ जीने वालों मे कॉमन देखने मिलती हैं !

– वे सब रूखे -सूखे , अकडू, अहंकारी होते हैं !
– ज़्यादातर वे डफर औऱ भोंदू होते हैं ! (चाहे वे ग्रेड्स अच्छे क्यों न ले आएं ! )
– उनमें मौलिकता औऱ सृजनशीलता नही होती !
– वे आत्ममुग्ध होते हैं औऱ असफलता से भयभीत होते हैं

…वे प्रायः मित्रविहीन होते हैं ! ( क्योंकि मित्रता मैनेजमेंट से नही की जाती ! )

…वे प्रेमविहीन होते हैं ! ( कौन प्रेमिका/प्रेमी होगा , जो घड़ी देखकर प्रेम करना चाहेगा ?)

..वे काव्य , संवेदना विहीन होते हैं ! ( कविता अपॉइंटमेंट लेकर नही आती , ‘
भाव’, इजाज़त लेकर नही आते ? )

….वे ‘चैतन्यविहीन” होते हैं ! क्योंकि परम चैतन्य भी , दायरे मे सिमट के नही आता , वह तॊ सब कूल , तट , किनारे तोड़ के आता है !

“प्रबंधन” मनुष्य को मशीन बना देता है !
प्रबंधन से जो अर्जित होता है ..वह है – मात्र “कुछ पैसा औऱ बन्दोबस्त !!
जिसे अंत मे मृत्यु छीन लेती है !

…. जीवन भर के अनुशासन औऱ प्रबंधन से कमाया घऱ , प्रॉपर्टी , पैसा , , , ,
सब मृत्यु छीन लेती है !
यानि – अतिप्रबंधन ने ख़ुशी छीनी , औऱ उस प्रबंधन से जो पाया , उसे मौत ने छीना !!
..तॊ पाया क्या ? ?

तॊ, हमारी तॊ समझ ये है कि –
थोड़ा अराजक बने !
ज़रा अपने अनुशासन औऱ प्रबंधन से बाहर निकल आएं !
थोड़ा अपने मैनेजमेंट औऱ डिसिप्लिन के खिड़की-दरवाज़े खोलें , ज़रा खुली हवा मे निकल आएं !!

ज़रा टाईम टेबल की बेड़ियाँ काटें , औऱ फैल के जिएं !
थोड़ी बेफ़िक्री जुटाएं !

पालतू कुत्ते को देखा है न , जैसे ही चेन , पट्टा खोलो ..वो सरपट भागता है ! बे-मक्सद ,नाच उठता है ! ख़ुशी के मारे उसके पांव , पंख हो जाते हैं , पूंछ लहरा उठती है !
उसकी ख़ुशी औऱ पुलक का कोई ओर-छोर नही दिखता !!

..आप भी ज़रा चेन खोलिए ,
थोड़ा स्वतंत्रता का स्वाद चखिए !

…सहज जीवन स्वंय सब प्रबंध कर लेता है !
अति अनुशासन , प्रज्ञा का अभाव है !

अनुशासन का अर्थ क्या है ?
वह है – स्वंय को,, .टाईम टेबल की बेड़ियों मे क़ैद कर लेना !
24 घंटे मे अगर आप 50 काम टाईम टेबल से करते हैं तॊ आपने रोज़ाना की 50 हथकड़ियों में ख़ुद को बांध रक्खा है !

जीवन में वह सब जो क़ीमती है , अनुशासन से बाहर है !

-अनुशासन मे रहकर कविता नहीं की जा सकती , अट्टहास नहीं लगाया जा सकता !
– प्रबंधन से परमात्मा को नहीं बुलाया जा सकता !
– नियम -धरम की पूजा से सत्य नहीं उतरता !!

…नियंता मनमौजी है , वह नियम आबद्ध नहीं है !

अनुशासन , ईगो की क्रिया है !
वह महाक़ैद है !
अनुशासित व्यक्ति , कागज़ का फूल है , जिसमें सहजता की कोई सुगंध नहीं होती !
वह स्व केन्द्रित औऱ स्वार्थी हॊता है !
वह सब जगहों से स्वयं के लिए समय बचा रहा है !
वह समय को पैसे की तरह पकड़ के रखा है !
उसका अनुशासन भय औऱ लोलुपता की उपज है !

