कहते हैं कि कश्मीर पहले बहुत बड़ा जलसर था जिसके तटों को कश्यप ऋषि द्वारा तोड़, जलनिकासी कर उसे रहने योग्य बनाया गया। इस जनश्रुति के भूवैज्ञानिक प्रमाण भी हैं।
वहाँ पहले नाग बसे, तदुपरांत पिशाच एवं अन्त में सभ्य मानव। पिशाच कच्चा मांस खाने वालों को कहते हैं। नाग सबसे पहले प्राकृतिक जल उद्गारों के पास बसे होंगे। उनके कारण या आकार के कारण, वहाँ के अनेक स्थानों के नाम में नाग लगा हुआ है। अनंतनाग तो शेषनाग ही हैं।
कश्मीर को आधुनिक पिशाचों से मुक्त कराने की दिशा में बड़ा पग उठाने हेतु आज नागपञ्चमी के दिन से अच्छा दिन हो ही नहीं सकता था।
शैव कश्मीर हेतु पञ्चमुखी शिव ध्यान में आते हैं, आगमों एवं पुराणों में उनके पाँच मुखों का सम्बंध पाँच तत्त्वों से भी है।
शिवपुराण नाम गिनाता है-
सद्योजातस्यतत्स्थानंपञ्चमावरणंपरम् ॥ १,१७.११२
वामदेवस्यचस्थानंचतुर्थावरणंपुनः ॥ १,१७.११२
अघोरनिलयंपश्चात्तृतीयावरणंपरम् ॥ १,१७.११३
पुरुषस्यैवसांबस्यद्वितीयावरणंशुभम् ॥ १,१७.११३
ईशानस्यपरस्यैवप्रथमावरणंततः ॥ १,१७.११४
ध्यानधर्मस्य च स्थानंपञ्चमंमंडपंततः ॥ १,१७.११४
सद्योजात, वामदेव, अघोर, साम्ब एवं ईशान। वास्तव में आज हर गोत्रलुप्त के गोत्र बने कश्यप की धरती भरतों की भूमि से पाँच तत्वों के साथ एक होने चली है।
इस दिन के चयन हेतु सबको मोदी जी का आभारी होना चाहिये। प्रतीकात्मकता बहुत महत्वपूर्ण है।
✍🏼गिरिजेश राव
आयोजन में आये लोग मेरे परिचित थे, बुलाने वाले परिचित थे और वार्ता राहुल पंडिता की थी। अपने ही जान-पहचान वालों के आयोजन में लोग असहज करने वाले सवाल नहीं करते। हम ठहरे आदत से लाचार जीव, तो चुप कैसे रहते? लोकसभा चुनावों का वक्त था और राहुल पंडिता ने जब अपना भाषण ख़त्म किया तो लोगों ने कश्मीर और कश्मीर के हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों से सम्बंधित कई सवाल करने भी शुरू किये। मौका मिलते ही हमने पूछ लिया कि जब इतने अन्याय हो रहे थे तो क्या एक भी कश्मीरी पण्डित ने सशस्त्र विरोध की बात नहीं सोची? क्या एक भी नहीं?
हमें उस दिन जवाब नहीं मिला था। सवाल करते ही प्रतिक्रिया ऐसी आती है जैसे नयकी बहुरिया से जेठ जी ने कुछ पूछ लिया हो! बिलकुल अनदेखा। आम तौर पर मेरे सवाल टाल ही दिए जाते हैं। इस सवाल के जवाब की मेरी तलाश जारी रही। फिर एक दिन सम्मुख (https://twitter.com/maidros78?s=17) ने एक ट्विटर थ्रेड में इस सवाल का जवाब लिख दिया।
अब हम बता सकते हैं कि सिकंदर बुतशिकन और उसके जेहादी गुर्गे सुहा के खिलाफ निर्मालाचार्य लड़े थे। वो हार गए थे और उनको पकड़ने पर उनका शरीर आरे से चीर कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया था। नहीं ये आरे से चीरा जाना अतिशयोक्ति हरगिज नहीं है क्योंकि 25 जून 1990 को कश्मीरी पण्डित गिरिजा टिक्कू का शव बिलकुल इसी तरीके से काटा हुआ मिला था। गिरिजा टिक्कू को भी जीवित अवस्था में, पैर की तरफ से आरी से काटा गया था। निर्मालाचार्य का जिक्र राजतरंगिनी में आता है।
कंथाभट्ट ने सिकंदर बुतशिकन द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन करवाए गए लोगों को वापस हिंदुत्व में लाना शुरू किया था। उन्हें और उनके निहत्थे साथियों को शम्सउद्दीन इराकी ने क़त्ल कर डाला था। शम्सउद्दीन शब्द शम्स और दीन को मिलाकर बनता है, इसका मतलब खुद ढूंढ लें। बाद में महानंद धर ने राजा सुखजीवन की मदद की और उन्होंने अब्दाली के सेनानायकों से गद्दी छीन ली। महानंद धर ने जनसँख्या के संतुलन के लिए बाहर से कई लोगों को लाकर, पहाड़ी क्षेत्रों के दुर्गम होने पर भी कश्मीर में बसाया था।
बीरबल धर और उसके चाचा मिर्ज़ा पण्डित ने मिलकर सिक्खों के कश्मीर पर आक्रमण का इंतजाम किया था। रास्तों-किलों की जानकारी से लेकर कई गुप्त सूचनाएँ उनके देने की वजह से ये लड़ाई जीती गयी थी। लड़ाई अब भी जारी है। समस्या ये है कि हम अपनी ओर से लड़ने वालों के नाम भूलते क्यों रहे हैं? युद्ध किसी अहिंसा के उद्घोष से नहीं जीते जाते। अक्सर ये रक्तपात का मसला होगा। ऐसा लगता है कि बरसों तक अधूरी अहिंसा का पाठ पढ़ते-पढ़ते हम योद्धाओं पर गर्व करना भूल गए हैं। और क्या वजह हो सकती है कि एक तरफ तो “शहीदों की मज़ारों पर लगेंगे हर बरस मेले” की बात हो और दूसरी तरफ जब नाम पूछा जाए तो लोग दो-चार नाम भी न गिनवा पायें?
