चैत्र वर्ष प्रतिपदा अर्थात चैत्र माह के शुक्लपक्ष की पड़िवा/ प्रथम दिन। इसे सृष्टि सृजक ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि आरम्भ का दिन भी माना जाता है। इसी दिन भारत के प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था। विक्रमादित्य लोक पालक और न्यायधर्मी राजा थे इस राज्याभिषेक दिवस को प्रजा ने संवत्सर के रूप में स्वीकार किया। यद्यपि यह दिन पहले से ही नए साल का पहला दिन मनाया जाता रहा है लेकिन बाद में यह दिन विक्रमादित्य के नाम पर विक्रम संवत स्वीकार किया गया। विक्रम संवत गगेरियन कलेंडर अर्थात अंग्रेज़ी कलेंडर(ईस्वी सन) से 57 वर्ष पहले है। भारत मे अनेक संवत्सर स्वीकार किये गए हैं। कुछ संवत्सर प्रचलन में हैं कुछ औपचारिक रूप से पंचांगों में पाए जाते हैं। सृष्टि अब्द, युगाब्द, कृष्ण संवत, युधिष्ठिर संवत, बुद्ध, महावीर, स्वतंत्र भारत (1947 से), शक संवत आदि।
भारत के विभिन्न अंचलों ने नव वर्ष मनाने के भी अलग अलग दिन मनाये जाते हैं। गुजरात मे दिवाली के अगले दिन नववर्ष दिवस मनाया जाता है। कुछ अंचलों में मकर संकान्ति के दिन, कहीं होली को आधार बनाया गया है, कहीं मेष संक्रांति अर्थात वैसाखी के दिन नव वर्ष आरंभ दिवस मनाया जाता है। बहुत लोग इस ज्ञान को समझने में कठिन पाते हैं। दरअसल भारत में काल गणना के मुख्यतः प्रचलित दो आधार हैं। एक चंद्रमा की गति पर जिसके माह को चान्द्रमास कहते हैं दूसरा सूर्य की गति पर, जिसे सौरमास कहते हैं। सौर मास के महीने मेष, वृष आदि 12 राशियों पर आधारित 12 महीने होते हैं। जिनका नाम पूर्णिमा के दिन उदित नक्षत्र के नाम पर होता है। जैसे जब पूर्णिमा के दिन चित्रा नक्षत्र हो तब चान्द्रमास और सौरमास में चैत्र माह, जब विशाखा नक्षत्र वाले दिन पूर्णिमा हो तब वैशाख माह, जेष्ठा नक्षत्र को पूर्णिमा होने से जेठ ….इत्यादि महीनों के नाम हैं।
चंद्रमा पृथ्वी की एक परिक्रमा 354 दिनों में पूरा करती है, जबकि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 365 दिनों में पूरी करती है, इसलिए चान्द्रमास और सूर्यमास में अंतर है। यह अंतर करीब 10 दिनों का होता है। यही कारण है कि 3 सालों में एक माह बढ जाता है जिसे मलमास या पुरुषोत्तम मास कहते हैं।
चान्द्रमास में कृष्ण पक्ष और शुक्लपक्ष नाम से दो पक्षों के दिन होते हैं जो चंद्रमा की चाल पर 27, 28 , 29/ दिन का माह हो सकता है। इस वर्ष विक्रम संवत के चान्द्रमास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा और सौर मास के वैशाख माह की संक्रांति 13 अप्रेल को है। ऐसा संयोग 90 वर्षों बाद आया है। यही दिन विक्रम संवत 2078 का प्रथम दिन भी है। इस संवत को “राक्षस” नाम दिया गया है। नव वर्ष के नव दिन का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। सूर्य इस दिन विषुवत रेखा में आ रहा है। साथ ही ज्योतिषीय गणना में सूर्य मेष राशि मे और बृहस्पति कुंभ राशि मे होने से हरिद्वार कुम्भ का विशेष पर्व भी हैं। कुम्भ स्नान का पूण्य हमारे शास्त्रों में वर्णित है। दान, पुण्य का भी है। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि भी शुरू हो रहे हैं। नवरात्रि में शक्ति की उपासना की हमारी प्राचीन परंपरा है। सिंधी समाज में वरुण देव झूलेलाल का अवतार दिवस भी इसी दिन मनाया जाता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, कर्नाटक में उगाड़ी (युगादि), कश्मीर में नवरेह, बंगाली सौरमास का पोहेला वैसाख, उत्तराखंड में बिखोत, गुरु अंगद देव जी का जन्म दिन, महर्षि दयानंद का जन्मदिन और असम में बोगाह बिहू भी इसी नवसंवत्सर को मनाये जाते हैं। हमारे देश मे अंग्रेज़ी नववर्ष को भारतीय लोग जिस उत्साह से मनाते है उस उत्साह से भारतीय नववर्ष को नही। इस पर समाज को व्यापक दृष्टि से सोचने की आवश्यकता है।
हम अपने रिश्तेदारों, परिचितों को मित्रों को शुभकामनाएं दी सकते हैं। कोरोना काल मे निर्धारित निर्देशों का पालन करते हुए चेटीचंद, नवरात्रि और कुम्भ मेले में शामिल हों, ताकि हमारी भारतीय परंपराएं आगे बढ़ सकें। आप सभी सपरिवार स्वस्थ रहें, समृद्ध रहें, प्रसन्न रहें। संसार मे दूसरों के प्रति भी प्रसन्नता का भाव रखे। भारतीय बने, स्वदेशी भावना को राष्ट्र के गौरव शिखर ताज ले जाएं, ताकि भारत में जो भी मानव,जीव जंतु, वनस्पति, प्रकृति आदि हैं सभी का कल्याण ही।