-सरफराज अहमद सिद्दीकी
इस्लाम धर्म में अच्छा इंसान बनने के लिए पहले मुसलमान बनना आवश्यक है और मुसलमान बनने के लिए बुनियादी पांच कर्तव्यों का अमल में लाना आवश्यक है। पहला ईमान, दूसरा नमाज़, तीसरा रोज़ा, चौथा हज और पांचवा ज़कात। इस्लाम के ये पांचों कर्तव्य इंसान से प्रेम, सहानुभूति, सहायता तथा हमदर्दी की प्रेरणा देते हैं। रोज़े को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोज़ा यानी तमाम बुराइयों से परहेज़ करना। रोज़े में दिन भर भूखा व प्यासा ही रहा जाता है। इसी तरह यदि किसी जगह लोग किसी की बुराई कर रहे हैं तो रोज़ेदार के लिए ऐसे स्थान पर खड़ा होना मना है।
जब मुसलमान रोज़ा रखता है, उसके हृदय में भूखे व्यक्ति के लिए हमदर्दी पैदा होती है।रमज़ान में पुण्य के कामों का सबाव सत्तर गुना बढ़ा दिया जाता है। ज़कात इसी महीने में अदा की जाती है। रोजा झूठ, हिंसा, बुराई, रिश्वत तथा अन्य तमाम गलत कामों से बचने की प्रेरणा देता है। इसका अभ्यास यानी पूरे एक महीना कराया जाता है ताकि इंसान पूरे साल तमाम बुराइयों से बचे। कुरआन में अल्लाह ने फरमाया कि रोज़ा तुम्हारे ऊपर इसलिए फर्ज़ किया है, ताकि तुम खुदा से डरने वाले बनो और खुदा से डरने का मतलब यह है कि इंसान अपने अंदर विनम्रता तथा कोमलता पैदा करे?
रमजान के पूरे महीने कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है। इंसान रमजान की हर रात उससे अगले दिन के रोजे की नियत कर सकता है। बेहतर यही है कि रमजान के महीने की पहली रात को ही पूरे महीने के रोजे की नियत कर लें। अगर कोई रमजान के महीने में जानबूझ कर रमजान के रोजे के अलावा किसी और रोजे की नियत करे तो वो रोजा कुबूल नहीं होगा और ना ही वो रमजान के रोजे में शुमार होगा। बेहतर है कि आप रमजान का महीना शुय होने से पहले ही पूरे महीने की जरूरत का सामान खरीद लें, ताकि आपको रोजे की हालत में बाहर ना भटकना पड़े और आप ज्यादा से ज्यादा वक्त इबादत में बिता सकें।
रमजान के महीने में इफ्तार के बाद ज्यादा से ज्यादा पानी पीयें। दिनभर के रोजे के बाद शरीर में पानी की काफी कमी हो जाती है। मर्दों को कम से 2.5 लीटर और औरतों को कम से कम 2 लीटर पानी जरूर पीना चाहिए। इफ्तार की शुरुआत हल्के खाने से करें। खजूर से इफ्तार करना बेहतर माना गया है। इफ्तार में पानी, सलाद, फल, जूस और सूप ज्यादा खाएं और पीएं। इससे शरीर में पानी की कमी पूरी होगी। सहरी में ज्यादा तला, मसालेदार, मीठा खाना न खाएं, क्यूंकि ऐसे खाने से प्यास ज्यादा लगती है। सहरी में ओटमील, दूध, ब्रेड और फल सेहत के लिए बेहतर होता है रमजान के महीने में ज्यादा से ज्यादा इबादत करें, अल्लाह को राजी करना चाहिए क्यूंकि इस महीने में कर नेक काम का सवाब बढ़ा दिया जाता है।
