कटहल पुलिस व पॉलिटिशियन्स और मीडिया की बिगड़ चुकी आदत का जीता-जागता प्रमाण

कटहल सिर्फ एक फिल्म ही नहीं बल्कि पुलिस-पॉलिटिशियन्स और मीडिया की बिगड़ चुकी आदत का जीता-जागता प्रमाण है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे जरूरी मुद्दों को दरकिनार कर छोटे-छोटे मुद्दों को बड़ा बना दिया जाता है। ये कहानी सिर्फ आज के दौर की नहीं है बल्कि ये कहानी बताती है कि कैसे लोकतंत्र को दशकों से ठगा गया है और कुर्सी पर विराजमान कुछ नेताओं ने इसे अपनी जागीर बना लिया। जन सेवा के नाम पर लोगों के साथ धोका होता गया और लोगों को इसकी आदत पड़ गई।

आज के दौर में पुलिस का हाल कैसा है ये सभी जानते हैं। किसी भी मामले को अनसुना कर देना, गरीबों पर अत्याचार करना, सत्ताधारियों की जीहजूरी करना, ये सभी काम आज पुलिस की दिनचर्या में शुमार हो चुके हैं। तभी पुलिसवालों को आज के दौर में सरकारी गुंडा तक कह दिया जाता है और जो लोग ईमानदारी से काम करना चाहते हैं उन्हें साइड कर दिया जाता है।

कटहल मूवी में पुलिसवालों को ठीक वैसे ही दिखाया गया है जैसा काम वास्तविकता में ग्राउंड लेवल पर किया जाता है. अगर आप थाने में शिकायत लिखाने जाओ तो पुलिस वालों के ट्रीट करने का अंदाज, केस को हल्के में लेना या उसकी अनदेखी करना या फिर मासूम जनता को गोल-गोल घुमाना आम बात है।

कहा जाता है कि कोई भी सीधा-सादा आदमी सत्ता में जाकर नहीं बैठ सकता. उसके लिए समाज में मापदंड तैयार हैं। कोई भी एकेडमिक क्वालिफिकेशन क्राइटेरिया नहीं है। अगर कोई क्राइटेरिया है तो वो है कि आपका समाज में रसूख कैसा है। आपकी दबंगई कितनी है। इस फिल्म में भी विजय राज का किरदार जैसा दिखाया गया है वैसा कहीं आप असल जिंदगी में देख लें तो ताज्जुब न करें।

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