बाकी एक बचपन में पढ़ी कविता भी याद आती है –
“आजादी का संग्राम कहीं पैसे पर खेला जाता है?
ये शीश कटाने का सौदा, नंगे सर झेला जाता है!”
हाँ, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” कहने वाले नायक पर लिखी गयी कविता ही थी, याद कीजिये, नाम भी याद आयेंगे!
✍🏼आनन्द कुमार
कश्मीर के म्लेच्छ आक्रमण-
(१) १४४० ई.पू. में-राजतरङ्गिणी, तरंग १-
प्रपौत्रः शकुनेस्तस्य भूपतेः प्रपितृव्यजः। अथावहदशोकाख्यः सत्यसंघो वसुन्धराम्॥१०१॥
यः शान्तवृजिनो राजा प्रपन्नो जिनशासनम्। शुष्कलेत्रवितस्तात्रौ तस्तार स्तूपमण्डलैः॥१०२॥
धर्मारण्य विहारान्तः वितस्तात्र पुरेऽभवत्। यत्कृतं चैत्यमुत्सेधावधिप्राप्त्यक्षमेक्षणम्॥१०३॥
स षण्नवत्या गेहानां लक्षैर्लक्ष्मीसमुज्ज्वलैः। गरीयसीं पुरीं श्रीमांश्चक्रे श्रीनगरीं नृपः॥१०४॥—-
म्लेच्छैः संछादिते देशे स तदुच्छित्तये नृपः। तपः सन्तोषिताल्लेभे भूतेशात्सुकृती सुतम्॥१०७॥
सोऽथ भूभृज्जलौकोऽभूद्भूलोक सुरनायकः। यो यशः सुधया शुद्धं व्यधाद्ब्रह्माण्डमण्डलम्॥१०८॥—
तत्काल प्रबल प्रेद्ध बौद्ध वादि समूहजित्। अवधूतोऽभवत् सिद्धस्तस्य ज्ञानोपदेशकृत्॥११२॥—-
स रुद्ध वसुधान् म्लेच्छान्निर्वास्या खर्व विक्रमः। जिगाय जैत्रयात्राभिर्महीमर्णवमेखलाम्॥११५॥
ते यत्रोज्झटितास्तेन म्लेच्छाश्छादितमण्डलाः। स्थानमुज्झटडिम्बं तज्जनैरद्यापि गद्यते॥११६॥
गोनन्द वंश का ४८वां राजा अशोक या धर्माशोक (१४४८-१४०० ई.पू.) था। वह बौद्ध हो गया और कई विहार बनवाये। वहां के बौद्धों ने मध्य एशिया के म्लेच्छों को बुला कर उनसे आक्रमण करवाया। म्लेच्छ शासन होने पर गोनन्द वन में भाग गया। शिव की पूजा से उसे जलौक नामक पुत्र हुआ जिसने राज्य को पुनः जीता (१४००-१३४४ ई.पू.) और वर्णाश्रम धर्म की पुनः स्थापना की। म्लेच्छों का जहां समूल नाश किया था उसका नाम उज्झट-डिम्ब पड़ा। उसने ९६ लाख घरों का श्रीनगर नगर बसाया।
(२) जलौक के पुत्र दामोदर के ५० वर्ष राज्य के बाद हुष्क, जुष्क, कनिष्क ने ६० वर्ष राज्य किया (१२९४-१२३४ ई.पू.)। उनसे पुनः अभिमन्यु (१२३४-११८२ ई.पू.) ने राज्य ले लिया।
(३) (पण्डित गवास लाल -कश्मीर का संक्षिप्त इतिहास से)-कल्हण के समय ११४८ ई. के बाद १२९५ ई. तक कश्मीर में हिन्दू शासन रहा। १२९५ से १३२४-२५ ई तक राजा सिंहदेव का शासन था। उस समय स्वात से शमीर, तिब्बत से रेन्छन शाह तथा दर्दिस्तान से लन्कर चक आये जिनको राजा ने आश्रय दिया। उनको सरकारी नौकरी तथा जागीर दी। इनलोगों ने १३२२ ई. में चंगेज खान के वंशज जुल्फी कादिर खान को आक्रमण के लिये निमन्त्रित किया। उसने ७०,००० घुड़सवारों के साथ आक्रमण किया और इन गद्दारों की मदद से लाकॊं लोगों की हत्या की तथा ५०,००० ब्राह्मणों को