स्कूलों के निर्माण के लिए 82 प्लाट खाली पड़े है दिल्ली सरकार के पास लेकिन एक भी प्लाट पर नया स्कूल खोलने का काम केजरीवाल सरकार ने क्यों नहीं किया।4 साल में 5 लाख बच्चे सरकारी स्कूलों में फेल हुए, जिनमें से 4 लाख छात्रों को दोबारा दाखिला नहीं दिया गया बताओ क्यो?मैं केजरीवाल से पूछना चाहता हूं कि अगर एक बच्चा परीक्षा में फेल हो गया तो क्या जिन्दगी में फेल हो गया, यह फेल है या जेल है ?
1028 स्कूलों में से 800 स्कूलों में प्रिंसिपल नहीं है, 27,000 से ज्यादा टीचर्स की पोस्ट खाली पड़ी है ऐसे में दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था कैसे बेहतर होगी ?
तरंग : नई दिल्ली, भारतीय जनता पार्टी दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष श्री मनोज तिवारी ने आज केजरीवाल सरकार द्वारा शिक्षा को लेकर किये जाने वाले तमाम खोखले दावों की पोल खोलते हुये कहा कि दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था चरमरा उठी है और केजरीवाल इसके जिम्मेदार है। केजरीवाल की जब कोई तारीफ नहीं करता है तो वो अपनी तारीफ खुद भी कर लेते है जबकि जमीनी हकीकत कुछ और होती है। शिक्षा को लेकर बड़ी बड़ी कसीदे पढ़ने वाले मुख्यमंत्री दिल्ली के लोगों को यह तो बताओं कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने जो नये 500 स्कूल और 20 नये कॉलेज खोलने की बात कहीं थी वो दिल्ली में कहा बन रहे है। दिल्ली सरकार के पास स्कूलों के निर्माण के लिए 82 प्लाट खाली पड़े है लेकिन एक भी प्लाट पर नया स्कूल खोलने का काम केजरीवाल सरकार ने नहीं किया है। दिल्ली के लोगों से किये वादे के अनुसार केजरीवाल को स्कूल बनाने चाहिए थे लेकिन आरोप प्रत्यारोप की राजनीति में आम आदमी पार्टी की सरकार ने साढ़े चार वर्ष निकाल दिये। झूठ बोलने की एक सीमा होती है और उस सीमा को केजरीवाल पार कर दिल्ली के लोगों को गुमराह करने के लिए हर मुमकिन प्रयास कर रहे है।
श्री तिवारी ने कहा कि दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने का दावा कर रही आम आदमी पार्टी के दावे से इतर पार्टी के विधायकों का शिक्षा स्तर में बढ़ोतरी के प्रति कोई रुझान नजर नहीं रहा है। गैर सरकारी संगठन प्रजा डॉट ओआरजी के अनुसार वर्ष 2015 में आयोजित हुए सभी विधानसभा सत्रों में शिक्षा से जुड़े मात्र 87 सवाल पूछे गए थे। जिनमें से सबसे अधिक प्रश्न भाजपा विधायकों ने पूछे थे,जबकि आम आदमी पार्टी के 28 विधायकों ने एक भी सवाल नहीं पूछा। छह विधायकों ने एक सवाल पूछकर महज खानापूर्ति ही की। प्रजा डॉट ओआरजी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इन सवालों में तीन सवाल नए स्कूल संबंधी थे। विद्यार्थियों के मुद्दों से संबंधित सिर्फ दो सवाल ही विधानसभा में पूछे गए थे। दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को लेकर विधायकों की नीरसता स्पष्ट करती है कि इस मुद्दे पर सरकार ही गंभीर नहीं है। सरकार का दायित्व होता है कि विद्यार्थी स्कूल में आएं, लेकिन केजरीवाल सरकार गठित होने के बाद से स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या लगातार नीचे गिर रही है। असल में शिक्षा क्षेत्र में सरकार की भूमिका क्या होनी चाहिए, सरकार अभी तक यहीं नहीं समझ पाई है। इसी आधार पर समझा जा सकता है कि सत्ताधारी पार्टी के विधायकों की गंभीरता कैसी हो सकती है।
