भारत की सनातन संस्कृति में मानवीय मूल्यों की रक्षा करना, मानवतावादी सिद्धांत और हर मानव की संस्कृति की अर्थात दूसरी संस्कृतियों का भी सम्मान करना ही हमारे विनाश का कारण बन गया।
प्रशांत भूषण जैसे लोग नाम बहुत अच्छा है। प्रशांत और भूषण कितना प्यारा नाम हैै लेकिन यह कलंकित कर दिया इस व्यक्ति ने। क्योंकि इस व्यक्ति ने कभी भी भारत, भारतीयता और भारतवासियों के या सनातन संस्कृति के लिए कभी कोई काम नहीं किया हमेशा विरुद्ध ही कार्य किया है।
कई लोग हैरान हैं कि इस पोस्ट के लिए अवमानना का केस कैसे हो सकता है…??
तो समझाते है जब मैंने ये ट्वीट देखा तो मैं भी चौंक गया था कि सुप्रीम कोर्ट जज को एक मामूली नेता समझकर ट्रोल करने की औकात आखिर किसी की कैसे हो सकती है। यहाँ तो प्रशांत भूषण ने सारी हदें पार कर दीं थी।
गौर से देखिए, बाइक स्टैंड में है मतलब जज साहेब ने सिर्फ अपने बाइक प्यार के मोह में खड़ी बाइक पर फोटो खिंचाई है। खड़ी बाइक में हेलमेट जरूरी नहीं होता। मास्क की बात है तो उस समय मास्क बाइक पर फोटो खिंचाने के लिए ही उतारा गया था लोग बाइक से दूर खड़े हैं मतलब सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन हो रहा है तो फिर इतना ज़हरीला ट्वीट करने की जरूरत क्या थी…?
अब बताते है प्रशांत की दिक्कत क्या थी ? उनकी दिक्कत थी भाजपा नेता की बाइक और भाजपा नेता की बाइक पर जज साहेब का बैठना। जबकि बाइक भाजपा नेता की थी भी नहीं। जस्टिस साहब की रिटायरमेंट के बाद ऐसी शानदार बाइक खरीदने की इच्छा सुन डीलर ने दिखाने को भेजी थी।
क्यों भाई क्या जज एक सामान्य नागरिक की तरह अपनी इच्छा पूरी नहीं कर सकता ? मगर प्रशांत की नीयत जज साहेब के बहाने पूरे सुप्रीम कोर्ट सिस्टम को लपेटने की थी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने राममंदिंर को सोल्व किया, अनुच्छेद 370 पर विपक्षियों की दलीलों को नकार दिया। दर असल प्रशांत की नीयत इस बहाने सुप्रीम कोर्ट जज को भाजपा का गुलाम बताकर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को दबाव या लालच के कारण दिए फैसले बताने की थी सुप्रीम कोर्ट को मोदी सरकार का भक्त बताने की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस नीयत को तब भांपा जब लुटियन जोन और खान मार्केट गैंग के पत्रकारों ने इस पर बवाल मचाया और राममंदिर फैसले से बौखलाए लोगों की ज़हरीली प्रतिक्रियाएं नोटिस की…!
दरअसल ये ट्वीट, ट्वीट नहीं था बल्कि सुप्रीम कोर्ट के सम्मान के विरोध में सुप्रीम द्रोह था आम जनता को भड़काने , उकसाने और आग लगाने की शर्मनाक कोशिश थी।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के इस भड़काऊ ट्वीट पर अवमानना का स्वतः संज्ञान लेकर और अवमानना का दोषी करार देकर एक नई और उचित मिसाल पेश की है अब इससे आगे प्रशांत को सख्त सजा देकर सुप्रीम कोर्ट के सम्मान को बरकरार रखने की दिशा में कड़ा कदम होगा।
न्यायालय को अपने बाप की बपौती समझकर प्रयोग करने वाले ये प्रशांत जैसे वकील अधिवक्ताओं के नाम पर कलंक है। उस गरिमा का सदुपयोग ना करके इन्होंने अन्याय के दलाल के रूप में काम किया है। यह लोग क्षमा योग्य नहीं है। इन पर देशद्रोह का मुकदमा चले और कड़ी से कड़ी सजा इसको और उनके सभी साथियों को मिले। तभी न्याय व्यवस्था का शुद्ध और पवित्र रूप सामने देखने को मिलेगा। अन्यथा इनके जैसे लोग न्यायाधीशों को और न्याय व्यवस्था का सदैव मजाक उड़ाते रहेंगे और जनता को बरगलाते रहेंगे। जनमानस में न्याय के प्रति विश्वास जगा रहना चाहिए। यह तभी संभव है जब प्रशांत भूषण जैसे लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिले। अधिवक्ता है तो क्या न्यायालय का मजाक बनायेगा ???
गुरुजी भू