एक ही देश में अपने नागरिकों के लिये पक्षपाती कानून : जानिये वे कार्य जो एक मुस्लिम के लिए जायज है पर एक हिंदू के लिए अपराध।
कहने को तो हमारा देश धर्मनिरपेक्ष, पंथनिरपेक्ष देश है। जबकि कानून के दायरे को देखकर ऐसा लगता नहीं क्योंकि हम शायद धर्मनिरपेक्ष पंथनिरपेक्ष की परिभाषा करने में भूल कर रहे हैं। कोई बडी चूक कर रहे हैं और एक वर्ग विशेष को विशेष सुविधाएं दे रहे हैं। बहुसंख्यक समाज के हाथ काटने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं यह देश के कानून।
वैसे तो भारत का संविधान सबको बराबरी का अधिकार देने का वचन देता है पर यही संविधान देश में आम इंसानों के बीच में व्यभिचार पर सजा के मामले में भी पक्षपाती बन जाता है।
यहा भारतीय संविधान ने भारत में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार दिया है। हिंदू मैरिज एक्ट भी नागरिकों की विवाह के लिए जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता का सम्मान करता है परंतु भारतीय दंड संहिता इस स्वतंत्रता के विपरीत सीमाएं निर्धारित करती है।
ऐसा ही मामला है भारतीय दण्ड संहिता क़ी धारा 494 का
क्या है IPC क़ी धारा 494
इस धारा के मुताबिक यदि एक स्त्री या पुरुष अपने जीवनसाथी के जीवित रहते हुए, उससे विधिवत संबंध विच्छेद किए बिना दूसरा विवाह करता है तो ऐसे विवाह अपराध माना जाता है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 494 की परिभाषा
अगर कोई व्यक्ति (पति या पत्नी) पहली पत्नी या पति के जीवित रहते हुए दूसरा विवाह करता है/करती है, तब ऐसा विवाह करने वाला व्यक्ति धारा 494 के अंतर्गत दोषी होगा।
सजा भी होगी
इस अपराध में दोषी पति या पत्नी को 7 वर्ष की कारावास और जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
कैसे होता है भेदभाव
ये संपूर्ण प्रावधान लागू होंगे तो केवल हिन्दुओ पर अर्थात यदि कोई हिंदू पुरुष या हिंदू स्त्री अपनी मर्जी से दूसरा विवाह करें तो धारा 494 में व्यक्त प्रावधान लागू हो जाएंगे *पर यदि ये ही कार्य एक मुस्लिम पुरुष य़ा महिला करें तो ये धारा लागू ही नही होगी*
यानि यदि वह मुस्लिम नहीं है तो निश्चय ही सजा का पात्र है और मुस्लिम है तो ये सब उसके लिए जायज है
एक हिंदू पुरुष या स्त्री के लिए उक्त धारा से बचाव के लिए आवश्यक है कि-
(1) अगर पति-पत्नी का तलाक (विवाह विच्छेद) हो गया हो उसके बाद यदि पति या पत्नी दूसरा विवाह करते हों, तो यह अपराध नहीं होता है।
(2)पति य़ा पत्नि बिना किसी सूचना के लगातार सात य़ा अधिक वर्षों से अलग रह रहे हों
(इन सात वर्षों में न पति को पता होना चाहिए पत्नी कहाँ है न पत्नी को पता होना चाहिए पति कहाँ है, तभी वह नियम लागू होगा।)
(3) किसी भी प्रचलित कानूनी प्रक्रिया से सक्षम न्यायालय द्वारा अलग किया गया हो, या किसी पारम्परिक रीति के अनुसार विवाह विच्छेद हुआ हो।
यहां ध्यान देने योग्य बात है कि जहां हिंदू का एक पति/पत्नि के जीवित रहते दूसरा विवाह गैरकानूनी हो जाता है वहीं एक मुस्लिम एक पति/पत्नि के जीवित रहते दूसरा तो क्या चार विवाह कर सकता है और मजे क़ी बात है कि कानून उसे सही मानता है । सजा देना तो दूर क़ी बात उसे ये अधिकार कानूनी रूप से देता है।
समान आचार संहिता तुरंत लागू की जाए ताकि भारत के सभी नागरिकों को समान अधिकार मिल सके। उनके साथ किसी तरह का कोई भेदभाव ना हो। भारतीय संस्कृति उच्च कोटि के मापदंडों पर खरी उतरती रहे।
समानता का अधिकार लागू हो पर्सनल लॉ कानून खत्म हो।
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