मणिपुर में शांति कायम करने के लिए अमित शाह ने बनाई रणनीति

गृह मंत्री के रूप में, अमित शाह अपने पूर्ववर्तियों से बहुत अलग हैं। आरामदायक स्थिति में बैठने के बजाए, शाह ने किसी भी संघर्ष को आमने-सामने से लेने और आगे बढ़कर नेतृत्व करने की आदत बना ली है – चाहे वह छत्तीसगढ़ में हो, जम्मू-कश्मीर में हो या हाल ही में मणिपुर में।

मणिपुर उच्च न्यायालय की एकल पीठ के ‘अप्रिय’ फैसले के परिणामस्वरूप दो समुदायों के बीच हिंसा भड़कने के तुरंत बाद केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री शुरू में दिल्ली से हरकत में आए और कर्नाटक में महत्त्वपूर्ण चुनावी रैलियों में हिस्सा नहीं लिया। लगातार तनाव कम नहीं हो पाने की स्थिति में शाह ने सभी बाधाओं को धता बताते हुए राज्य के चार दिवसीय दौरे पर जाने का फैसला लिया और, जैसा कि अपेक्षित था, संघर्ष प्रभावित मणिपुर में उनके प्रवास के दौरान शांति बहाल हो गई।

मणिपुर में सोमवार शाम को उतरने के तुरंत बाद शाह ने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह, राज्य मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्यों और वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारियों से मुलाकात की और मामले की गंभीरता को समझा।

अपनी रातों की नींद हराम करते हुए, उन्होंने अगली सुबह एक दर्जन से अधिक नागरिक समाज संगठनों के साथ व्यापक चर्चा की, फोरम फॉर रिस्टोरेशन ऑफ पीस, छात्र संगठनों और इंफाल में महिला नेताओं (मीरा पैबिस) के प्रतिनिधिमंडलों से मुलाकात की, तथा राज्य में शांति बहाल करने के लिए केंद्र की प्रतिबद्धता को दोहराया।

संघर्ष के केंद्र चुराचंदपुर के लिए रवाना होने से पहले शाह ने प्रमुख हस्तियों, बुद्धिजीवियों, सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों और सिविल सेवकों के एक समूह के साथ बातचीत की। बाद में शाम को शाह ने इंफाल में एक सर्वदलीय बैठक की। गृह मंत्री ने मणिपुर पुलिस, सीएपीएफ और भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ सुरक्षा स्थिति की भी समीक्षा की। मणिपुर की शांति और समृद्धि को बहाल करने को सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता बताते हुए उन्होंने अधिकारियों को शांति भंग करने वाली किसी भी गतिविधि से सख्ती से निपटने का निर्देश दिया।

मणिपुर की अपनी यात्रा के तीसरे दिन शाह ने मोरेह और कांगपोकपी का दौरा किया तथा नागरिक समाज संगठनों के साथ चर्चा की। उन्होंने मोरेह में पहाड़ी आदिवासी परिषद, कुकी छात्र संगठन, कुकी प्रमुख संघ, तमिल संगम, गोरखा समाज और मणिपुरी मुस्लिम परिषद के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। शाह ने वरिष्ठ अधिकारियों से सुरक्षा हालात की जानकारी ली तथा इंफाल में एक राहत शिविर का भी दौरा किया जहाँ मैतेई समुदाय के सदस्य रह रहे थे। उन्होंने किसी भी समुदाय को अछूता नहीं छोड़ा।

शाह पर भरोसा रखते हुए केंद्र सरकार ने उन्हें युद्धरत समुदायों के साथ मध्यस्थता करने का नाजुक काम सौंपा। शाह को इन कठिन परिस्थितियों में आशा की किरण के रूप में देखा जा रहा है। अतीत में शाह के इस तरह के कृत्यों के कई उदाहरण हैं। दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों ने भी शाह पर भरोसा दिखाया और वर्तमान स्थिति में अपने दृष्टिकोण और विचारों में बदलाव किया। शाह ने आजीविका और सुरक्षा के प्रति भी अपनी चिंता जताई। इन परिस्थितियों में भी शिक्षा, अदालत आदि जैसे बारीक मुद्दों ने शाह के जनोन्मुख प्रशासनिक कौशल को कम नहीं किया।

अपने प्रवास के दौरान, उनका ध्यान समाज और प्रशासन के विभिन्न वर्गों के साथ चर्चा के माध्यम से शांति बहाल करने और राज्य की समृद्धि सुनिश्चित करने पर था; अपने दौरे के आखिरी दिन उन्होंने राज्य के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में तलाशी अभियान शुरू करने की घोषणा करते हुए उग्रवादियों को कड़ी चेतावनी दी और सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (एसओओ) समझौते का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी।

शाह ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘हथियार रखने वालों को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना चाहिए, तलाशी अभियान कल से शुरू होगा और अगर किसी के पास हथियार पाए जाते हैं तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।’

शाह ने हिंसा की घटनाओं की जाँच के लिए केंद्र सरकार द्वारा एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक जाँच समिति के गठन की भी घोषणा की और खुलासा किया कि मणिपुर में हिंसा के मामलों की जाँच के लिए केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) की एक विशेष टीम को नियुक्त किया जाएगा।

राज्यपाल की अध्यक्षता में एक शांति समिति का गठन किया जाएगा। जाँच बिना किसी पूर्वाग्रह और भेदभाव के की जानी चाहिए। दोषियों को सजा दी जाएगी।

छात्रों की मदद के लिए उचित कदम उठाए जाएंगे। मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा। विशेष चिकित्सा अधिकारी हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाएँ सुनिश्चित करेंगे।

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