गुलाम बना कर ले गये। इनमें कई देवसर की बर्फ में मारे गये। राजा सिंहदेव किश्तवार भाग गये तथा उनके सेनापति रामचन्द गगनजिर भागे। शत्रुओं के जाने के बाद रामचन्द ने वापस राज्य पर कब्जा करने की कोशिश की पर तिब्बत से आये जागीरदार रेन्छन ने रामचन्द की हत्या कर उसकी पुत्री से विवाह किया और राजा बन गया। उसने इस्लाम स्वीकार कर सदरुद्दीन नाम से राजा बना। २५ वर्ष राज्य के बाद सिंहदेव के भाई उदयन देव ने १३२७ ई. में पुनः राज्य पर कब्जा किया। १३४३ ई. में उसके मरने पर उसके मन्त्री शाह मिर्जा ने कब्जा किया और शमसुद्दीन के नाम से राजा बना। १३४७ में उसके मरने पर उसके लड़के जमशेद को हरा कर उसका छोटा भाई अल्लाउद्दीन अली शेर राजा बना। उसके लड़के शाह उद्दीन (१३६०-१३७८) ने फिरोजशाह तुगलक की अधीनता स्वीकार की। उसके बाद १५५४ ई. तक उसके वंशज राज करते रहे। उसके बाद सिंहदेव के समय दरद से आये लंकर चक के वंशजों ने १५८८ ई तक शासन किया। उसके बाद १७५३ ई. तक मुगलों के सूबेदारों ने शासन किया। मुहम्मद शाह दुर्रानी के आक्रमण के बाद कश्मीर १८१९ ई. तक अफगान सूबेदारों के अधीन रहा।
(४) हिन्दू राज्य-१८१९ ई. में यह सिख राजाओं के सूबेदारों के अधीन रहा। इनमें १८४१-४६ तक मुस्लिम सूबेदार थे। अंग्रेजों द्वारा सिखों की पराजय के बाद महाराजा गुलाब सिंह ने १६-३-१८४६ ई. में कश्मीर अंग्रेजों से खरीद लिया। उनके पुत्र रणवीर सिंह के नाम पर रणवीर पेनल कोड है। उनके पुत्र प्रताप सिंह तथा उनके पुत्र हरिसिंह १९४७ तक राजा रहे। वे स्वाधीनता के बाद भारत में मिलना चाहते थे। पर भारत के प्रधानमन्त्री नेहरू ने कहा कि कश्मीर (जम्मू, लद्दाख नहीं) मुस्लिम बहुल है अतः राजा हरि सिंह का विचार कश्मीर के लोगों की इच्छा नहीं है। केवल शेख अब्दुल्ला ही कश्मीर के प्रतिनिधि हो सकते हैं (उनसे नेहरू का रक्त सम्बन्ध कहा जाता है)। उसके बाद शेख अब्दुल्ला का परिवार और उनके दामाद गुलाम मुहम्मद मुख्यमन्त्री बने। बीच में उनके समर्थक मुफ्ती मुहम्मद सईद भी मुख्य मन्त्री बने। उनकी पुत्री अभी मुख्य मन्त्री हैं। नेहरू ने बिना जनमत संग्राह् के कश्मीर का विलय अस्वीकार किया जो बाद में पाकिस्तान की मांग हुयी। भारतीय संविधान मेंएक अलग धारा ३७० जोड़ी गयी जिसके अनुसार वहां के राज प्रमुख या संविधान सभा की सहमति से ही राष्ट्रपति कोई निर्णय ले सकते है। राज प्रमुख पद समाप्त होने पर यह धारा स्वतः समाप्त होनी थी, पर कांग्रेस की इच्छा के कारण यह अभी तक भारत में पूरी तरह नहीं मिल पाया है। १९ जनवरी १९९० को यहां प्रायः २०,००० हिन्दुओं की हत्या कर बाकी ७ लाख को कश्मीर से भगा दिया गया जो अभी तक अपने ही देश में प्रवासी बने हुये हैं।
✍🏼अरुण उपाध्याय