रमजान में ज्यादा से ज्यादा कुरान की तिलावत, नमाज की पाबंदी, जकात, सदाक और अल्लाह का जिक्र करके इबादत करें। रोजेदारों को इफ्तार कराना बहुत ही सवाब का काम माना गया है। अगर कोई शख्स सहरी के वक्त रोजे की नियत करे और सो जाए, फिर नींद मगरिब के बाद खुले तो उसका रोजा माना जाएगा, ये रोजा सही है। रमजान के महीने को तीन अशरों में बांटा गया है. पहले 10 दिन को पहला अशरा कहते हैं जो रहमत का है। दूसरा अशरा अगले 10 दिन को कहते हैं जो मगफिरत का है और तीसरा अशरा आखिरी 10 दिन को कहा जाता है जो कि जहन्नम से आजाती का है। अगर कोई रोजेदार रोजे की हालत में जानबूझकर कुछ खा ले तो उसका रोजा टूटा जाता है, लेकिन अगर कोई गलती से कुछ खा-पी ले तो उसका रोजा नहीं टूटता है। अगर कोई बीमार शख्स रमजान के महीने में जोहर से पहले ठीक हो जाता है और तब तक उसने कोई ऐसा काम नहीं किया हो जिससे रोजा टूटता हो, तो नियत करके उसका उस दिन का रोजा रखना जरूरी है। अगर रोजेदार दांत में फंसा हुआ खाना जानबूझकर निगल जाता है तो उसका रोजा टूट जाता है । मुंह का पानी निगलने से रोजा नहीं टूटता है। अगर किसी लजीज खाने की ख्वाहिश से मुंह में पानी आ जाए तो उस पानी को निगलने से रोजा नहीं टूटता है। रमजान के महीने में इंसान बुरी लतों से दूर रहता है, सिगरेट की लत छोड़ने के लिए रमजान का महीना बहुत अच्छा है। रोजा रखकर सिगरेट या तंबाकू खाने से रोजा टूट जाता है। रोजे की हालत में दांत निकलवाने से रोजा मकरूह हो जाता है, या रोजे में कोई ऐसा काम करने से जिससे मुंह से खून निकलने लगे, इससे भी रोजा मकरूह हो जाता है। आपने अगर रोजे की हालत में पूरी तरह से गीले कपड़े पहन रखे हैं तो आपका रोजा मकरूह हो सकता है। कोई खाने की चीज जिसके खाने से रोजा टूट जाता है, जबरदस्ती किसी रोजेदार के हलक में डाल दिया जाए और वो उसे निगल जाए तो रोजा नहीं टूटता है।
अगर किसी रोजेदार को जान और माल के नुकसान की धमकी देकर कोई खाना खाने को मजबूर करता है और रोजेदार उस नुकसान से बचने के लिए खाना खा लेता है तो रोजा नहीं टूटता है। रमजान के महीने में नेकियों का सवाब 10 से 700 गुणा तक बढ़ा दिया जाता है। नफ्ल नमाज का सवाब फर्ज के बराबर और फर्ज का सवाब 70 फर्ज के बराबर हो जाता है। रमजान के महीने में अल्लाह अपने बंदों पर खास करम फरमाता है और उसकी हर जायज दुआ को कुबुल करता है। रमजान में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। रमजान में नमाज के बाद कुरान पाक की तिलावत की आदत डालें, इसका बहुत सवाब है। रमजान में कुछ वक्त निकालकर कुरान-ए-मजीद को सुनें, क्यूंकि रमजान का लम्हा-लम्हा इबादत और सवाब का है।
रमजान के महीने में कोशिश करें कि आप हर वक्त बा-वजू रहें. रात को जल्दी सोने की आदत डालें ताकि आप फज्र की नमाज के लिए उठ सकें। हर रात सोने से पहले अपने किए हुए आमाल के बारे में जरूर सोचें. अपने नेक आमाल पर अल्लाह का शुक्र अदा कीजिए और अपनी गलतियों और कोताहियों के लिए अल्लाह से माफी मांगिये और तौबा कीजिए। रमजान के महीने में रोजाना सद्दाका करने की आदत डालें, चाहे थोड़ा ही क्यूं ना हो इसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बनाएं। रमजान में नफ्ल नमाजों का तहाजुद की नमाज की तरह एहतेमाम करें, बहुत सवाब है. ज्यादा से ज्यादा वक्त कुरान और हदीथ, फिकह और इस्लामी किताबों के मुताले में गुजारें। किसी ऐसे आदमी को इफ्तार की दावत दें जो आपका जानकार हो, आप महसूस करेंगे कि आपके रिश्ते और भी मजबूत हो गए हैं। कोशिश करें कि घर में तमाम लोग एकसाथ आपस में मिलकर इफ्तार करें। रमजान में अपनी तमाम बुरी आदतों को छोड़ दें और इस बा-बरकत महीने का इस्तेमाल नेक कामों में करें।