सत्य सनातन विश्वगुरु भारत

कोरोना का कहर सब पर भारी

आज न्यूयॉर्क सहित विश्व में क्या हो रहा हैं?

शवों को दफनाने के लिए कब्रगाह कम पड रहे हैं। सवा लाख से अधिक लोग अकेले न्यूयॉर्क इस शहर में संक्रमित हैं। इस शहर में 4200 से अधिक लोगों की वाइरस से मौत हो चुकी हैं।

सभी लोग अत्यधिक डरे हुए हैं। मदद के लिए सब सरकार पर आश्रित हैं। पूरे अमरीका में व्यवस्था ही सरकार केन्द्रित हैं। लेकिन इस महामारी में बडी सरकार नाम की व्यवस्था भी चरमरा गई हैं।

इंग्लैंड भी इससे अछूता नहीं। इसके प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, कोविड-19 से संक्रमित हैं। अस्पताल के आई सी यू में भर्ती हैं। इस छोटे से देश में 60 हजार से भी ज्यादा लोग संक्रमित हैं और इस महामारी से मरने वालों की संख्या 6,600 के पार हो गई हैं। सारा देश असमंजस में हैं।

किसी जमाने में जो रोमन साम्राज्य दुनिया का सबसे ताकतवर साम्राज्य कहलाता था, वही आज टूट चुका हैं। इटली में हालात इतने अधिक खराब हैं, कि वर्णन करना भी कठिन हैंं। 1 लाख 80 हजार संक्रमित और  हजारों मौत यही हाल स्पेन का भी हैं।

ये सारे विकसित देश हैं। सम्पन्न देश हैं। आधुनिक देश हैं। कुछ अंशों में विश्व का भाग्य तय करने वाले देश हैं। आज ये सब असहाय हैं। ये टूट चुके हैं। इनको इस परिस्थिति से निकलने का कोई मार्ग नहीं दिख रहा हैं। इन सारे देशों में सोशल सिक्युरिटी हैं। सरकार केन्द्रित व्यवस्था हैं, लेकिन जहां सरकार खुद ही ऑक्सिजन पर होगी, तो देश का क्या हाल होगा।

 

हमारा भारत महान…?

अमेरिका में ‘द ग्रेट नॉर्थ ईस्ट ब्लॅकआऊट’ होने के ठीक दो वर्ष बाद, अर्थात जुलाई 2005 को मुंबई में इतिहास की सबसे बड़ी बाढ़ आयी। निसर्ग का रौद्र और कुन्द रूप, मुंबई वालों ने देखा। सब कुछ ठप्प था।

लेकिन मुम्बई में मानवता जीवित थी। 2005 जुलाई के अनगिनत उदाहरण मिलते हैं। अनेक अकेली महिलाएं, युवतियाँ, बच्चे जो इस बाढ़ में फंस गए थे, उन सब को मुंबई वालोंं ने अपने अपने घरों में, कार्यालयों मे, हॉटेल और अस्पताल में आश्रय दिया। एक भी गलत वारदात नहीं हुई। एक भी चोरी या लूट नहीं। अनेक गरीब परिवारों ने इन फंसे हुए यात्रियों को भोजन दिया, कपड़े दिये और दिया पुनर्जीवन का साहस।

भारत में ऐसी बहुत सारी घटनाएं, बहुत सारी आपदा, चाहे वह उत्तराखंड में हो, चाहे वह जम्मू कश्मीर की बाढ़ हो चाहे वह बिहार की बाढ़ हो, किसी भी क्षेत्र में बाढ़ का प्रकोप हो। सुनामी हो या कोई अन्य विपदा हो, गुजरात का भूकंप हो या मुंबई की बाढ़ ऐसे अनेकों उदाहरण है जब भारत की मानवीय मूल्यों वाली संस्कृति ने सब को खड़ा किया। देशभर के लोग उन आपदाओं से निबटने के लिए उन स्थानों पर पहुंचे। सेवा कार्यों के लिए पहुंचे। वहां लोगों की सेवा की। वहां सुरक्षा का और वहां उनकी खाने-पीने की सारी व्यवस्था की। उनकी चिकित्सा की सुविधा भी की । मानवीय मूल्यों वाले लोग वहां पहुंचे और सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सेवा की। चाहे वह आर एस एस के लोग थे, चाहे वह अन्य कोई समाजसेवी संगठनों के लोग थे, चाहे वह विश्व मित्र परिवार के लोग थे जहां जैसा जिससे बन पड़ा उन्होंने वह सेवा कार्य किए।

