जॉन्डिस के असर को कम करता है नियमित स्तनपान व अनुपूरक आहार 

-दो हफ्ते से अधिक समय तक पीलिया रहना नवजात के लिए खतरनाक

-खून में बढ़ जाती है बिलीरूबीन की मात्रा, लीवर को करता है प्रभावित

लखीसराय।

सेंटर फॉर डिजिज एंड कंट्रोल के मुताबिक 60 फीसदी समय से जन्म लेने वाले नवजात और 80 फीसदी प्रीमैच्योर नवजात शिशुओं के जीवन के पहले एक हफ्ते के दौरान उन्हें जॉन्डिस या पीलिया होता है। नवजात में पीलिया उनके खून में बिलीरूबिन का स्तर बढ़ने के कारण होता है।

वयस्कों की तुलना में नवजात शिशुओं में बिलीरुबिन उत्पादन की दर अधिक होती है। चूंकि नवजात शिशुओं का लीवर अपरिपक्व होता है। इसलिए बिलीरुबिन का मेटाबॉलिज्म धीमा होता है। अधिकांश नवजात शिशुओं में पीलिया को फिजियोलॉजिक पीलिया कहा जाता है जो हानिकारक नहीं होता है। लेकिन कभी-कभी बिलीरूबीन की मात्रा अधिक होने पर नवजात के लिए यह गंभीर हो जाता है। पीलिया के किसी भी लक्षण दिखने पर डॉक्टरी परामर्श जरूरी है।

नियमित स्तनपान व अनुपूरक आहार है जरूरी:

अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ अशोक कुमार भारती ने बताया पीलिया या जॉडिस लिवर में संक्रमण के कारण होता है। शिशु और मां के ब्लड ग्रुप के अलग-अलग होने की वजह भी जॉडिस होने के कारणों में से एक है। प्री मैच्योर नवजात यानी 37 सप्ताह से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों में जॉडिस का इलाज फोटोथेरेपी व आवश्यक दवाइयों की मदद से की जाती है। उन्होंने बताया नवजात को नियमित स्तनपान कराने से उसके खून से बिलीरूबीन खत्म करने में मदद मिलती है।

जॉडिस के कारण बच्चों को नींद अधिक आती है। इसलिए उन्हें नियमित समय अंतराल पर उठा कर स्तनपान कराया जाना चाहिए। सुबह सूरज की रौशनी में रोजाना नवजात को कम से कम एक घंटे तक धूप में रखना फायदेमंद होता है। यदि बच्चा छह माह से ऊपर है और पीलिया ग्रसित है तो नियमित स्तनपान के साथ ठोस पौष्टिक आहार और उबाला हुआ पानी दिया जाना चाहिए। पूरक आहार में आसानी से पचने वाले खाने जैसे दलिया या खिचड़ी शामिल करें। बच्चों को साफ सुथरा रखना जरूरी है। डायपर को समय समय पर बदलें और डायपर बदलने से पहले अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोयें।

नवजात शिशुओं में पीलिया के लक्षण:

• शरीर की त्वचा का पीला पड़ना
• आंखों के सफेद भाग में पीलापन
• सही से स्तनपान नहीं कर पाना
• मांसपेशियों की कसावाट में बदलाव
• नवजात का बहुत अधिक रोना
• पेशाब गहरा व पीला रंग का होना
• अच्छी तरह से नींद नहीं आना
• बुखार रहना व उल्टी होना
स्तनपान कराने वाली महिलाएं रखें ध्यान:
स्तनपान करोन वाली माताओं को पौष्टिक आहार का सेवन करना चाहिए। अपने भोजन में टमाटर आदि शामिल करें। टमाटर में मौजूद लाइकोपीन नामक तत्व खून के लिए अच्छा माना जाता है। बिलीरूबीन का स्तर सही करने के लिए शिशु को आवश्यक तत्व स्तनपान के माध्यम से मिल जाता है।

इसके अलावा स्तनपान कराने वाली महिलाएं हर्बल सप्लीमेन्ट आहार लें। मां के शरीर में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट स्तनपान के जरिये शिशु तक पहुंचता है और नवजात के शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है। यदि मां में भी जॉडिस के लक्षण हैं तो स्तनपान से पूर्व डॉक्टरी सलाह लें।

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