*_लाउड स्पीकर की अजान से है परेशान तो उठाए ये कदम कानून देगा साथ_*
*प्रस्तावना – मुस्लिमों की अजान से पीड़ित गैर मुस्लिम यह लेख जरुर पढ़े|*
*१: अजान के कारण मस्जिदों के ट्रस्टीओं पर आईपीसी के तहत गुनाह दाखिल किया जा सकता है और उनको आसानी से सजा लग सकती है| इसलिए वे स्वयं ही कानून का पालन करे तो देशहित में अच्छा होगा|*
भारत धर्मनिरपेक्ष देश है| संविधान यह कहता है की यहाँ हर धर्म के नागरिक को अन्य धर्मियों की भावनाओं को आहत किये बिना जिम्मेदारी से रहना जरुरी है| इस लेख में यह सबूतों के साथ दिखाया गया है की मुस्लिम समाज सालों से संविधान और कानून की धज्जियाँ उड़ा रहा है और अन्य धर्मियों के भावनाए और श्रद्धा को ठेस पंहुचा रहा है|
इस कारण हर गाँव, मोहल्ला, शहर में मस्जिद के ट्रस्टी के खिलाफ पुलिस थाने तथा कोर्ट में आईपीसी की विशिष्ट धाराओं (धाराए १५३, १५३ अ, २९५ अ) के तहत गुनाह दाखिल किया जा सकता है| क़ानूनी बात होने से लेख लम्बा जरूर है पर अजान से पीड़ित हर व्यक्ति इसे ध्यान से पढ़े और मुस्लिम समाज को कानून का पालन करने को बाध्य करे| मुस्लिम समाज भी अगर इस लेख को पढ़कर अपनी गलतियां खुद ही सुधारे तो सही होगा|
*२: अजान आईपीसी की धाराए १५३, १५३ अ, २९५ अ का उल्लंघन करती है*
एक गैर मुस्लिम अजान से पीड़ित होकर भी कुछ नहीं कर पता क्यों की उसे सही क़ानूनी पहलु पता नहीं होते है| इसलिए पहले अजान का अर्थ इस लेख में दिया है और इस लेख में यह भी सप्रमाण दिखाया गया है की अजान आईपीसी की धाराए १५३, १५३ अ, २९५ अ का उल्लंघन करती है और इसलिए उसमे से विशिष्ट शब्द हटाने चाहिए और माननीय सर्वोच्च न्यायालय को व्यापक जनहित का ध्यान रखते हुए इसका सुओ मोटो संज्ञान लेना जरुरी हो गया है| अगर मुस्लिम समुदाय स्वयं ही संज्ञान लेकर अजान से विवादित शब्द हटा देते है अथवा अजान के लिए लाऊडस्पीकर का उपयोग बंद कर देते है तो देश में सद्भावना बढ़ेगी|
*३: इलाहबाद हाईकोर्ट अजान पर क्या कहता है यह समझ लेना जरुरी है और उसके क़ानूनी पहलु समझने जरुरी है*
*३.१ मुद्दा १: लाऊडस्पीकर इस्लाम का हिस्सा नहीं है|*
जस्टिस शशिकांत गुप्ता और जस्टिस अजीत कुमार की बेंच ने कहा कि मुअज्जिन (अजान देनेवाला) बिना लाउडस्पीकर या अन्य किसी उपरकण के अपनी आवाज में मस्जिदों से अजान पढ़ सकता है| मस्जिदों में अजान से कोविड-19 की गाइडलाइन का कोई उल्लंघन नहीं होता है| हाई कोर्ट ने अपने फैसले में अजान को धार्मिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ मामला बताया, लेकिन लाउडस्पीकर से अजान को इस्लाम का हिस्सा नहीं बताया| _*[जब लाउडस्पीकर नहीं थे तब भी अजान होती थी| अजान इस्लाम का हिस्सा है पर लाउडस्पीकर इस्लाम का हिस्सा नहीं है| अब तो अजान के app भी है जो अलार्म भी बजाते है और अजान भी सुनाते है| तो लाउडस्पीकर से गैरमुस्लिमों को परेशान करना यह जानबूझकर किया हुआ उकसानेवाला कृत्य होगा| यह मुस्लिमों का धार्मिक उन्माद ही प्रतीत होता है]*_
