स्वदेशी अंतरिक्ष यान परीक्षण, हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक अंतरिक्ष यान विकसित किया है जिसे फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। जल्द ही इसका ‘लैंडिंग-प्रयोग’ होने वाला है।

इस पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान (आरएलवी) के सफल लैंडिंग प्रयोग के बाद इसके कक्षीय पुन: प्रवेश प्रयोग पर भी काम किया जाएगा। उन्हें जमीन से 3 किमी दूर हेलिकॉप्टर से ऊपर ले जाया जाएगा। फिर यह अपने आप नीचे आ जाएगा। सफल होने पर भारत न केवल अंतरिक्ष में एक उपग्रह लॉन्च करेगा बल्कि आसमान की रक्षा भी करेगा।

ऐसे वाहनों के जरिए दुश्मन के किसी भी सैटेलाइट को उड़ा सकते हैं। ये डायरेक्ट एनर्जी वेपन (DEW) को ऑपरेट कर सकते हैं। इसका मतलब है कि ऊर्जा-किरण दुश्मन की संचार तकनीक को नष्ट कर सकती है। बिजली ग्रिड को उड़ा सकती है या किसी कंप्यूटर सिस्टम को भी नष्ट कर सकती है।

यदि सब कुछ ठीक रहा, पुन: प्रयोज्य लॉन्च व्हीकल (आरएलवी) पूरी तरह से चालू हो जाएगा। यह आरएलवी उपग्रह को अंतरिक्ष में छोड़ कर वापस लौटेगा। ताकि इसे दोबारा इस्तेमाल किया जा सके। इससे अंतरिक्ष मिशन की लागत 10 गुना कम हो जाएगी।

भारत के स्व-निर्मित आरएलवी का नवीनतम संस्करण भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने में सक्षम होगा। रूस, अमेरिका, फ्रांस, चीन और जापान के बाद भारत इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाला छठा देश होगा।

आरएलवी, जिसने छह साल पहले 2012 में एक परीक्षण उड़ान भरी थी। यह 3 किमी. चला गया था। यह एक हाइपरसोनिक उड़ान थी। इसकी गति ध्वनि से पांच गुना तेज थी। वह 150 बार वापस आया। 6.5 मीटर अंतरिक्ष यान का वजन 1.3 टन है। यह बंगाल की खाड़ी में उतरा।

यह आरएलवी का एक प्रयोग है जिसमें अंतरिक्ष यान खुद नेविगेट करेगा और फिर कर्नाटक जाएगा। डिफेंस रनवे पर उतरेगा। इसके लिए वायुगतिकी की समझ की आवश्यकता है। इसकी एयर-क्रीम इसरो ने बनाई है।

SHARE