कूटनीतिक विजय : ३७० / ३५ ए भारत और मित्र राष्ट्रों का समर्थन
UN सिक्योरिटी काउंसिल में चीन द्वारा कश्मीर पर बन्द दरवाजों के अंदर बुलाई गयी मीटिंग में भारत के पक्ष में सबसे प्रबल व् सशक्त आवाज उठाने वाले थे फ्रांस व् अमेरिका,
इसके बाद रूस ने तो वर्तमान में विश्व में अपने सबसे अच्छे मित्र चीन द्वारा भारत के विरुद्ध बुलाई मीटिंग में चीन का ही विरोध किया और कश्मीर को भारत का आन्तरिक विषय बोल दिया,
हमनें अक्सर बहुत सारे लोगों को भारत की विदेश नीति और विभिन्न देशों के संग संबंधों पर यह कहते सुना है की अमेरिका पर भरोसा नहीं किया जा सकता और भारत को अमेरिका से संबंध नहीं बढ़ाने चाहिए, अमेरिका संग डिफेंस डील्स या तो नहीं अथवा सीमित करनी चाहिए।
ऐसी ही बातें मैंने भारत के रूस संग संबंधों पर भी सुनी हैं जिसमे तर्क यह होता है की क्योंकि रूस रक्षा उपकरण बेचकर उसके स्पेयर्स की कीमतें कई गुना बढ़ा देता है, इसीलिए भारत को रूस में निवेश व् रूस संग डिफेंस डील नही करनी चाहिए।
जब फ्रांस के संग रक्षा सौदों की बात आती है तो लोग उस पर भी भारत को कदम पीछे खींचकर कम गुणवत्ता वाले स्वदेशी उपकरण प्रयोग की वकालत करते हैं।
आईये अब जरा इन तीनो ही देशों के भारत संग समीकरणों पर एक दृष्टि डाल लेते हैं:-
अमेरिका और भारत के बीच ट्रेड व् टेक्सेशन को लेकर असहमतियां और विवाद हैं, और इसे कोई इंकार नहीं कर सकता, परंतु हम सबमें से कितने लोगों ने यह नोटिस किया कि पिछले 5-7 वर्षों में हर वैश्विक मंच पर अमेरिका भारत के संग खड़ा रहा है, भारत को उच्च गुणवत्ता का न्यूक्लियर इंधन ऑस्ट्रेलिया, कनाडा व् जापान से दिलवाने में अमेरिका का एक बड़ा रोल है, (बता दूँ की उसी रॉ न्यूक्लियर फ्यूल के न्यूक्लियर रिएक्टर में प्रोसेस होने के बाद परमाणु हथियारों के निर्माण हेतु आवश्यक फिज़ल मटीरियल प्राप्त होता है)
भारत को मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम, वासेनार अग्रीमेंट और ऑस्ट्रेलियन ग्रुप का सदस्य बनाने हेतु अमेरिका की लॉबीइंग जग जाहिर है और न्यूक्लियर सप्पलायर ग्रुप और यूनाइटेड नेशन सिक्युरिटी काउंसिल में भारत की परमानेंट सदस्यता के लिए अमेरिका खुलकर भारत के लिए बैटिंग करता नजर आया है, अमेरिका ने भारत के संग महत्वपूर्ण रक्षा समझौते साइन किए हैं जो भारत को अमेरिका के नैटो अलाय के समतुल्य दर्जा देते है, अमेरिका ने विश्व के सबसे बड़े नेवल बेस अपने डिएगो गार्सिया का एक्सेस भारतीय नेवी को दिया हुआ है।
भारत द्वारा अमेरिका संग किये गये किसी भी रक्षा सौदे में ना डिलीवरी में कोई देर हुई, न मेंटेनेंस, स्पेयर्स व् ट्रेनिंग में अब तक कोई समस्या आयी है, चाहें हम C 130J सुपर हरक्यूलिस, C 17 ग्लोबमास्टर, P8 i, अपाचे, चिनूक, अल्ट्रा लाइट होवित्जर, किसी भी सौदे को ले लें, वे सभी पूरे प्रोफेशनलिज़्म संग पूरे किये गए।
अब यदि रूस की बात करें तो यह बात सही है कि रुसी रक्षा सौदों में डिलीवरी समय पर नहीं करते, स्पेयर्स के दाम बढ़ा देते हैं, और रुस संग हुए रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार की बातें निकल कर सामने आती रही है, किन्तु वह भ्र्ष्टाचार गांधी परिवार व् कांग्रेस की ही देन थी, आपको यह भी समझने की आवश्यकता है कि रुसी लंबी समय तक तक कम्युनिस्ट शासन के अंतर्गत रहे हैं और प्रोफेशनलिज़्म उनका “फोर्टे” नहीं है।