*३.२ मुद्दा २: किसी मस्जिद ने लाऊड स्पीकर का लाइसेंस स्थानिक पुलिस से लिया भी हो तो भी रात के १० बजेसे सुबह ६ बजे तक लाऊडस्पिकर बंद ही रहे, उसमे कोई छूट नहीं है|*
कोर्ट ने कहा कि जिला प्रशासन किसी भी हालत में रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दे सकता. साथ ही कोर्ट ने कहा कि किसी मस्जिद में लाउडस्पीकर से अजान पढ़ने के लिए प्रशासन की अनुमति लेनी जरूरी होगी. बिना प्रशासन की अनुमति लिए लाउडस्पीकर से अजान पढ़ना गैरकानूनी होगा. _[यह समझ लेना जरुरी है की शांति से नींद का अधिकार मुलभुत मानव अधिकार है| इसीलिए *ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000* के तहत रात्रि के १० बजेसे सुबह ६ बजे तक लाउडस्पीकर नहीं चलाये जाते है और यह नियम हर धर्म के नागरिक पर लागु होती है| पर मुस्लिम समाज नियम, कानून की परवाह नहीं करता ऐसा हमेशा देखा गया है और इससे धार्मिक सौहार्द ख़तम हो रहा है|]_
*३.३ मुद्दा ३: क्या आप के मोहल्ले की मस्जिद ने लाऊडस्पीकर चलने का लाइसेंस लिया है?*
कोई भी भारतीय नागरिक RTI एक्ट के तहत स्थानिक पुलिस थाने के इलाके में कितनी मस्जिदे है, कितने लाऊडस्पीकर लाइसेंस दिए गए है यह जानकारी ले सकता है और उन लाइसेंस की प्रमाणित कॉपी भी मांग सकता है| इससे कौन से मस्जिदों पर बिना लाइसेंस के लाऊडस्पीकर लगाये गए है वह पता चल सकता है|
*४: क्या यह लेख मुस्लिम विरोधी है? – बिलकुल ही नहीं है|*
देशहित के लिए चिकित्सक तर्कपूर्ण वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखना और कानून का पालन करना हर भारतीय का संविधानिक मुलभुत कर्त्तव्य है| यह लेख उस कर्त्तव्य का पालन करते हुए लिखा गया है| अजान की वजह से देश में बार बार जो धार्मिक तनाव बनते है उसपर स्थायी हल निकालने के लिए यह लेख लिखा गया है| मुस्लिमों से भी आग्रह है की वे कानून और संविधान का पालन करे और इस लेख में कुछ कमी है तो उसपर खुलासा करें| मुस्लिमों की गैरकानूनी हरकते उजागर करना धार्मिक सद्भावना बिगड़ानेवाला कृत्य बिलकुल नहीं है|
*५: अजान आईपीसी की धाराए १५३, १५३ अ, २९५ अ का उल्लंघन कैसे करती है यह समझने के लिए पहले हम ‘अज़ान (उर्दू: أَذَان)’ या ‘अदान’ के सारे हिस्सों का मतलब जान लेंगे*
*५.१: अजान क्या है?*
इस्लाम में मुस्लिम समुदाय अपने दिन भर की पांचों नमाज़ों के लिए बुलाने के लिए ऊँचे स्वर में जो शब्द कहते हैं, उसे अज़ान/अदान कहते हैं। अज़ान कह कर लोगों को [मस्ज़िद] की तरफ़ बुलाने वाले व्यक्ति को मुअज़्ज़िन कहते हैं। आप नीचे दी हुई लिंक पर अजान के हर हिस्सेका का अर्थ हिंदी में जान सकते है| इन्टरनेट पर आपको अन्य जगह भी अजान का अर्थ अलग अलग भाषाओँ में मिलेगा|
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%A8
*५.२ अजान का अर्थ*
