भारत विज्ञान का पितामह, नारद पुराण में है- वृत्त का क्षेत्रफल निकालना, वृत्त की परिधि निकालना, ग्रहों की गति, कोण के द्वारा पैराबोलिक गति और समीकरण

 

हमने नारदीय पुराण में पढ़ा है-
वृत्त का क्षेत्रफल निकालना
वृत्त की परिधि निकालना
ग्रहों की गति, कोण के द्वारा पैराबोलिक गति और समीकरण
जिसे झुठल्ले अंग्रेजों नें समकोण त्रिभुज से संबंधित पाइथागोरस सिद्धांत का नाम दिया वह नारदीय पुराण में हजारों वर्षों से है ।
नारदीय पुराण ज्योतिष और ग्रह नक्षत्रों का विज्ञान है जिसकी गणना के लिये आज सुपर कम्प्यूटर की जरूरत पड़ती है- वह हजारों वर्षों पहले हमारे ॠषियों नें बिना मशीनों के ही संभव किया था।
वैदिक गणित मुख्य आधार था ।
झूठे विदेशी सारे खोज कोलम्बस,व्हेनसांग,फाह्यान के भारत आने के बाद ही कैसे कर पाये?
हमारे ग्रंथों को ले जाकर नकल मारकर अपने नाम से श्रेय ले गये ।
हम तो आज तक गधे ही रह गये । इसलिये सजा के लायक बन बैठे हैं। भयंकर खात्मा के मुहाने पर हैं। हमने धर्म को धारण का विषय नहीं- पूजन का विषय बना दिया ।ज्यादा हुआ तो प्रवचन के लायक बना लिया ।
ग्रंथों को पढ़ना, अनुशीलन करना,चरितार्थ (प्रैक्टिस) करना छोड़ कर ,लाल कपड़े में लपेट कर पूजा का विषय बना दिया ।
किसी ने बहुत कुछ कर लिया तो उसने वैराग्य का गलत अर्थ निकाल लिया ।
मतलब मैं तो सन्यासी हूँ, मुझे दुनिया से क्या लेना देना ।मैं दुनिया को कुछ क्यों दूं।अकेले में निरपेक्ष मर जाऊँ। मैं तो सन्यासी हूँ।
जैसे-
दुनिया की सबसे ऊँची शिक्षा क्या है?वह नीचे-
*सर्वो उपनिषदो गावो,दोग्धा गोपाल नंदनः।*
*पार्थो वत्सःसुधीर भोक्ता, गीता दुग्धं अमृतं महत्।*
अर्थ- वेद -दुनिया का सबसे ऊंचा और प्राचीनतम ज्ञान,उसका विस्तार उपनिषद, इन सर्वोत्कृष्ट, प्राचीनतम,समृद्ध ज्ञान को दुहने वाले श्रीकृष्ण, श्री अर्जुन बछड़ा, अमृत जैसा दूध है-
*श्री भगवद् गीता ।*
– *श्री एक करोड़ आठ श्री भगवद् गीता*
अर्थात दुनिया के सभी ज्ञान का निचोड़ है – *भगवद् गीता*
*और भगवद् गीता का मुख्य* *आदेश क्या है- मेरा ध्यान करके अन्याय के विरूद्ध शस्त्र उठा ।* अन्याय के विरूद्ध इकट्ठा हो- कुरुक्षेत्र में- अर्थात कर्म क्षेत्र में। जिस क्षेत्र का मुख्य गुणधर्म था – क्रूरता ।दया को धर्म नहीं- बंधन कहा गया है – श्रीकृष्ण नें दया का त्याग करने कहा । आज तो शस्त्र उठाने की भी जरूरत नहीं, केवल अपनी गली वालों के साथ मिलकर, समर्थ बन।हर हफ्ते अपनी गली के मंदिर में साप्ताहिक पूजा करिये।
अफसोस, घोर अफसोस- यह ग्रंथ आज 90% भारतीयोंं केे घरों में नहीं है, जिनके घर में है उसमें 90% नें पढ़ा ही नहीं, जो पढ़ा उसमें 99% नें समझा नहीं, जिसने समझा उनमें 99.5% के पास समर्थ गुरु(श्रीकृष्ण जैसे) नहीं, जिनके गुरु हैं, उनमें 99.9% के पास समय नहीं।
सुनने का प्रावधान नहीं। पता नहीं किस मूर्ख दुश्मन नें मरते समय गीता पढ़ने की दुर्व्यवस्था दे दी ।
वाह रे अकर्मण्य भारत के सपूूतों धिक्कार है, पापी है तू ।
इसी की सजा है- बहुसंख्यक रहकर , म्लेच्छों के हाथ पिटता, मिटता गया।

 

साभार

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