 

क्योंकि ये मेरा भारत महान हैं।

कुछ विदेशी फोन कर के अपने भारतीय मित्रों से पूछ रहे है कि आपके देश ने ये सब कैसे सम्हाल लिया ? इतना बड़ा, इतना विशाल देश। सघन बसावट वाला, लेकिन न सिर्फ कोविड – १९ संक्रमितों की संख्या पर आपने नियंत्रण रखा हैं, वरन सारे देश में कानून व्यवस्था बिलकुल चुस्त – दुरुस्त हैं। ये किसी जादू से कम नही। इतने बड़े देश में लॉकडाउन करना कैसे संभव हुआ..?”

प्रश्न अनुचित नही हैं।

पूरे विश्व में 16 लाख संक्रमित हैं। 87 हजार लोग इस वाइरस से मर चुके हैं। भारत में संक्रमितों की संख्या हैं – साढ़े पांच हजार और मरने वालों की संख्या 169। (यदि ‘तबलीगी जमात’ ने यह सब षडयंत्र नहीं किया होता, तो हमारे यहां संक्रमितों की और मृतकों की संख्या बहुत कम रहती)

दुनिया मानती हैं की हम बहुत ज्यादा अनुशासित नहीं हैं। लेकिन कुछ तो बात हैं हमारी भारतीय संस्कृति में, हमारे संस्कारों में कि हम इस संकट का धैर्य से प्रतिकार कर रहे हैं।

पूरे विश्व मे, छोटे छोटे से देशों ने भी पूर्ण लॉकडाउन नहीं किया। या करने का साहस नही जुटा पाये। चीन ने भी पूरे देश में, पूरा लॉकडाउन नहीं किया। लंदन की ट्यूब रेल, जर्मनी की U और S Bahn, स्पेन की मेट्रो ट्रेन आज भी दौड़ रही हैं। अमरीका में इस महामारी के प्रकोप से हजारों लोग मर रहे हैं, पर ट्रम्प साहब पूरे देश को ठप्प करने के पक्ष में नहीं हैं. उन्हे लगता हैं, अमरीका की सारी इकॉनोंमी इसके कारण बैठ जाएगी

लेकिन हमने यह जो निर्णय लिया, वह बहुत ज्यादा होशियारी वाला निर्णय साबित हो रहा हैं. *इस विशाल देश को बंद करना आसान नहीं था. बहुत समस्याएँ थी. रोजदारी पर काम करने वाले, मेहनतकश मजदूर, छोटे बड़े उद्योग, व्यापारी इन सभी पर गाज गिरने वाली थी. लेकिन हमारे देश ने इसको हिम्मत के साथ लिया.* लॉकडाउन चालू होने बाद, तुरंत स्वयंसेवी संस्थाएं सक्रिय हुई. *पूरे देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक चट्टान के भांति खड़े हो गए. प्रारंभ में केरल में संक्रामितों की संख्या बढ़ रही थी. तब वहां के अस्पतालों को साफ करने से लेकर तो जम्मू और देहरादून में अटके मजदूरों को भोजन देने तक संघ के स्वयंसेवकों ने सेवा का जबरदस्त नेटवर्क खड़ा किया.* महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे अनेक जगहों पर सरकारी अमले ने संघ स्वयंसवेकों से मदत मांगी. भोजन की व्यवस्था होती गई. सरकारी तंत्र खड़ा हो रहा था. लेकिन हमारा देश केवल सरकारी तंत्र से नहीं चलता. एक सौ तीस करोड़ की जनता यह इस देश की ताकत हैं. *ऐसे ही प्रसंगों में साबित होता हैं, की यह मात्र नदी, नालों, पहाड़ों, मैदानों, खेतों, खलिहानों का देश नहीं, यह एक जीता जागता राष्ट्रपुरुष हैं…!*

शहरों के अपार्टमेंट में काम करने वाले सुरक्षा कर्मी, सफाई कर्मीयों को रोज चाय, नाश्ता, भोजन आने लगा. अनेक स्थानों पर सफाई कर्मियों का सम्मान हुआ. पंजाब में उन पर फूल बरसाएँ गए. अनेक चौराहों पर पुलिस कर्मियों को नाश्ता – पानी पहुचाया गया.

