जय सत्य सनातन
हिन्दुस्थान में धर्म-परिवर्तन (वास्तव में मत परिवर्तन) का इतिहास, परिणाम, रोकने के उपाय- ०७🏹*
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*🚩ऊ. धर्म-परिवर्तन रोकने के लिए छत्रपति संभाजी महाराज द्वारा अंग्रेजों से की गई संधि (समझौता) !*
‘वर्ष १६८४ में मराठा और अंग्रेजों के मध्य संधि हुई । इस संधि में छत्रपति संभाजी महाराज ने अंग्रेजों के सामने प्रतिबंध (शर्त) रखा, ‘मेरे राज्य में दास (गुलाम) बनाने के लिए अथवा ईसाई धर्म में धर्मांतरित करने के लिए लोगों को क्रय करने की अनुमति नहीं ।’ – डॉ. (श्रीमती) कमल गोखले (ग्रंथ : ‘शिवपुत्र संभाजी’)
*🔅५. स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के पश्चात्का काल*
*♦️५ अ. ‘मुस्लिम लीग ’के ‘ _प्रत्यक्ष कार्यवाही दिन योजना’_ (डायरेक्ट एक्शन डे) के परिपत्रक में हिंदुओं को बलपूर्वक धर्मांतरित करने की आज्ञा होन ‘मुस्लिम लीग’ने १६.८.१९४६ को मुसलमानों को, ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही योजना’के विषयमें जानकारी देनेवाला परिपत्रक प्रकाशित किया । उसमें मुसलमानों को दी गई अनेक आज्ञाओंमें से _एक आज्ञा थी, ‘हिंदु स्त्रियों और लडकियों पर बलात्कार करो तथा भगाकर उनका धर्म-परिवर्तन करो ।’_
*♦️५ आ. नेहरू के कार्यकाल में ईसाईकृत धर्म-परिवर्तन को प्राप्त राज्याश्रय*
*♦️५ आ १. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् ईसाइयों को धर्मप्रचार की स्वतंत्रता देने वाले नेहरू !*
‘देश स्वतंत्र होने के पश्चात् प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ईसाई मिशनरी संगठनों को भारतीय संविधानके अनुच्छेद ‘२५ अ’ के अंतर्गत धर्मप्रचार की स्वतंत्रता प्रदान की । फलस्वरूप स्वतंत्रता पूर्व भारत में ईसाइयों की जो संख्या ०.७ प्रतिशत थी, वह आज लगभग ६ प्रतिशत हो गई है ।’ – श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर
*♦️५ आ २. गेहूं बेचने पर ईसाइयोें के लिए धर्मप्रचार करनेकी अनुमति मांगनेवाली ईसाई अमरीका और उसे अनुमति देनेवाले नेहरू !*
‘स्वतंत्रताके पश्चात् देश में खाद्यान्न का भीषण अभाव हो गया । देश की आर्थिक स्थिति ठीक न होनेके कारण रूस ने, जहां वस्तुओं का आदान-प्रदान करना (Barter System), इस नीति के अनुसार देश को गेहूं की आपूर्ति की । वहीं अमरीका ने गेहूं बेचने के लिए कुछ बंधनकारी नियम बनाए । उनमें पहला प्रतिबंध (शर्त) था, ‘ईसाई मिशनरियों को हिंदुस्थान में धर्मप्रचार की छूट दी जाए’ । इस नियम का अनेक लोगों ने विरोध किया । इसपर नेहरू ने न्या. भवानीशंकर नियोगी की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की । ‘समस्या केवल धर्मप्रचार की नहीं, अपितु उसके द्वारा होनेवाले धर्म-परिवर्तन का भी सूत्र विचार करने योग्य है’, यह न्या. नियोगी के कहने के पश्चात् भी गेहूं प्राप्त करने के लिए अमरीका का नियम स्वीकार कर संविधान की ‘धारा ४८०’ में तदनुसार व्यवस्था की गई । तबसे ईसाई धर्मका प्रचार, अर्थात् ईसााईकृत धर्म-परिवर्तन मुक्तरूप से चल रहा है ।’ – श्री. वसंत गद्रे
*♦️५ आ ३. ‘धर्मप्रचार के पीछे ईसाई चर्च और मिशनरी संगठनों का राजनीतिक उद्देश्य है’, ऐसा सप्रमाण कहनेवाली शासनद्वारा नियुक्त समिति के प्रतिवेदन की अनदेखी करने वाले नेहरू !*
‘ईसाई मिशनरी संगठनों के कार्य की जांच करने के लिए १९५५ में तत्कालीन मध्यप्रदेश शासन ने न्या. भवानीशंकर नियोगी की अध्यक्षता में समिति बनाई थी । उस समिति ने अपने प्रतिवेदन में अनेक उदाहरण और प्रमाण के साथ स्पष्ट रूपसे उल्लेख किया था, ‘धर्मप्रचार के पीछे ईसाई चर्च एवं मिशनरी संगठनों का राजनीतिक उद्देश्य है’ और अनुशंसा की थी, ‘ _उन्हें मिलनेवाली विदेशी धनकी सहायता बंद की जाए’ । नेहरू शासनने उस प्रतिवेदनको कूडेदानमें फेंक दिया ।’_
*♦️५ इ. इंदिरा गांधी के शासनकाल में अमरीकी ईसाई संस्थाओं द्वारा धर्म- परिवर्तन के कार्य को गति प्रदान करना*
_स्वतंत्रता के पश्चात् इंदिरा गांधी ने ४२ वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष’ यह शब्द लाया ।_ तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत को शासकीय स्तरपर बढावा मिलने के पश्चात् अनेक अमरीकी संस्थाओं ने हिंदुस्थान में ईसाई धर्मप्रचार एवं धर्म-परिवर्तन की गति बढाई ।
*♦️५ ई. सोनिया गांधी का राजनीति के सर्वोेच्च पद पर होने के कारण धर्म-परिवर्तन को अत्यधिक गति प्राप्त होना।
‘ईसाई सोनिया गांधी राजनीति में सर्वोच्च पद पर होने के कारण ही हिंदुस्थान में ईसाइयों ने हिंदुओं के धर्म-परिवर्तन को व्यापक आंदोलन के रूपमें आरंभ किया । इस कार्य में देश के विविध राज्यों में अनगिनत ईसाई मिशनरी सक्रिय हैं ।’ – फ्रान्सुआ गोतीए, फ्रेंच पत्रकार
निकट भविष्य में धर्म-परिवर्तन के दुष्परिणाम आगे भयंकर देखने को मिलेंगे।
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