पाश्चात्य वैज्ञानिकों के बारे में विश्व के अधिकांश लोगों को काफी अच्छी जानकारी है, विद्यालयों में भी बहुत ही जोर-शोर तथा उत्साह के साथ इन वैज्ञानिकों के बारे में पढ़ाया जाता है, परन्तु बहुत ही खेद की बात है कि भारत के महान वैज्ञानिकों के संसार तो क्या, यहाँ तक की भारत के लोगों को भी जानकारी नहीं होगी।
ऐसे तो दुनिया की बेहतरीन चीजों के आविष्कारकों के रूप में कई विदेशी वैज्ञानिकों के नाम सुनने में आते हैं, परन्तु यह अटल सत्य है कि इन अविष्कारकों के काफी वर्ष पहले ही हमारे भारतवर्ष के महान ऋषि वैज्ञानिकों ने कई अविष्कार कर दिए थे जैसे :-
(1) आर्यभट्ट :- आर्यभट्ट ऐसे वैज्ञानिक हैं जिन्होंने न्यूटन से कई वर्ष पहले ही गति के 3 नियमों को प्रतिपादित कर दिया था, उनकी ये खोज भले ही आज दुनिया के सामने किसी और के नाम से आ रही हो, किन्तु शून्य की खोज ने उन्हें गणित के इतिहास में अमर बना दिया।
(2) सुश्रुत :- महर्षि सुश्रुत शल्य चिकित्सा के जनक कहे जाते हैं । आचार्य सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता नाम के एक ग्रन्थ की रचना की है, जिसमें 125 तरह के उपकरण तथा 300 प्रकार के ऑपरेशनों का वर्णन है ।
(3) आचार्य कणाद :- परमाणु संरचना पर प्रकाश डालने वाले सर्वप्रथम वैज्ञानिक, जिन्होनें डाल्टन से भी पहले परमाणु का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
(4) भास्कराचार्य :- गैलिलियो से सैकड़ों वर्ष पहले गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की।
(5) बौधायन :- ज्यामिति के कई प्रमुख नियमों का प्रतिपादन किया, पाईथागोरस प्रमेय का प्रतिपादन सबसे पहले इन्होने ही किया था, उस समय ज्यामिति को “शाल्व शास्त्र” कहा जाता था।
ऐसे ही एक महान वैज्ञानिक तथा रसायनज्ञ थे “ नागार्जुन” । आज के विद्यार्थी रसायन शास्त्र तो पढ़ते हैं, किन्तु रसायनशास्त्र के इतने बड़े वैज्ञानिक का नाम शायद ही किसी ने सुना होगा। नागार्जुन भारत के धातुकर्मी तथा रसशास्त्री थे। उन्हें पारा तथा लोहा के निष्कर्षण का ज्ञान था। लोहे को रासायनिक विधियों द्वारा सोने में परिवर्तित करने की विधि का ज्ञान उन्हें था।
नागार्जुन जी ने “रस रत्नाकर” नामक ग्रन्थ की रचना की है, जिसमे चांदी, सोना, टिन और ताम्बे की कच्ची धातु निकालने तथा उसे शुद्ध करने के प्रयोगों का वर्णन है। हीरे, धातु और मोती को घोलने के लिए उन्होंने वनस्पति से बने तेजाबों का सुझाव दिया। इस पुस्तक में विस्तारपूर्वक दिया गया है कि अन्य धातुओं को सोने में कैसे बदला जा सकता है।
ऐसे थे भारत के महान वैज्ञानिक। आश्चर्य है न कि बिना किसी उन्नत साधन के इतनी सरलता से इतने बड़े-बड़े खोज और अविष्कार कैसे कर लेते थे किन्तु यह बात तो यथार्थ सत्य है कि भले उनके पास यंत्रों की स्थूल शक्ति नहीं थी किन्तु उनके पास मन्त्रों की सूक्ष्म शक्ति जरुर थी। आज भी भौतिक जगत में उन्नत व्यक्तियों का आधार आध्यात्म ही है।
आध्यात्म तो सारी चीजों का, सारी सफलताओं का आधार है। जो आध्यत्मिक जगत में जितना अधिक मजबूत होगा, भौतिक स्तर पर भी उतना ही अधिक उन्नत होगा, इसलिए सदैव अपने आधार की ओर ध्यान रखकर उसे मजबूत बनाने का प्रयास करें।
पूरे विश्व में आज जो भी है उसकी खोज हमारे ऋषि-मुनियों ने की है, ऋषि-मुनियों ने ध्यान की गहराई में जाकर खोज की है तभी उन्हें अनेक ऐसे रहस्य मिले जिसका आज पूरी दुनिया लाभ उठा रही है, लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारे ऋषि-मुनियों के ग्रन्थ चुराकर विदेशी आक्रांता लेकर चले गए और उसमे से पढ़कर थोड़ा-बहुत ज्ञान पा लिया और दुनिया में बताया कि हमने खोज की है और भारत के इतिहास में भी यही पढ़ाया जा रहा है जो कि एक षडयंत्र है ताकि आने वाली पीढ़ी को पता ही नहीं चले कि वास्तव में ये सारी खोज भारत के ऋषि-मुनियों ने की थी।
भारत के इतिहास को अब बदलना होगा सच्चाई पढ़ानी होगी एवं भारत के लोगो को भी आध्यात्म की तरफ मुड़ना होगा, तभी देश-समाज एवं हर प्राणी का मंगल होगा।