…नहीं , ऐसी बनिया बुद्धी से न जिएं !!
जीवन अनुशासन से बड़ा है, उसे अनुशासन मे नहीं बाँधा जा सकता !

जब ज़िंदगी दस्तक दे , तॊ अनुशासन को तोड़ देना चाहिए !
अस्तित्व को जीतकर नहीं , समर्पण से पाया जा सकता है !
..क्या बारिश अनुशासन से होती है ?
क्या आँधियाँ , गर्जना अनुशासन मे होती हैं ? ?

लेकिन , ग़ैर अनुशासित होने का अनुशासन भी न बनाएं , वह भी दूसरी अति है !

जीवन को सहज प्रवाह में जिएं ,
प्रज्ञा से जिएं , पुलक से जिएं , प्रेम से जिएं , कौतुक से जिएं !
प्रतिबंध औऱ प्रबंधन से नहीं !!!

कभी रात देर तक जगाने का मन हो , जाग जाएं !
कभी सुबह देर तक सोने का दिल करे , सो लें !
कभी काम न करने का मन हो , न करें !
कभी घंटों बतियाने का मन हो , बतिया लें !
…….आप पाएंगे , इन क्षणों ने जीवन को जितना पोषण दिया है, जितना समृद्ध किया है , उतना सालों साल का अनुशासन नहीं कर सका था !

जीवनके रहस्य Let go से खुलते हैं , Door lock से नहीं !

अनुशासन , अंतर निहित बोध का अभाव है !
…अनुशासन से PhD की जा सकती है , कविता नहीं !
..प्रोजेक्ट बनाया जा सकता है , प्रेम नहीं !!

कविता तॊ रात ढ़ाई बजे दस्तक दे सकती है , औऱ सारी रात जगा सकती है !
वह कोई दूधवाला नहीं है कि सुबह 6 बजे ही आएगा !!

लेकिन सालभर का अनुशासन वह फ़िटनेस नही देगा , जो एक कविता (या चित्र )..आपके अवचेतन का बोझ उतारकर आपको दीर्धकालीन स्वास्थ्य दे जाती है !

आपको पता नही है कि मित्र के साथ देर रात तक खुलकर बतिया लेना , आपके हार्ट के बहुत से ब्लॉकेज खोल देता है ! (बनिस्बत , सुबह की Running के )
..क्योंकि अवचेतन के रोग , दिनचर्या प्रबंधन से नही जाते !!

..बेफ़िक्री से बड़ा कोई प्रबंधन नही !!!

बेफिक्री फ़ैलाव है ,
वह आपकी आर्टरीज को भी फैलाती है !
भय , सिकुड़न है ,
वह आर्टरीज को भी नैरो करता है !

हमारे विचार , हमारी कोशिकाओं(cells) पर लगातार हैमरिंग करते हैं !
90% रोग ,मनो-दैहिक (Psycho-somatic) हैं !

हर व्यक्ति अनूठा है !
हर व्यक्ति की कार्य प्रणाली जुदा है !
अपने स्वभाव के अनुसार जिएं !

प्रबंधन , अहंकार की क्रिया है !
अहंकार हर चीज़ को नियंत्रित करना चाहता है !
खान-पान , दिनचर्या सब !!
..अहंकार से संचालित होना , बहुत छोटी मशीन से संचालित होना है ! व्यक्तिगत मन की मशीन से !
“प्रज्ञा ” से चलना , बड़ी मशीन से चलना है !
कॉस्मिक विज़डम से !

कॉस्मिक विज़डम स्वंय बताती है , किस व्यक्ति को .. कब , क्या ज़रूरी है !
प्रबंधनविद औऱ स्वास्थ्यविद तॊ सारे मनुष्यों को एक से नियम से बांध देते हैं !

..केवल ढोर ही एक साथ हांके जा सकते हैं , चैतन्य व्यक्ति नही !!
Be more Aware, Be more Loving, Be more Play full, Live LIFE to the fullest!!…

 

संकलनकर्ता

आशीष गुप्ता

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