टीबी के चपेट में आये लोगों का सरकारी अस्पताल में मुफ्त में हुआ इलाज और पैसा भी मिला

-कटोरिया के रहने वाले बुजुर्ग प्रेम गोस्वामी टीबी को मात देकर हो गए हैं स्वस्थ
-अब दूसरे को भी इलाज कराने के लिए सरकारी अस्पताल जाने की दे रहे सलाह

बांका, 22 सितंबर

दो साल पहले टीबी के चपेट में आए बुजुर्ग प्रेम गोस्वामी अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं। पहले जब उन्हें पता चला कि टीबी की चपेट में आ गए हैं तो निजी अस्पताल का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां से राहत नहीं मिली। आखिरकार सरकारी अस्पताल आना पड़ा, जहां नौ महीने तक इलाज होने के बाद वह अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं। अब उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हो रही है।
कटोरिया के रहने वाले प्रेम गोस्वामी कहते हैं कि इस अवस्था में अगर कोई बीमारी हो जाती है तो मन में डर बैठ जाता है। इस वजह से पहले निजी अस्पताल गया। सोचा था कि वहां बेहतर इलाज हो सकेगा। किसी तरह पैसे का बंदोबस्त कर इलाज कराने के लिए गया था, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। आखिरकार कटोरिया रेफरल अस्पताल गया। वहां सुनील कुमार जी ने मेरी जांच करवाई और उसके बाद इलाज शुरू हुआ। इलाज के दौरान जांच से लेकर दवा तक के पैसे नहीं लगे। साथ ही जब तक इलाज चला, तब तक पांच सौ रुपये प्रतिमाह की राशि भी मिली। सरकार का मैं शुक्रगुजार हूं कि हम जैसे गरीब लोगों के लिए इतनी सुविधाएं दे रही है।
अब लोगों को भी कर रहे जागरूकः प्रेम गोस्वामी कहते हैं कि मैं बुजुर्ग व्यक्ति हूं, इसलिए समाज के प्रति मेरी जिम्मेदारी भी। इसलिए मैं हर किसी को बीमार पड़ने पर सरकारी अस्पताल ही जाने की सलाह देता हूं। मुझे तो टीबी की बीमारी थी, लेकिन अन्य बीमारियों का भी इलाज बेहतर तरीके से सरकारी अस्पतालों में होते मैंने देखा। साथ ही वहां के लोग भी काफी ध्यान रखते हैं। इससे मरीज को और भी अच्छा लगता है। इन्हीं कारणों से मैं लोगों को सरकारी अस्पताल जाने की सलाह दे रहा हूं।

टीबी के लक्षण दिखे तो जाएं सरकारी अस्पतालः जिला ड्रग इंचार्ज राजदेव राय कहते हैं कि टीबी को लेकर जिले में लगातार जागरूकता अभियान चल रहा है। टीबी के लक्षण दिखाई देने पर लोगों को इधर-उधर जाने के बजाय सीधा सरकारी अस्पतालों का रुख करना चाहिए। यहां पर दवा से लेकर हर तरह की व्यवस्था मरीजों के लिए मुफ्त में मिलती है। अच्छी बात यह है कि हाल के दिनों में कई ऐसे लोग देखे गए जो कि पहले निजी अस्पताल गए। वहां से ठीक नहीं हुए तो सरकारी अस्पताल आए। सरकारी अस्पतालों के इलाज से ठीक हुए। वैसे लोग भी समाज में जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं। यह काफी सकारात्मक पहल है।

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