मुंगेर सहित राज्य के 8 जिलों में डिफ्रेंसिएटेड केयर ऑफ टीबी पेशेंट के अनुसार टीबी के मरीजों का होगा उपचार और देखभाल 

– इसके सफल क्रियान्वयन को ले राज्य स्तर पर विगत 28 दिसंबर को विभिन्न जिलों से आए स्वास्थ्य पदाधिकारियों को दिया गया है प्रशिक्षण
– डिफ्रेंसिएटेड केयर ऑफ टीबी पेशेंट के 7 मॉड्यूल के तहत टीबी मरीजों को उपलब्ध कराई जाएगी उपचार और देखभाल कि सुविधा
मुंगेर-
नेशनल टीबी एलिमिनेशन प्रोग्राम (एनटीईपी) के अंतर्गत मुंगेर सहित राज्य के 8 जिलों में डिफ्रेंसिएटेड केयर ऑफ टीबी पेशेंट के अनुसार टीबी के मरीजों का उपचार और देखभाल होगा। मुंगेर के अलावा वो 8 जिला पटना, गया, नालंदा, भागलपुर, भोजपुर, कटिहार और सहरसा है जहां डिफ्रेंसिएटेड केयर के अंतर्गत टीबी के मरीजों का उपचार और देखभाल किया जाएगा। इस आशय कि जिला संचारी रोग पदाधिकारी डॉक्टर ध्रुव कुमार शाह ने दी। उन्होंने बताया कि भारत सरकार के टेक्निकल गाइडेंस ऑफ़ कोम्प्रीहेंसिव पैकेज डिफ्रेंसिएटेड केयर ऑफ टीबी पेशेंट के अनुसार टीबी के कई रोगी कुपोषण, खून कि कमी, डायबिटीज या किसी अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित होते हैं। ऐसे में इन सभी टीबी के रोगियों का सफल इलाज मुश्किल होता है। डिफ्रेंसिएटेड केयर ऑफ टीबी पेशेंट के सफल क्रियान्वयन को ले राज्य स्तर पर विगत 28 दिसंबर को विभिन्न जिलों से आए स्वास्थ्य पदाधिकारियों को दिया गया है प्रशिक्षण । जिलास्तर पर भी एसटीएस, एसटीएलएस और टीबीएचबी के साथ बैठक कि जा चुकी है। आने वाले कुछ ही दिनों में प्रखंड स्तर पर सीएचओ, एएनएम सहित कई स्वास्थ्य कर्मियों के साथ बैठक आयोजित कर डिफ्रेंसिएटेड केयर ऑफ टीबी पेशेंट के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी जाएगी।
डिस्ट्रिक्ट टीबी सेंटर मुंगेर के डिस्ट्रिक्ट टीबी/एचआईवी कॉर्डिनेटर शैलेंदू कुमार ने बताया कि डिफ्रेंसिएटेड केयर ऑफ टीबी पेशेंट के 7 मॉड्यूल के तहत टीबी मरीजों को उपचार और देखभाल कि सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
1. 60 वर्ष से अधिक उम्र के टीबी पेशेंट।
2. अकेले रहने वाले टीबी पेशेंट।
3. एचआईवी से संक्रमित टीबी के मरीज।
4. ड्रग रेजिस्टेंट टीबी पेशेंट।
5. डायबिटीज से ग्रसित टीबी के मरीज।
6. शराब का सेवन करने वाले टीबी के मरीज।
और 7 वैसे टीबी के मरीज जिनका पहले ट्रीटमेंट हुआ है लेकिन वो नियमित दवा का सेवन नहीं कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि टीबी एक जानलेवा संक्रामक बीमारी है जो माइक्रो बैक्टीरियम नामक बैक्टीरिया से होता है। यह
बैक्टीरिया हवा के द्वारा फैलता है। यदि समय से उपचार नहीं जय तो एक टीबी के मरीज के संपर्क में रहने वाले 10 से 15 अन्य लोग एक वर्ष में संक्रमित हो सकता है। भारत में प्रतिदिन 1000 से ज्यादा लोगों कि मृत्यु टीबी के कारण हो जाती है। इसमें सबसे ज्यादा फेफड़े के टीबी मरीज होते हैं। इसके अलावा शरीर के अन्य अंगों जैसे लिम्फ नोड, मस्तिष्क, आंत, हड्डी जोड़, किडनी, जननांग, आंख त्वचा है। इनका उपचार कठिन होता है।
उन्होंने बताया कि टीबी अब एक लाइलाज बीमारी नहीं है। टीबी का सफल उपचार दवाओं के नियमित सेवन एवं कोर्स पूरा करने पर निर्भर करता है। आधे अधूरे उपचार से टीबी का रोगी ड्रग रेजिस्टेंट हो जाता और बीमारी और भी गंभीर हो जाती है। नेशनल टीबी एलिमिनेशन प्रोग्राम के अंतर्गत सभी प्रकार के टीबी के मरीजों के लिए जांच और दवाइयां पूरी तरह से निः शुल्क है। टीबी मरीजों का इलाज कम से कम 6 महीनों का होता है। इस दौरान थोड़ा ठीक होने के बाद दवाइयां छोड़ देने पर टीबी कि दवाइयां बेअसर (रेजिस्टेंट) हो जाती है और बीमारी और भी गंभीर हो जाता है। उन्होंने बताया कि टीबी का आधुनिक और सम्पूर्ण उपचार और जांच कि सुविधा सभी सरकारी अस्पतालों, स्वास्थ्य केंद्रों पर निः शुल्क उपलब्ध है।
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