लखनऊ।
21 जनवरी 1943
भारतीय सभ्यता और संस्कृति का इतिहास जितना पुराना है उतना ही पुराना है यहां के महान क्रांतिकारी का इतिहास भी है। भारत की भूमि अमरता और अजरता की पावन भूमि रही है। भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण पन्नों को जब हम पलटते हैं तब देखते हैं 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो भारत भूमि के महान सपूत हेमू कालाणी के बलिदान की अमर गाथा जो 1942 के समर में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज कर गया। 1942 में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी।
हेमू कालाणी ने अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई। वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए। हेमू कालाणी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई गई।उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की। वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कालाणी अपने साथियों का नाम और पता बताये पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी। 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी की सजा दी गई। जब फांसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। हेमू कलानी अपना जन्मदिन कभी नहीं मानते थे क्योंकि उसे दिन भगत सिंह का बलिदान दिवस था अतः एक नवयुवक आजादी की लड़ाई में अपना योगदान देकर आने वाली पीढियां के लिए गौरव गाथा और बहादुरी की मिसाल बन गए। इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय की घोषणा के साथ उन्होंने फांसी को स्वीकार किया और अमर हो गए।
इसलिए हम सब मिलकर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए भारत के महान सपूत को नमन करें।