आजाद हिन्द फौज के जनक रास बिहारी बोस। – गुरुजी भू

भूली बिसरी स्मृति

तरंग न्यूज: इतिहास के पन्नों में बहुत से महापुरुषों, क्रांतिकारियों, महान ऋषि मुनियों के आज नामोनिशान तक नहीं है, जिन्होंने इस वैज्ञानिक संस्कृति, इस राष्ट्र और मानव कल्याण के न जाने कितने ही सूत्र दिए। आज वह इतिहास के पन्नों से मिटाए जा चुके हैं या मिट चुके हैं। ऐसा ही एक नाम है जो आदर के साथ आज लिया जाता है लेकिन पूरे सम्मान से नहीं लिया जाता वह नाम है श्री रासबिहारी बोस का। जी हां आजाद हिंद फौज के असली जनक।
क्या आप जानते हैं कि आजाद हिन्द फौज के असली जनक कौन थेे ? वह थे रास बिहारी बोस, उन्हें कोटि कोटि नमन।

*12 दिसंबर, 1912 का वह दिन दिल्ली को बहुत सजाया गया था। इसी भव्यता के बीच राजधानी को एक भव्य जुलूस में कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित किया जा रहा है। हाथी की पीठ पर लाॅड हाडन्जि बैठे ही थे , अचानक विस्फोट हुया — बसंत कुमार विश्वास ने बम फेंक दिया। उस योजना का नायक थे श्री रासबिहारी बोस जी । फिर सीधे देहरादून भाग गए। उन्होंने क्लर्क की नौकरी की। ऐसा उनका प्रदर्शन और भेस था कि कुछ महीने बाद, लाॅड हार्डिंग की देहरादून यात्रा के दौरान, उन्होंने अपने स्वागत समारोह में एक भाषण दिया जिसमें श्री हार्डिंग की जान बचाने के लिए भगवान को धन्यवाद दिया गया । ब्रिटिश पुलिस अभी भी उसकी तलाश कर रही है ।

तब अंग्रेज गुप्तचरों ने उसका पीछा करते हुए सीधे चंद्रनगर पहुंचाया । वहाँ से उन्होंने बनारस, लखनऊ, आदि की यात्रा की, जहाँ वे ग़दर क्रांति में शामिल हो गए । — जिसका उद्देश्य ब्रिटिश सेना में सेवारत भारतीय सेना में देशभक्ति जगाने के लिए कार्य और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह की घोषणा करना था । जब यह योजना (हिंदू जर्मन षड्यंत्र) भी विफल हो गई, तो रवींद्रनाथ टैगोर के पी.ए. थे श्रीमान पी.एन. टैगोर सेज 1915 में टोक्यो रवाना हुए । जब तक ब्रिटिश जासूसों ने महसूस किया कि यह पी.एन. टैगोर वास्तव में रास बिहारी बोस थे, अंग्रेजी राज में तब तक वे जापान पहुँच चुके थे ।

 

रास बिहारी बोस अगले तीस वर्षों तक जापान में रहे । उन्होंने टोसिको सोमा नाम की एक जापानी लड़की को पीए बनाया बाद मे उनसे से शादी की । हालांकि, इस बीच, वह क्रांतिकारी गतिविधियों के लगातार संपर्क में थे । कहा जाता है कि वह हिंदू महासभा की विदेशी शाखा के अध्यक्ष भी थे ।

अंत में, मार्च 1942 में, उन्होंने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का गठन किया । इस बीच, मोहन सिंह ने इंडियन नेशनल आर्मी (आज़ाद हिंद फौज) का गठन किया । हमारे सर्वप्रिय नेताजी सुभाष चंद्र बोस जापान पहुंचे । असहमति के बावजूद नेताजी को आजाद हिंद का झंडा सौंपने से रासबिहारी बसु कैसे बेसहारा हो गए । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने 21 जनवरी, 1945 को टोक्यो में अंतिम सांस ली, उन्हें बंगालियों सहित सम्पूर्ण भारतवासियों ने चुपचाप भुला दिया ।

*इस महान क्रांतिकारी रासबिहारी बोस की 134 वीं जयंती पर, मैं अपने अन्तःश्चेतना के साथ नमन बन्दन अभिनन्दन करते हैं । श्री मान रास बिहारी बोस जी के गोपनीय योगदान भारत की स्वतंत्रता के लिए हृदय से सम्मान के साथ बारंबार प्रणाम करता हूं ।। 💐*
*जय हिंद — जय भारत !!*

 

 

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