*मकर के सूर्य! सुनो*
सनातन धर्म का आधार चार वेद और उसके छ दर्शन (योग, वैशैषिक, ज्योतिष, सांख्य, पूर्व और उत्तर मीमांसा) रहे हैं। इसके अंतर्गत मुख्य तीन पंथ हैं: जैन, बौद्ध और सिख। इन तीनों के मूल में सृष्टि की अद्भुत वैज्ञानिक परंपरा है (आकाशात् वायो:, वायो: अग्नि:, अग्ने:आप:, आप: पृथिवी, पृथिव्या ओषधय:, औषधिभ्यो अन्नम्, अन्नाद्रेतस:, रेतस:पुरुष:)। और यह भी कि ये तीनों समुदाय, ब्रह्म या शून्य या ओंकार से सृष्टि की उत्पत्ति और उसी में इसके विलय को मान्यता देते हैं; इसके अनेक रूपों की पूजा करने की आज्ञा देते हैं; और इस सृष्टि को अनादि मानकर (संस्कृत, प्राकृत, पाली या पंजाबी भाषा में) सम्मान करते हैं।
इसके समांतर अब्राहमिक परंपरा है। इसमें मोज़िज़ का यहूदी धर्म है, जीसस के अनुयायियों ने क्रिश्चियन धर्म पाया है, और मुहम्मद इस्लाम के पैग़म्बर हैं। इस परंपरा में सृष्टि का उदय ४००४ ईसा पूर्व में माना गया है – जो इन मसीहाओं के प्रभु (यहोवा, God) द्वारा एक सप्ताह में बनाई गई थी। इन तीनों के अनुयायियों को मसीहा द्वारा संपादित आदेशों का प्रश्न किये बिना पालन करना होता है, और यह भी लिखा गया है कि उन संपादित आदेशों को न मानने वालों को जीने का अधिकार नहीं: वो मानव वाजिबुल क़त्ल होते हैं!!!!
जैसे – जैसे विज्ञान और ज्ञान का विकास हो रहा है, मनुष्य जान चुका है कि यह सृष्टि अब्राहमिक मान्यताओं से कहीं अधिक पुरानी और भिन्न है। ये मान्यताएं उनकी अपनी बनाई प्रयोगशालाओं में सनातन परंपरा का पक्ष लेने लगती हैं।
एक दिन आएगा, और अवश्य आएगा जब धार्मिक ग्रंथों के आधार पर विचार होगा, विवाद नहीं; और मनुष्य पृथ्वी के प्रत्येक पदार्थ को आदर देगा, नफरत नहीं।
संपादन
हिमांशुराय रावल
मकर संक्रांति २०२१.