परंतु यह बात भी सत्य है की भारत के रूस से संबंध दशकों पुराने हैं, आज भी हमारा 65% मिलिट्री हार्डवेयर रुसी/सोवियत संघ का है, विश्व के हर बड़े मंच पर रूस सदैव भारत के पक्ष में खड़ा रहा है और उसका वीटो भारत के पक्ष में ही गिरा है, यह बात भी आप नकार नहीं सकते की रूस अपनी उन्नत टॉपनॉच डिफेंस टेक व् उपकरण भारत को उपलब्ध कराता रहा है, उदाहरण के तौर पर भारत का सुखोई30 MKI जो कि 3D वेक्टर ट्रस्ट से लैस है वह रूसी वायु सेना के उसी श्रंखला के सुखोई से भी उन्नत है, ब्रह्मोस जैसा अतुलनीय अस्त्र भारत को रूसी सहायता से प्राप्त हुआ, S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम में 380 किमी क्षमता की 40N6E मिसाइल रूस ने केवल भारत को ही दी है(जी हाँ चीन को 40N6E नही बेची गयी है)
इसके अलावा आप मुझे दुनिया में कोई एक ऐसा उदाहरण दिखा दीजिए जिसमे किसी देश ने अपनी न्यूक्लियर सबमरीन दूसरे देश को लीज पर दे दी हो, ऐसा पूरी दुनिया में एक ही उदाहरण है जब रूस द्वारा भारत को लीज़ पर अपनी परमाणु पनडुब्बी आईएनएस चक्र दे दी गयी थी, और आज भारत उसीके विकसित मॉडल को आधार बनाकर अपनी खुद की न्यूक्लियर सबमरीन बना रहा है और उन्हें ऑपरेट कर रहा है।
फ्रांस की बात करें तो वह कई दशकों से बिना किसी विवादास्पद बैकग्राउण्ड के भारत के संग खड़ा रहा है, पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद पूरे यूरोप में फ्रांस अकेला देश था जिसने भारत का पक्ष लिया और भारत पर न कोई प्रतिबंध लगाए और अन्य देशों द्वारा भारत पर लगाए प्रतिबंधों का विरोध किया था, 1999 कारगिल युद्ध में वैश्विक दबाव के बावजूद फ्रांस ने भारतीय वायु सेना को जैगुआर और मिराज के स्पेयर्स की सप्पलाई निर्बाध जारी रखी, भारत पर वैश्विक प्रतिबंध के बाद भी न्यूक्लियर फ्यूल और न्यूक्लियर रिएक्टर भारत को उपलब्ध करवाये, राफाल डील के अंतर्गत फ्रांस द्वारा जब भारत को न्यूक्लियर मिसाइल ASMP-A उपलब्ध करवाई गयी और चीन ने उसका विरोध किया और UN में विषय उठाने की धमकी दी तो फ्रांस ने चीन को न केवल भारत के उत्कृष्ट रिकॉर्ड का हवाला दिया अपितु चीन द्वारा UN में लाये किसी विरोध प्रस्ताव पर अपना वीटो प्रयोग करने की भी धमकी दी थी।
मैं हमेशा से मानता हूं कि ग्लोबल डिप्लोमेसी में ना कोई परमानेंट मित्र होता है, ना ही कोई परमानेंट शत्रु, वैश्विक डिप्लोमेसी पारस्परिक हितों की पूर्ति हेतु उठाए गए कदमों की श्रंखला का ही नाम है, वर्तमान समय में अपने हितों को साधने के लिए भारत को सभी बड़े देशों के संग सौहार्दपूर्ण संबंध बनाने की आवश्यकता है और ट्रेड उसमे बहुत बड़ा रोल प्ले करता है, जिसे भारत बखूबी इस्तेमाल कर वैश्विक मंचों पर विश्व की हर बड़ी शक्ति को अपने पक्ष में करके अपने हितों की पूर्ती कर रहा है, और यही सफल ग्लोबल डिप्लोमेसी की कुंजी भी है।
पिछले तीन दिनों में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और फॉरेन सेक्रेटरी विजय गोखले ने यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल के सभी सदस्यों को फोन कर कश्मीर पर भारत का पक्ष अवगत कराया, एस जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री वांग-यी से भी इस विषय पर बात की थी, किंतु उसके बावजूद चीन इस विषय पर UN सिक्योरिटी काउंसिल में बंद दरवाजे के पीछे कश्मीर पर बैठक कराने चला गया, जहां भारत की सफल कूटनीति के कारण चीन को यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल में किसी भी वीटो धारक देश का साथ तक नहीं मिला अमेरिका, फ्रांस, रूस व् ब्रिटेन सब भारत के पक्ष में ही खड़े थे।
संकलन
गुरुजी भू