जूलियस सीजर की मुलाकात जब खगोलविदों से हुई तो उसे बताया गया कि सूर्य का चक्कर लगाने में धरती 365 दिन और छह घंटे लगाती है। इसे ही ध्यान में रखते हुए साल में 10 की बजाय 12 महीने शामिल किए गए।
1 जनवरी यानी आज से नए साल 2023 का आगाज हो चुका है। लेकिन क्या आप जानते हैं, नए साल की शुरुआत पहले जनवरी से नहीं, बल्कि किसी और महीने से होती थी और न केवल महीना, बल्कि नए साल की तारीख भी अलग हुआ करती थी। वर्षों बाद कैलेंडर में बदलाव हुए हुए और तब जाकर एक जनवरी से नया साल मनाया जाने लगा।
नया साल मनाने की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 से हुई थी. इससे भी पहले साल की शुरुआत मार्च महीने से हुआ करती थी। खबरों के अनुसार, रोम के राजा नूमा पोंपिलस ने बाद में रोमन कैलेंडर में जरूरी बदलाव किए और तब जाकर इस कैलेंडर में जनवरी शामिल हुआ. फिर जनवरी को ही साल का पहला महीना माना जाने लगा।
आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि पहले इस कैलेंडर में केवल 10 महीने ही हुआ करते थे- मार्च से लेकर दिसंबर तक साल महज 310 दिनों का हुआ करता था। जनवरी से नए साल की शुरुआत रोमन शासक जूलियस सीजर ने की थी।
लियस सीजर की मुलाकात जब खगोलविदों से हुई तो उसे बताया गया कि सूर्य का चक्कर लगाने में धरती 365 दिन और छह घंटे लगाती है। इसे ही ध्यान में रखते हुए साल में 10 की बजाय 12 महीने शामिल किए गए यानी 310 दिन की बजाय 365 दिन का साल होने लगा। बचे 6 घंटों को चार साल में जोड़कर चौथे साल को 366 दिन का कर दिया गया, जिसे लीप ईयर कहा जाता है।
1582 में ही पोप ग्रेगरी को जूलियस कैलेंडर में लीप ईयर को लेकर थोड़ी गलती की जानकारी हुई। तब के धर्म गुरू सेंट बीड ने उसे बताया कि एक साल 365 दिन और 6 घंटे का नहीं, बल्कि 365 दिन 5 घंटे, 46 सेकंड का होता है। इसे ध्यान रखते हुए फिर से थोड़ा बदलाव किया गया। रोमन कैलेंडर में इस बदलाव के साथ नया कैलेंडर बनाया गया और एक जनवरी से नया साल मनाने की परंपरा शुरू हुई।