श्री तिवारी ने कहा कि एक जानकारी के अनुसार पिछले 4 साल में 5 लाख बच्चे सरकारी स्कूलों में फेल हुए हैं, जिनमें से 4 लाख बच्चों को दोबारा दाखिला नहीं दिया गया। इन बच्चों का भविष्य क्या होगा। सरकार ने इन बच्चों का हाथ छोड़ दिया है। जो केजरीवाल सरकार शिक्षा के स्तर को सुधारने की बात करती है, उसमें कितने बच्चे फेल हुए यह खुद ही जान लीजिए। दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद भी सरकारी आंकड़ों के अनुसार 9वीं में जो बच्चे फेल हुए, उनमें से 52 प्रतिशत को दोबारा दाखिला नहीं मिला, 10वीं, 12वी के 91 प्रतिशत और 11वी के 58 प्रतिशत बच्चों को दोबारा दाखिला नहीं दिया गया। कक्षा 10वीं में 2017-18 में फेल हुये छात्रों की संख्या 42,503 थी, फेल हुये छोत्रों की संख्या जिन्हें 2018-19 में दोबारा दाखिला नहीं मिला 38,691 थी, उन फेल छात्रों का प्रतिशत जिन्हें वर्ष 2018-19 में दोबारा दाखिला नहीं मिला 91 प्रतिशत रहा। इसी प्रकार कक्षा 12वीं 2017-18 में फेल हुये छात्रों की संख्या 10,566 थी, फेल हुये छोत्रों की संख्या जिन्हें 2018-19 में दोबारा दाखिला नहीं मिला 9,623 थी, उन फेल छात्रों का प्रतिशत जिन्हें वर्ष 2018-19 में दोबारा दाखिला नहीं मिला 91 प्रतिशत रहा।
श्री तिवारी ने कहा कि जो बच्चे फेल हो गए हैं और जिनको दिल्ली में केजरीवाल सरकर ने दोबारा दाखिला नहीं दिया है, उन बच्चों के अभिभावकों का एक सम्मेलन किया गया। मैं केजरीवाल से पूछना चाहता हूं कि अगर एक बच्चा परीक्षा में फेल हो गया तो क्या जिन्दगी में फेल हो गया। यह फेल है या जेल है ? इन बच्चों के गरीब माता-पिता को भी यह पता चले कि केजरीवाल सरकार किस तरह से उनको धोखा दे रही है। 1028 स्कूलों में से 800 स्कूलों में प्रिंसिपल नहीं है, जबकि वाइस प्रिंसिपल को प्रमोट किया जा सकता है। जिन स्कूलों में प्रिंसिपल हैं उनमें से भी 78 प्रिंसिपल को डिप्टी डायरेक्टर एजुकेशन का ओएसडी बनाकर स्कूलों से दूर कर दिया गया है। एक स्कूल बिना प्रिंसिपल के कैसे चलेगा। आज भी 27,000 से ज्यादा टीचर्स की पोस्ट खाली पड़ी है। 27,000 टीचर्स की भर्ती समय से नहीं की गई, इसलिए गेस्ट टीचर्स रखे गए। दिल्ली सरकार के एक विभाग के आंकड़ों के अनुसार पीजीटी मैथ्स के लिए 135 में से एक भी टीचर पास नहीं हुआ। दिल्ली स्कूल एजुकेशन रूल 138 के अन्तर्गत जो बच्चे फेल जो जाएं, स्कूल उनको दोबारा दाखिला देने से मना नहीं कर सकता। जो बच्चे फेल हो रहे हैं, उनको दाखिला नहीं दिया जा रहा। यह एक क्रिमिनल ओफेंस है। बच्चों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे नेशनल ओपन स्कूल से पढ़ाई करें या घर बैठ जाएं। एक क्लास में 80 से 100 बच्चे हैं। तीन शिफ्ट में बच्चे पढ़ते हैं। सोमवार को 30, मंगलवार को 30 और बुधवार को 30 बच्चे। तो इस तरह से पढ़ाई क्या होती होगी।