समय पर दवा शुरू की तो छह महीने में टीबी से हो गए ठीक

-कटोरिया के अभिषेक कुमार अब पूरी तरह से हो गए हैं स्वस्थ्य
-रेफरल अस्पताल के एसटीएस सुनील कुमार की निगरानी में चला इलाज

बांका, 29 सितंबर

टीबी का अगर समय पर इलाज शुरू हो जाता है तो फिर मरीज छह महीने में ही ठीक हो जाते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण हैं कटोरिया के रहने वाले छात्र अभिषेक कुमार। स्नातक पहले वर्ष के छात्र अभिषेक को इसी साल जनवरी में टीबी होने की पुष्टि हुई। तत्काल उन्होंने अपना इलाज शुरू किया। सिर्फ छह महीने तक दवा चली औऱ अब वह पूरी तरह से स्वस्थ्य हैं। उन्हें किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हो रही है। उनका पूरा इलाज कटोरिया रेफरल अस्पताल के एसटीएस सुनील कुमार की निगरानी में हुआ।

एसटीएस सुनील कुमार कहते हैं कि जनवरी में अभिषेक अपनी जांच करवाने के लिए रेफरल अस्पताल कटोरिया आया था। जांच में जब टीबी की पुष्टि हो गई तो उन्हें तत्काल इलाज शुरू करने के लिए कहा। उन्होंने मेरी सलाह को माना और दवा शुरू कर दी। अब वह पूरी तरह से ठीक हैं। सुनील कुमार कहते हैं कि अभिषेक छात्र हैं। इस वजह से उन्होंने सलाह को तुरंत मान ली। इसका परिणाम भी दिख रहा है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बेहतर इलाज की चाहत में इधर-उधर भटकते हैं। इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है। ऐसे लोगों को ठीक होने में समय लग जाता है।
सरकारी अस्पताल में जब इतनी अच्छी सुविधा तो क्यों जाएं निजी अस्पतालः टीबी से ठीक हुए अभिषेक कहते हैं कि मैंने जिले में चल रहे जागरूकता अभियान और अखबारों के जरिये पढ़ा और सुना था कि टीबी का सबसे बेहतर इलाज सरकारी अस्पताल में ही होता है। इसलिए मैं सबसे पहले नजदीकी सरकारी अस्पताल गया। जहां एसटीएस सुनील कुमार की मदद मेरा सही इलाज हुआ और मैं ठीक हो गया। इलाज के लिए न तो पैसे लगे और न ही कोई जांच की फीस ली गई। ऊपर से दवा भी मुफ्त में दी गई। और तो और, जब तक दवा चली पांच सौ रुपये प्रतिमाह की राशि भी पौष्टिक आहार के लिए मिली। इतनी सुविधाएं सरकारी स्तर पर मिल रही हैं तो भला कौन निजी अस्पताल जाए। वहां पैसा भी काफी खर्च होता है और सरकारी अस्पताल जैसा इलाज की गारंटी भी नहीं रहता है। अब मैं आमलोगों को भी इस बारे में बता रहा हूं, ताकि टीबी की चपेट में आने वाले किसी व्यक्ति को आर्थिक तौर पर नुकसान नहीं उठाना पड़े।
जागरूकता कार्यक्रम का लोगों पर पड़ रहा असरः जिला ड्रग इंचार्ज राजदेव राय कहते हैं कि जिले के लोगों में धीरे-धीरे ये समझ विकसित हो रही है कि सरकारी अस्पताल में टीबी का बेहतर इलाज होता है। यह अच्छी बात है। लोगों पर जागरूकता कार्यक्रम का भी असर पड़ रहा है। सामुदायिक स्तर पर लोगों का जागरूक होना बहुती जरूरी है। अगर सामुदायिक स्तर पर लोग इस तरह के प्रयास करते हैं तो निश्चित तौर पर उसका फायदा सभी को मिलेगा और जिला 2025 तक टीबी से मुक्त हो जाएगा।

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