हमसे ही सीखा, हमसे चुराकर ज्ञान अंग्रेज बनें विद्वान – गुरुजी भू

पुरातन संस्कृति में विश्व के कोने कोने में अपनी छाप छोड़ी है। आज भी पुरातन संस्कृति अर्थात सत्य सनातन भारतीय संस्कृति संपूर्ण विज्ञान पर आधारित खरी उतरती है। विश्व के कोने-कोने में अपनी छाप छोड़ती है। भारत में जितने भी प्राचीन कालीन मंदिर हैं या तीर्थ स्थल हैं उनके पीछे कोई ना कोई विज्ञान अवश्य छिपा है। उसको खोजने वालों की कमी है। सभी वैज्ञानिक आधार पर मंदिर बनाए गए। वैज्ञानिक आधार पर ही हमारी संस्कृति का विकास हुआ। घर घर में हमारे हर मां कभी वैद्य हुआ करती थी। उनको अपने बच्चों को क्या देना है, क्या खिलाना है, कब खिलाना है और कोई अगर रोग लग गया तो उसका उपचार कैसे करना है। यह सब चीजे हमारे घर घर में सब लोग जानते थे। सब माताएं जानती थी। इसके बाद की संस्कृतियों ने आक्रांताओं के हमलों से और उसके बाद अंग्रेजों के आने के बाद अधिकतर वैज्ञानिक संस्कृति के मूल को नष्ट करने का काम शुरू हुआ। ऐसा ही एक उदाहरण तमिलनाडु में मिलता है, जो बहुत ही प्राचीन है 2000 वर्ष पुराने मंदिर में एक व्यक्ति साइकिल के ऊपर बैठा है। उसकी प्रतिमा का बिल्कुल हुबहू साइकिल पर बैठे व्यक्ति की तरह चित्रण है। अर्थात पहले से हमारे पास इस तरह की कुछ चीजें थी। जो प्राचीन काल में हमारे वैज्ञानिकों ने, हमारे ऋषि-मुनियों ने शोधकर्ताओं ने उस विज्ञान को खड़ा किया था। ऐसे ही बहुत सारे उदाहरण मिलते हैं।

तमिलनाडु के प्राचीन पंचवर्णस्वामी मंदिर की दिवार पर साईकिल पर बैठे एक व्यक्ति की मूर्ति उकीर्ण है।

जिसमे साफ़ तौर पर व्यक्ति पैडल मारता हुआ बड़ी बड़ी मुछ वाला भारतीय दिखाई दे रहा है। इस तस्वीर ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है।

ये मंदिर लगभग 2000 साल पुराना है । लेकिन साईकिल का आविष्कार तो 200 साल पहले यूरोप में हुआ था। ऐसा ही हमारे युवाओं को हमारे विद्यार्थियों को बताया गया। लेकिन हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों के शोध अनुसंधान को बताया ही नही किया। चाहे वह विमानन पद्धति हो, साइकिल पद्धति हो, पारा पद्धति हो या अणु और परमाणु की विद्या हो। वह किसी को नहीं बताई गई । औद्योगिक पद्धति भी हमारी सर्वश्रेष्ठ रही है। ढाका का मल मल विश्व प्रसिद्ध रहा है।  एक समय ऐसा था ढाका में विश्व का सर्वश्रेष्ठ मलमल बनता था। आज भी कोई दुनिया की मशीन उस तरह का मल मल नहीं बना पाती है। जो उस समय ढाका के वैज्ञानिक बनाते थे। मैं उनको वैज्ञानिक ही कहूंगा। वह बहुत ही बड़े आविष्कारक थे जिन्होंने ढाका का मलमल बनाया था।

_ये भी एक विचारणीय विषय है की अंग्रेजो नें सारे रिसर्च भारत आनें के बाद ही क्यों किऐ ?

या तो उन्होंने भारत आकर ये सब सीखा या फिर भारत के अविष्कारों को लुटकर अपनें नाम से प्रकाशित कर पुरी दुनियां में वाह-वाही लुटी किंतू ये दोनों ही बातें निराधार लगती हैं, जब भारत के ही कुछ  तथाकथित विद्वान कुटिल बुद्धि के प्राणी कहते हैं की अंग्रेज आये तो भारत में विज्ञान आया। वो निराधार है।

इसलिए अपनी संस्कृति को जानिए, पहचानिए उस पर शोध करिये, अनुसंधान करिए और अपने आप को सुरक्षित और गौरवान्वित महसूस करिए।

यदि अंग्रेज भारत में विज्ञान लाए तो इनके सारे वैज्ञानिक रिसर्च की तारिखें 17वीं सदी के बाद की क्यों हैं ?

।। सनातन विज्ञानम् विजयते ।।

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