-जन्म के पहले घंटे के भीतर का स्तनपान, बनेगा जीवन का वरदान
-छह महीने तक बच्चे को ऊपर से पानी देने की भी नहीं है जरूरत
बांका, 03 दिसंबर
सर्दी का मौसम शुरू हो गया है। ऐसे मौसम में सभी लोग सावधानी बरत रहे हैं। ऐसे मौसम में शिशुओं के भी पोषण का खास ख्याल रखा जाना जरूरी है। शिशुओं के लिए आधारभूत पोषण में स्तनपान सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। बच्चे के सम्पूर्ण शारीरिक और मानसिक विकास के लिए मां का दूध बहुत ही जरूरी है।
मां के दूध के अलावा छ्ह माह तक के बच्चे को ऊपर से पानी देने की भी जरूरत नहीं होती है। स्तनपान कराने से बच्चे में भावनात्मक लगाव पैदा होता और उसे यह सुरक्षा का बोध भी कराता है। शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी डॉ. सुनील कुमार चौधरी कहते हैं कि बच्चे को छह माह सिर्फ स्तनपान ही कराना चाहिए। ऊपर से पानी तक नहीं देना चाहिए। ऐसा करने से शिशु को दस्त और निमोनिया के खतरे में क्रमशः 11 और 15 फीसद कमी लायी जा सकती है।
लेबर रूम से ही करायी जा रही स्तनपान की शुरुआत: डॉ. चौधरी कहते हैं कि डायरिया व निमोनिया से बचाव के लिए स्तनपान बहुत अधिक कारगर है। मां के दूध की महत्ता को समझते हुए स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी यह सुनिश्चित कराया जा रहा है कि जन्म के तुरंत बाद बच्चे को मां की छाती पर रखकर स्तानपान की शुरुआत लेबर रूम के अंदर ही करायी जाए। इसके अलावा मां को स्तनपान की स्थिति, बच्चे का स्तन से जुड़ाव और मां के दूध निकालने की विधि को समझाने में भी नर्स द्वारा पूरा सहयोग किया जाता है, ताकि कोई भी बच्चा अमृत समान मां के दूध से वंचित न रह जाये।
बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है मजबूतः डॉ. चौधरी ने बताया कि यदि बच्चे को जन्म के पहले घंटे के अंदर मां का पहला पीला गाढ़ा दूध पिलाया जाये तो ऐसे बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। बच्चे को छ्ह माह तक लगातार केवल मां का दूध दिया जाना चाहिए और उसके साथ किसी अन्य पदार्थ जैसे पानी, घुट्टी, शहद, गाय अथवा भैंस का दूध नहीं देना चाहिए, क्योंकि वह बच्चे के सम्पूर्ण मानसिक एवं शारीरिक विकास के लिए सम्पूर्ण आहार के रूप में काम करता है।
बच्चे को हर डेढ़ से दो घंटे में भूख लगती है। इसलिए बच्चे को जितना अधिक बार संभव हो सके, मां का दूध पिलाते रहना चाहिए। मां का शुरुआती दूध थोड़ा कम होता है, लेकिन वह बच्चे के लिए पूर्ण होता । अधिकतर महिलाएं यह सोचती हैं कि उनका दूध बच्चे के लिए पूरा नहीं पड़ रहा है और वह बाहरी दूध देना शुरू कर देती जो कि एक भ्रांति के सिवाय और कुछ नहीं है। मां के दूध में भरपूर पानी और पोषक तत्व होते हैं, इसलिए बच्चे को बाहर का कुछ देने की जरूरत नहीं होती।