पुलिस कर्मियों ने भी गज़ब की संजीदगी दिखाई. शहरों से अपने गाँव लौटने वाले मजदूरों को संघ स्वयंसेवकों ने, पुलिस कर्मियों ने भोजन खिलाया, उनके रुकने का प्रबंध किया. जहां संभव हुआ, वहां उन्हे गाँव तक पहुचाने की व्यवस्था भी की. *एक स्थान पर तो लगभग एक हजार किलोमीटर पैदल चल कर आने वाले मजदूर के पैर के छाले देखकर, पुलिस का दिल पसीज गया. उसने स्वतः उस मजदूर के पाव में मलहम लगाया…!*

क्योंकि ये मेरा भारत महान हैं।

सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गाँव पहुचने वाले मजदूर हो, या फिर अपना बड़ा सा उद्योग – व्यवसाय बंद कर के घर में बैठा उद्योगपति। सायकल रिक्शा चलाने वाला मेहनतकश हो, या रास्ते पर व्यवसाय करने वाला, रोज की रोटी की फिकर करने वाला छोटा सा रेहडी, पटरी, ठेले वाला इन सब को तकलीफ जरूर हुई। बहुत ज्यादा हुई। लेकिन किसी ने सरकार को गाली नहीं दी। सरकार के विरोध में पत्थर नहीं उठाएँ। दुकाने नहीं लूटी।  क्योंकि यह सब भारत के वीर है, भारत को समझते हैं। वह सब भारतीय संस्कारवान है।

बल्कि, चाहे 22 मार्च का जनता कर्फ़्यू हो या फिर पांंच अप्रैल की रात नौ बजे एकजुटता के दीप जलाने का प्रधानमंत्री मोदी जी का आवाहन हो। इस देश की जनता ने जो एकता दिखाई, उसने विश्व में नया इतिहास रच दिया। यह सब अद्भुत दृश्य था। मेरा प्यारा गाँव हो, फुटपाथ की छोटी सी झोपड़ी हो, या बड़े महल, कोठियाँ, राजभवन, अपार्टमेंटस हो। सारा देश उस दिन एक ही समय जगमगा रहा था। हमारे प्रधानमंत्री ने कहा कि एक एक दीप जलाओ, हमने दीपमाला बना दी।

हम तो लगभग जीत ही गए थे लेकिन विश्व के कुछ मुट्ठी भर षड्यंत्रकारी जमाती लोगों ने देश में रोग फैलाने का षड्यंत्र रच दिया। आज उसके कारण लोक डाउन भी बढ़ाना पड़ेगा, फिर बढ़ाना पड़ेगा और हो सकता है यह लोक डाउन 90 दिन तक भी जाए उसके लिए हर भारतवासी तैयार है। हम सब तैयार हैं। किसी भी कीमत पर हमको इस रोग को इस महामारी को भगाना है। हमें जीतना है। हम जीतने वाले लोग हैं। हम जीतेंगे ही।

ये जीत सनातन संस्कृति के कारण ही सम्भव होगी।

भारत का राष्ट्रप्रेम, भारत का मानवीय संस्कार जाग रहे हैं। इसके बाद के विश्व के इतिहास के दो हिस्से होंगे – कोरोना से पहले और कोरोना के बाद ! इस कोरोना के बाद वाले हिस्से में हम इतिहास बनाने जा रहे हैं। सारा विश्व एक अलग नजर से हमारी ओर देखेगा।

क्योंकि ये मेरा विश्वगुरु भारत महान हैं।

 

श्री गुरुजी भू

(लेखक: मुस्कान योग के प्रणेता, विश्व चिंतक, प्रकृति प्रेमी, विश्व मित्र परिवार के संस्थापक, वैश्विक प्रकृति फिल्म महोत्सव के संस्थापक है)

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