[५.२.१] सर्वप्रथम मुअज्जिन ४ बार ‘अल्लाह हू अकबर’ यानी ‘अल्लाह सबसे महान/बड़ा है’, कहता है। इन शब्दों पर गैर मुस्लिमों को कानूनन आपत्ति है| इससे उनकी धार्मिक भावनाए कैसे आहत होती है यह आगे बताया गया है|
[५.२.२] इसके बाद मुअज्जिन दो बार कहता है- ‘अश-हदू अल्ला-इलाहा इल्लल्लाह’ अर्थात ‘मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवाय कोई पूजनीय (इबादत के काबिल) नहीं है’। इन शब्दों पर गैर मुस्लिमों को कानूनन आपत्ति है| इससे उनकी धार्मिक भावनाए कैसे आहत होती है यह आगे बताया गया है|
[५.२.३] फिर मुअज्जिन दो बार कहता है- ‘अशहदु अन-ना मुहम्मदर्रसूलुल्लाह’ जिसका अर्थ है- ‘मैं गवाही देता हूँ कि हजरत मुहम्मद अल्लाह के रसूल (उपदेशक) हैं’।
[५.२.४] फिर मुअज्जिन दाहिनी ओर मुँह करके २ बार कहता है — ‘ह़य्य ‘अलस्सलाह’ अर्थात् ‘आओ नमाज (इबादत) की ओर’।
[५.२.५] फिर बाईं ओर मुँह करके मुअज्जिन दो बार कहता है- ‘ह़य्य ‘अलल्फलाह’ यानी ‘आओ कामयाबी की ओर’।
[५.२.६] ## सिर्फ फजर यानी भोर की अजान में मुअज्जिन यह वाक्य कहता है —- ‘अस्सलातु खैरूं मिनन नउम’ अर्थात ‘नमाज नींद से बेहतर है’।
[५.२.७] इसके बाद मुअज्जिन सामने (पश्चिम) की ओर मुँह करके कहता है- ‘अल्लाह हू अकबर’ अर्थात ‘अल्लाह ही सबसे बड़ा/महान है’। इन शब्दों पर गैर मुस्लिमों को कानूनन आपत्ति है| इससे उनकी धार्मिक भावनाए कैसे आहत होती है यह आगे बताया गया है|
[५.२.८] अंत में एक बार ‘ला इलाह इल्लल्लाह’ अर्थात् ‘अल्लाह के सिवा कोई भी पूजनीय (इबादत के काबिल) नहीं है’। इन शब्दों पर गैर मुस्लिमों को कानूनन आपत्ति है| इससे उनकी धार्मिक भावनाए कैसे आहत होती है यह आगे बताया गया है|
*६: अजान में ‘## अल्लाह हो अकबर ##’ कहने से गैर मुस्लिम धर्मियों के धार्मिक भावना को ठेस पहुचती है और आइपीसी की धारा १५३, १५३ अ, २९५ अ के तहत मुक़दमा हो सकता है, जो की भारत के सहिष्णु गैर मुस्लिम नागरिकों ने अब तक तो नहीं किया है, लेकिन मुस्लिम धार्मिक उन्माद चलता रहा तो पीड़ितों द्वारा ऐसे मुक़दमे हो सकते है|*
*६.१:* अजान मुस्लिमों के लिए होती है और हर मुस्लिम ‘अल्लाह हू अकबर यानि अल्लाह ही सबसे बड़ा/महान है’ यह बात (उनका धार्मिक विश्वास/सच) पहले से ही जानता है| तो क्या ऐसा _*रोज पांच बार मुस्लिमों साथ अन्य धर्मियों को भी ऊँची आवाज में सुनाने की यह कृति (हरकत)*_ जानबुझकर गैर मुस्लिमों को उकसाने जैसा *(willful provocation)* नहीं है? कोर्ट को इसका संज्ञान सुओ मोटो (suo moto) लेना ही होगा और हर दिन पाच बार गैरमुस्लिमों की भावनाओं को आहत करना रोकना होगा|
*६.२:* ऊँची आवाज में दी जानेवाली अजान में ‘अल्लाह हू अकबर’ इन शब्दों का होना संविधान के विरुद्ध तो है ही, साथ में वह आईपीसी धारा १५३, १५३ अ और २९५ अ का खुलेआम उल्लंघन है| इसपर अब तक किसीने आपत्ति नहीं की इसका मतलब यह बिलकुल नहीं की अजान क़ानूनी तौर पर जायज हो गयी है| इसपर कोर्ट में याचिका बन सकती है और अजान से यह शब्द हटाने की मांग की जा सकती है या फिर अजान लाउडस्पीकर पर ना देनेका आदेश हो सकता है| भारत में आंबेडकर द्वारा दिया हुआ संविधान ही सर्वोच्च किताब है| मुस्लिम समाज संविधान और कानून की अनदेखी करता है यह गलत है|
