नवजात का तापमान कम होने की स्थिति में कारगर है एचबीएनसी

– सर्दी के दिनों में नवजात का तापमान होने की रहती है आशंका
– कंबल से लपेटकर बच्चे को रखा जा सकता है गर्म
– आशा कार्यकर्ताओं द्वारा गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल(एचबीएनसी) के भ्रमण के दौरान दी जाती है जानकारी

आगरा, 16 नवंबर 2024।
सर्दियों ने दस्तक दे दी है। ऐसे में नवजात शिशु के स्वास्थ्य पर बारीकी से नजर रखने की आवश्यकता है। ऐसे में नवजात के शरीर के तापमान पर जरूर नजर बनाए रखें। तापमान कम होने की स्थिति में गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल(एचबीएनसी) काफी कारगर है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत नवजात शिशुओं के देखभाल के लिए आशा कार्यकार्ताओं द्वारा गृह भ्रमण करके नवजात की मां और परिवार के सदस्यों को एचबीएनसी का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह प्रशिक्षण सर्दी के मौसम में काफी कारगर साबित होता है। गृह भ्रमण के दौरान मां और बच्चे के स्वस्थ से संबंधी जानकारी प्राप्त करती हैं, इसी दौरान बच्चों को हाइपोथर्मिया से बचाने के लिए मां किस तरह से बच्चे को कंबल में लपेट कर पेट से लगाकर गर्माहट देने हैँ इस का अभ्यास भी कराती हैं l

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि जन्म के बाद नवजात शिशु को गर्म रखना बहुत जरूरी है। जन्म के समय और अपने जीवन के पहले दिन शिशु के शरीर के लिए अपने शरीर का तापमान बनाए रखना कठिन होता है। जन्म के समय वह गीले होते हैं और उनके शरीर का तापमान तेजी से घटता है। यदि उन्हें ठंड लग जाए, तो वह अपनी ऊर्जा का प्रयोग गर्म रखने के लिए करते हैं और बीमार हो जाते हैं ऐसे शिशु जिनका वजन जन्म के समय कम होता है और 9 महीने के पहले जन्मे शिशुओं में ठंड लगने का खतरा अधिक होता है। नवजात के माता-पिता के सचेत रहने से ही बच्चे को हाइपोथर्मिया (सामान्य ठंडा) से बचाने में कामयाब हो सकते हैं।

एसीएमओ आरसीएच डॉ संजीव वर्मन ने बताया कि बच्चे का तापमान 97 या 98 है तो बच्चा सामान्य है। अगर बच्चे का तापमान 97 से कम होता है तो बच्चा हाइपोथर्मिया की चपेट में आना शुरू हो जाता है। जब बच्चे का तापमान 95 से कम होता है तो बच्चे को स्वास्थ्य इकाई पर रेफर किया जाता है। अभिभावकों को हाइपोथर्मिया की सही जानकारी से हम सभी बच्चों को हाइपोथर्मिया होने से बचा सकते हैं।

आशा कार्यकर्ता गृह भ्रमण के दौरान अभिभावकों को बच्चे को ठंड से बचाव के तरीके के बारे में जानकारी देती हैं। हाइपोथर्मिया (सामान्य ठंडा) की चपेट से बचाने के लिए यूनिसेफ संस्था के द्वारा आशा कार्यकर्ताओं और आशा संगिनी को समय-समय पर टेक्निकल सहयोग के माध्यम से क्षमता वर्धन किया जाता है l

नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ. मेघना शर्मा बताती हैं कि जन्म के समय शिशु का तापमान 97.7 डिग्री फरेनहाइट (36.5 डिग्री सेल्सियस) (सामान्य तापमान) हो, और यदि उसे अच्छी तरह सुखाया या ढका न जाए, तो उसके शरीर का तापमान 95 डिग्री फरेनहाइट (35.0 डिग्री सेल्सियस) हो जाएगा, जो सामान्य से कम है। डॉ. मेघना शर्मा बताती हैं कि अधिकांश नवजात शिशु के शरीर की गर्मी जन्म के बाद पहले मिनट में कम हो जाती है। शिशु के शरीर का तापमान सामान्य कम हो जाए, तो उसे हाइपोथर्मिया ( सामान्य ठंडा ) कहा जाता है।
आशा कार्यकर्ता मुंदरा बताती है कि वह अपने क्षेत्र में पैदा हुए नवजात शिशुओं के घर जाकर उनकी मां और परिवार के सदस्यों को कंबल लपेटकर नवजात को गर्म रखने, नवजात की साफ-सफाई रखने, उसे सही तरीके से स्तनपान कराने, बच्चे को छूने से पहले अच्छी तरह से हाथ धोने का प्रशिक्षण देती हैं। इसके साथ ही नवजात का टीकाकरण समय से कराने के बारे में भी जानकारी देती हैं।

नगला हरनोखा निवासी 22 वर्षीय अंजली बताती हैं कि उनकी चार माह पहले ही संस्थागत प्रसव हुआ है, अभी एक सप्ताह पहले उनके शिशु को सर्दी लग गई थी, जिससे बच्चे का तापमान कम होने लगा था। ऐसे में आशा दीदी द्वारा दी गई जानकारी से हमने बच्चे को कंबल से लपेट दिया और उसका तापमान नियंत्रित रहा। अगले दिन सुबह नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टर से परामर्श लिया। अब उनका बच्चा बिल्कुल स्वस्थ है।

उस शिशु को दोबारा कैसे गर्माहट दें जिसे ठंड लग गई हो:
– कमरे का तापमान बढ़ाएँ।
– गीले या ठंडे कम्बल और कपड़े हटा दें।
– शिशु को मां के शरीर से सटाकर लिटाएँ, शिशु में गर्माहट न आ जाए तब तक ऐसा करते रहे, जब तक कि शिशु का तापमान सामान्य न हो जाए।
– उसे कपड़े और टोपी पहनाएँ, गर्म थैली में रखें और उसे माता के निकट लिटाएँ।
– शिशु के शरीर में कैलोरी और तरलों का स्तर बनाए रखने के लिए उसे स्तनपान कराना जारी रखें ताकि उसका रक्त शर्करा स्तर कम न हो।

एचबीएनसी कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य
• नियमित निगरानी: आशा कार्यकर्ता नवजात शिशु के जन्म के बाद नियमित अंतराल पर घर पर जाकर उसकी स्थिति की जांच करना।
• टीकाकरण: समय पर टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए परिवारों को जागरूक करना।
• स्तनपान: माताओं को स्तनपान की महत्वता और सही तरीके के बारे में जानकारी देना।
• स्वच्छता: नवजात शिशु और माँ की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना।
• शारीरिक जाँच: शिशु के वजन, तापमान, और अन्य शारीरिक स्थिति की नियमित जांच करना।
• परिवार की भूमिका: परिवार को नवजात शिशु की देखभाल में उनकी भूमिका के प्रति जागरूक करना।

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