प्रकृति का समय प्रबन्धन अर्थात समय का नियम एकदम सही निर्धारण।
कृप्या समय निकाल कर पढ़े बहुत ही अच्छा ज्ञानवर्धक आलेख है। प्रकृतिक नियमों का शोध पत्र है।
प्रकृति के नियमोंनुसार प्रातः काल मल त्याग, स्नान, योग, प्राणायाम् , ध्यान, साधना, व्यायाम के लिए फिर दिन कार्य करने, परिश्रम करने, तथा सन्ध्या फिर से योग, प्राणायाम् , ध्यान, साधना, व्यायाम के लिए होता है। रात्रि विश्राम व शयन के लिए होती है। रात्रि में हमें भरपूर निंंद्रावस्था में ही रहना चाहिए। नींद को अर्धमृत्यु भी कहते है। अर्थात हर दिन थकान के उपरांत नींद में मृत्यु जैसा ही अनुभव होता है जिससे प्रातःकाल में नवजीवन, नवऊर्जा का सृजन होता है।
मानव को ईश्वर ने 400 वर्षो तक जीने का साधन दिया है। लेकिन हम अपने शरीर की देखभाल ठीक से प्रकृति के अनुकूल नही कर पाते है, इस लिये अकाल मृत्यु का शिकार बनते है।
रात्रि में सोने का सही समय 9 बजे से अधिकतम् 5 बजे तक होता है। स्मरण रहे 11 से 3 बजे के अन्तर्गत आपके रक्त संचरण का अधिक भाग यकृत/लीवर की ओर केन्द्रित होता है। जब लीवर अधिक खून प्राप्त करता है तब उसका आकार बढ़ जाता है। यह अतिमहत्त्वपूर्ण समय होता है जब आपका शरीर विष हरण की प्रक्रिया से गुजर रहा होता है। आपका लीवर, शरीर द्वारा दिन भर में एकत्रित विषाक्त पदार्थों को निष्क्रिय करता है और समाप्त भी करता है।
यदि आप 9 बजे सोते है तो 11बजे से ये काम स्वतः ही शुरू हो जाता है। तब आपके पास अपने शरीर को विषमुक्त करने के लिए पूरे चार घण्टे का पर्याप्त समय होता हैं।
यदि आप देर से सोते है तो भी 10 बजे सो जाना चाहिए। लेकिन हम तो अपने शरीर के शत्रु है। 12 बजे सोते हैं तो 3 घण्टे ही हमारे पास अपने शरीर के विष शोधन के बचते है।
यदि 1बजे सोते हैं तो मात्र 2 घण्टे ।
यदि हम 2 बजे सोते हैं तो केवल एक ही घण्टा विषाक्त पदार्थों की सफाई के लिए शरीर को मिलता है।
अगर आप 3 बजे के बाद सोते हैं तो आप बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्तिथि में है? दुर्भाग्य से आपके पास शरीर को विषमुक्त करने के लिए कोई समय नहीं बचा। यदि आप इसी तरह से सोना जारी रखते हैं, समय के साथ ये विषाक्त पदार्थ आपके शरीर में जमा होने लगते हैं।
क्या आप कभी देर तक जागे हैं? क्या आपने महसूस किया है कि अगले दिन आपको बहुत थकान होती है, चाहे आप कितने भी घण्टे सो लें ?
शरीर को विषमुक्त करने का पूरा समय न देकर आप शरीर की कई महत्त्वपूर्ण क्रियाओं से भी चूक जाते हैं। रोगो को आमंत्रित करते है।
प्रात:काल 3 से 5 बजे के बीच रक्त संचरण का केन्द्र आपके फेफडे होते हैं।
इस समय आपको ताज़ी हवा में साँस लेना चाहिए और व्यायाम करना चाहिए। अपने शरीर में अच्छी ऊर्जा भर लेनी चाहिए, किसी उद्यान में बेहतर होगा। इस समय हवा प्रदूषण मुक्त, एकदम ताज़ी और लाभप्रद शुद्धता से भरपूर होती है।
प्रात: 5 से 7 के बीच रक्त संचरण का केन्द्र आपकी बड़ी आँत की ओर होता है। आपको इस समय शौच करना चाहिए। अपनी बड़ी आँत से सारा अनचाहा मल बाहर कर देना चाहिए। अब आप अपने शरीर को दिन भर ग्रहण किए जाने वाले पोषक तत्वों के लिए तैयार करें।
सुबह 7 से 9 के बीच रक्त संचरण का केन्द्र आपका पेट या अमाशय होता है। इस समय आपको नाश्ता करना चाहिए। यह दिन का सबसे जरूरी आहार है। ध्यान रखें कि इसमें सारे आवश्यक पोषक तत्त्व हों। सुबह नाश्ता न करना भविष्य में कई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का कारण बनता है।
तो आपके पास अपने दिन की शुरुआत करने का आदर्श तरीका आ गया है। अपने शरीर की प्राकृतिक जैविक घड़ी का अनुसरण करते हुए अपनी प्राकृतिक दिनचर्या का पालन करने से शरीर स्वस्थ, बलिष्ठ, रोगमुक्त बनता है।
प्रकृति की गोद में , प्राकृतिक आहार लेकर स्वस्थ रहने का प्रयास करें।
शरीर के प्रति लापरवाही ना बरते।
प्रकृति की घडी का पालन करेंं।
स्वस्थ रहें, व्यस्त रहें, मस्त रहें।
लेखकः
श्री गुरुजी भू
प्रकृति प्रेमी, विश्वचिन्तक