*६.३:* जब लाऊडस्पीकर नहीं थे तब भी अजान कम आवाज में होती थी यह बात समझकर और अन्य धर्मियों की भावनाओं का आदर करते हुए मुस्लिम समुदाय को स्वयम ही लाऊडस्पीकर हटाने चाहिए या फिर अजान से ‘अल्लाह हू अकबर’ शब्द हटाने चाहिए| हर गैर मुस्लिम अब अच्छे और सच्चे और देशप्रेमी मुस्लिम से यह उम्मीद रखता है और इसपर मुस्लिम स्वयं ही पहल करे तो देश के हित में बड़ी बात होगी|
*६.४:* आप अपने प्रार्थनास्थल में अपने खुदा की इबादत/पूजा जरूर करे, उसके गुण गाए इसमें किसी को कोई परेशानी नहीं है| संविधान यह अधिकार हर नागरिक को देता है| पर भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में क्या इस तरह से लाउडस्पीकर पर ऊँची आवाज में ‘अल्लाह ही सबसे बड़ा/महान है’ ऐसा खुले आम कहकर दूसरे धर्मों के मानने वालों की भावनाओं को ठेस पहुंचायी जा सकती है? एक सेकुलर देश में क्या कोई यह कैसे कह सकता है कि अल्लाह ही सबसे बड़ा/महान है? देश जिनके संविधान से चलता है वह आंबेडकर जी महान नहीं है? अहिंसा का मार्ग दिखानेवाले बुद्ध और महावीर महान नहीं है? क्या श्रीकृष्ण और नानक देव जी महान नहीं है?
*६.५:* मुस्लिम यह नहीं समझते है की वे अपनी इबादत अपने प्रार्थनास्थल तक ही सिमित रखे तो सही होगा, खुले आम चिल्लाकर अन्य धर्मियों की भावना को ठेस पहचाना गलत है|
*६.६:* बौद्ध बुद्ध ही सबसे महान है ऐसे कभी चिल्लाते नहीं| इसाई जीजस या येहोवा ही सबसे महान ऐसे खुले आम चिल्लाते नहीं है| सारे गैर मुस्लिम समाज अपने घर या प्रार्थना स्थल के दायरे में और दूसरों को परेशान किये बिना अपने इश्वर की महानता कहते है, गुणगान करते है| साथ में गई मुस्लिम अन्य धर्मियों के इश्वर को भी महान मानते है| हर धर्म के लोग अपने इश्वर को सबसे महान मानते है इसमें गलत कुछ नहीं| वह श्रद्धा की बात है| पर केवल मुस्लिम ही अपने इश्वर की महानता चिल्लाकर देश के धार्मिक सौहार्द को हर दिन ठेस पहुचाते है| वे लाऊडस्पीकर लगाकर यह बात करते है और वह गलत है|
*६.७:* देखा जाये तो बौद्धों के लिए बुद्ध और आंबेडकर जी महान है, ईसाईयों के लिए जीजस और येवोहा महान है, सिखों के लिए सारे गुरु और गुरु ग्रंथसाहिब महान है, हिन्दुओं के लिए भगवान् के अलग अलग रूप महान है, जैनों के लिए उनके २४ तीर्थंकर महान है| मतलब यह की हर धर्म में कोई न कोई महान है| हर भारतीय के लिए संविधान निर्माता आंबेडकर जी महान है| उनसे ही तो हमारा देश चलता है| तो केवल अल्लाह ही महान है यह लाऊडस्पीकर पर खुलेआम चिल्लाकर कहना सभी गैर मुस्लिमों की भावनाए आहत करता है|
