समुद्र मंथन से निकला 14 रत्नों में से एक, मनोकामना पूरी करने वाला, बुढ़ापे पर ब्रेक लगाने वाला, अनेक विटामिन एवं औषधीय गुणों की खान है कल्पवृक्ष जो 12000 वर्ष तक जीवित रह सकता है
पुराणों के अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी था। यह इंद्र को दे दिया गया था और इंद्र ने इसकी स्थापना सुरकानन में कर दी थी। हिंदुओं का विश्वास है कि कल्पवृक्ष से जिस वस्तु की भी याचना की जाए, वही यह दे देता है। इसका नाश कल्पांत तक नहीं होता।
इसकी पत्तियां उम्र बढ़ाने में सहायक होती हैं, क्योंकि इसके पत्ते एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं। यह कब्ज और एसिडिटी में सबसे कारगर है। इसके पत्तों में एलर्जी, दमा, मलेरिया को समाप्त करने की शक्ति है। गुर्दे के रोगियों के लिए भी इसकी पत्तियों व फूलों का रस लाभदायक सिद्ध हुआ है।
इसमें संतरे से 6 गुना विटामिन सी, गाय के दूध से 2 गुना कैल्शियम, एन्टीऑक्सडेंट, विटामिन बी, बी12, पोटेशियम, फाइबर, शरीर में आवश्यक 8 एमिनो एसिड में से 6 एमिनो एसिड पाए जाते हैं। यह लम्बी आयु करने वाला, बुढ़ापे पर ब्रेक लगाने वाला पेड़ है, इसकी अपनी आयु 6000 वर्ष से भी अधिक होती है।
इस पेड़ को छोटा फार्मेसी या केमिस्ट ट्री कहा जाता है, क्योंकि इसके सभी भाग जैसे पत्ते, छाल और फूल, फल खाद्य पदार्थों और दवाओं के रूप में उपयोग किए जाते हैं। इसके विशिष्ट प्रलेखित उपयोगों में मलेरिया, तपेदिक, बुखार, सूक्ष्मजीवी संक्रमण, दस्त, एनीमिया, पेचिश, दांत दर्द आदि का उपचार शामिल है। बायोएक्टिव यौगिक और औषध विज्ञान इसमें पॉलीफेनोल, टैनिन, फ्लेवोनोइड्स, प्रोसायनिडिन बी2, विटामिन सी ̧ गैलिक एसिड और एपिकैटेचिन की उपस्थिति पाई जाती है। इसमें एक एल्कलॉइड ‘एडानसोनिन’ भी होता है जिसका उपयोग बुखार के उपचार के लिए किया जाता है, खासकर मलेरिया के कारण होने वाले बुखार के लिए।