*६.८:* अगर मुस्लिम बिना लाऊडस्पीकर के ऐसे कहे तो कोई आपत्ति नहीं क्योंकि आवाज ज्यादा दूर नहीं जाएगी| लाऊडस्पीकर से पहले से ही इस्लाम और उसकी अजान थे| इसलिए अजान बिना लाऊडस्पीकर से भी हो सकती है| लाऊडस्पीकर पर ही केवल अल्लाह ही महान है ऐसे चिल्लाना हर गैर मुस्लिम की भावनाए आहत करता है और इसलिए ऐसे मस्जिदों के ट्रस्टी पर मुकादमा बनता भी है और सजा भी हो सकती है|
*६.९:* संविधान यह कहता है की आप अपने धर्म का पालन जरुर करे पर अन्य धर्मियों के धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुचाये बिना यह काम करो| धर्म तो निजी श्रद्धा की बात है और उसका निर्वाह संयमित तरीके से अपने घर या प्रार्थनास्थल तक सिमित होना चाहिए| लेकिन *हर एक दिन पांच बार होनेवाली नमाज से पहले खुलेआम जोर से आवाज देकर ‘अल्लाह सबसे बड़ा/महान है’ यह कहकर अन्य सारे धर्मियों की भावना को ठेस लगायी जाती है|* ऐसा खुलेआम कहने से गैरमुस्लिम धर्मों के लोगों के देवता और महापुरुषों का अपमान भी होता है|
*६.१०* *अगर मुस्लिम ‘अल्लाह सबसे बड़ा/महान है’ यह बात अपने घर में या प्रार्थनास्थल में या इनके धार्मिक सत्संग में कहेंगे तो ठीक है; पर उनके द्वारा खुलेआम चिल्लाकर ऐसी बात कहना संविधान के विरुद्ध तो है ही, साथ में वह आईपीसी धारा १५३, १५३ अ और २९५ अ का खुलेआम उल्लंघन है| इस बात पर अब तक किसीने आपत्ति नहीं की इसका मतलब यह बिलकुल नहीं की अजान क़ानूनी तौर पर जायज है| इसपर कोर्ट में याचिका बन सकती है और अजान से यह शब्द हटाने की मांग की जा सकती है या फिर अजान लाउडस्पीकर पर ना देनेका आदेश हो सकता है| जब लाऊडस्पीकर नहीं थे तब भी अजान कम आवाज में होती थी यह बात समझकर और अन्य धर्मियों की भावनाओं का आदर करते हुए मुस्लिम समुदाय को स्वयम ही लाऊडस्पीकर हटाने चाहिए या फिर अजान से ‘अल्लाह हू अकबर’ शब्द हटाने चाहिए| हर गैर मुस्लिम अब अच्छे और सच्चे मुस्लिम से यह उम्मीद रखता है और इसपर मुस्लिम स्वयं ही पहल करे तो देश के हित में बड़ी बात होगी|*
*७: अजान में ‘## अश-हदू अल्ला-इलाहा इल्लल्लाह [मतलब यानि अल्लाह के सिवाय कोई भी पूजनीय —इबादत के काबिल) नहीं इसकी गवाही]##’ कहने से गैर मुस्लिम धर्मियों के धार्मिक भावना को ठेस पहुचती है और आइपीसी की धारा १५३, १५३ अ, २९५ अ के तहत मुक़दमा हो सकता है, जो की भारत के सहिष्णु गैर मुस्लिम नागरिकों ने अब तक तो नहीं किया है| अजान में ‘ला इलाह इल्लल्लाह’ अर्थात् ‘अल्लाह के सिवा कोई भी पूजनीय (इबादत के काबिल) नहीं है’ ऐसा कहने से गैर मुस्लिम धर्मियों के धार्मिक भावना को ठेस पहुचती है और आइपीसी की धारा १५३, १५३ अ, २९५ अ के तहत मुक़दमा हो सकता है, जो की भारत के सहिष्णु गैर मुस्लिम नागरिकों ने अब तक तो नहीं किया है|*
*७.१:* अजान केवल मुस्लिमों के लिए होती है और हर मुस्लिम ‘अश-हदू अल्ला-इलाहा इल्लल्लाह यानि अल्लाह के सिवाय कोई पूजनीय (इबादत के काबिल) नहीं इसकी गवाही’ यह बात (उनका धार्मिक विश्वास/सच) पहले से ही जानता है| तो क्या ऐसा _*रोज पांच बार मुस्लिमों साथ अन्य धर्मियों को भी ऊँची आवाज में इस बात को सुनाने की यह कृति (हरकत)*_ जानबुझकर गैर मुस्लिमों को उकसाने जैसा *(willful provocation)* नहीं है? कोर्ट को इसका संज्ञान सुओ मोटो (suo moto) लेना ही होगा और हर दिन पाच बार गैरमुस्लिमों की भावनाओं को आहत करना रोकना होगा| समझने की बात यह है की *अल्लाह के सिवाय कोई पूजनीय (इबादत के काबिल) नहीं इसकी गवाही देना मुस्लिमों की आपसी बात है| उसे लाऊडस्पीकर पर चिल्लाकर गैर मुस्लिमों पर थोपना गलत है| गैर मुस्लिमों के भी आराध्य होते है और उनको अल्लाह के साथ तोलकर हर दिन निचा दिखाना गलत बात है|*
*७.२:* अजान में ‘ला इलाह इल्लल्लाह’ अर्थात् ‘अल्लाह के सिवा कोई भी पूजनीय (इबादत के काबिल) नहीं है’ ऐसा कहने से गैर मुस्लिम धर्मियों के धार्मिक भावना को ठेस पहुचती है और आइपीसी की धारा १५३, १५३ अ, २९५ अ के तहत मुक़दमा हो सकता है, जो की भारत के सहिष्णु गैर मुस्लिम नागरिकों ने अब तक तो नहीं किया है|
*७.३:* हमारे लिए बाबासाहेब आंबेडकर, विवेकानंद, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक और अनेक महापुरुष और देवताए पूजनीय है| अल्लाह के सिवा कोई पूजनीय नहीं ऐसे लाऊडस्पीकर पर रोज चिल्लाना हर गैर मुस्लिम की धार्मिक भावनाए खुलेआम आहत करता है और इसलिए मस्जिद के ट्रस्टी गुनहगार है, उनपर मुक़दमा बन सकता है और सजा भी लग सकती है| संविधान के निर्माता डॉ. आंबेडकर जी हम सब के लिए परम पूजनीय महापुरुष है| बुद्ध और महावीर हम सब के लिए परम पूजनीय है| जुल्मी औरंगजेब से टक्कर लेकर धर्म के लिए प्राण देनेवाले सिख गुरु हम सभी के लिए परम पूजनीय है| इसके अलावा हमारे बहुत सारे श्रद्धेय और पूजनीय महापुरुष है| इसलिए जब अजान में ‘ला इलाह इल्लल्लाह’ और ‘अश-हदू अल्ला-इलाहा इल्लल्लाह [मतलब यानि अल्लाह के सिवाय कोई भी पूजनीय —इबादत के काबिल) नहीं’ ऐसा सुनाई देता है तब हर गैर मुस्लिम की धार्मिक भावना को ठेस लगती है| कोर्ट को इसका संज्ञान सुओ मोटो (suo moto) लेना ही होगा और हर दिन पाच बार गैरमुस्लिमों की भावनाओं को आहत करना रोकना होगा|
*७.४:* ऊँची आवाज में दी जानेवाली अजान में ‘अश-हदू अल्ला-इलाहा इल्लल्लाह’ और ‘‘ला इलाह इल्लल्लाह’ इन शब्दों का होना संविधान के विरुद्ध तो है ही, साथ में वह आईपीसी धारा १५३, १५३ अ और २९५ अ का खुलेआम उल्लंघन है| इस बात पर अब तक किसीने आपत्ति नहीं की इसका मतलब यह बिलकुल नहीं की अजान क़ानूनी तौर पर जायज है| इसपर कोर्ट में याचिका बन सकती है और अजान से यह शब्द हटाने की मांग की जा सकती है| या फिर अजान लाउडस्पीकर पर ना देनेका आदेश हो सकता है|
*७.५:* जब लाऊडस्पीकर नहीं थे तब भी अजान कम आवाज में होती थी यह बात समझकर और अन्य धर्मियों की भावनाओं का आदर करते हुए मुस्लिम समुदाय को स्वयम ही लाऊडस्पीकर हटाने चाहिए या फिर अजान से ‘अश-हदू अल्ला-इलाहा इल्लल्लाह’ शब्द हटाने चाहिए| हर गैर मुस्लिम अब अच्छे और सच्चे मुस्लिम से यह उम्मीद रखता है और इसपर मुस्लिम स्वयं ही पहल करे तो देश के हित में बड़ी बात होगी|
*८: अजान में ‘अशहदु अन-ना मुहम्मदर्रसूलुल्लाह’ यानि की ‘मैं गवाही देता हूँ कि हजरत मुहम्मद अल्लाह के रसूल (उपदेशक) हैं’ इन शब्दों के होने से ज्यादातर हिन्दू, जैन, बैद्ध, सिख, पारसी लोगों को कोई फर्क नहीं पढता क्योंकि ये धर्म सीधे देवता की उपासना करते है और उनके धर्म में अब्राहमी धर्मों जैसा पैगम्बर सिस्टम नहीं है| पर यहूदी और इसाई ‘अशहदु अन-ना मुहम्मदर्रसूलुल्लाह’ इन शब्दों पर आपत्ति कर सकते है| इसके लिए यह समझना होगा की यहूदी, मुस्लिम, इसाई चचेरे भाइयों जैसे है| कैसे वह समझ लेते है|*
*८.१: इस्लाम, इसाई, और यहूदी धर्म अब्राहम (इब्राहीम) को और एक ही खुदा/गॉड/इश्वर को मानते है|*
एक खुदा था और है जिसका नाम पहले किसीको पता नहीं था| उसने यह ब्रह्माण्ड यानि यूनिवर्स बनाया है ऐसा यहूदी, इसाई, मुस्लिम लोग मानते है| उस खुदा ने ईडन की जन्नत बनायीं और उसमे आदम (ADAM) और हव्वा (EVE) बनायीं| उनसे लाल फल खाने का पाप हुआ तो उस खुदा ने उनको धरती पर धकेल दिया| वहा से पृथ्वी पर मानव वंश शुरू हुआ|
पृथ्वी पर मानव बिगड़ता गया तो खुदा ने अपने उपासक Noah (कुरान में नूह) के परिवार के अलावा सबको डूबाकर मारने की सोची| अपने उपासक Noah (कुरान में नूह) को उस खुदा ने कहा की एक नाव बनाओ और अपना परिवार, सारे प्राणीयों के जोड़े आदि उसमे सवार हो| फिर सारे मानव मारे गए और नयी दुनिया की शुरुआत हुई| NOAH के वंश में अब्राहम बना| उसके दो बेटे हुए— ISMAEL इस्माइल और ISSAC इशाक| ISSAC से जेकोब (कुरान में याकूब) आया और उससे यहूदी वंश बना| यहूदी वंश में मोजेस (मूसा) पैगम्बर बनकर आया और उसने ज्यू धर्म शुरू किया| उसी यहूदी/ज्यू धर्म में बाद में जीजस नाम के एक यहूदी ने आगे चलकर नया इसाई धर्म बनाया| मुस्लिमों के पैगम्बर की (मुहम्मद की) वंश (कुरेश वंश) की लाइन अब्राहम के पहले बेटे इस्माइल से है| यहाँ आप उनके वंश की लाइन पढ़ सकते है — https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A6_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6_%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7
*८.२: मुसलमान और इसाई लोग यह मानते है की एक ही जन्म है और मरने के बाद उनको या तो जन्नत मिलती है या फिर नरक|*
नरक के डर से और जन्नत पाने की लालसा से अन्य धर्म के लोगों को इस्लाम/ईसाइयत में धर्मान्तरित करने का काम करने की आदत मुस्लिम और इसाई धर्मियों में होती है| इसलिए वे हर तरीका चलाते है|
यहूदी लोग धर्मांतरण नहीं कराते है और उनका मानना यह है ही अच्छे काम करनेवाला गैर यहूदी हुआ तो भी जन्नत पा सकता है| लेकिन मुस्लिम गैर मुस्लिम को जन्नत के काबिल नहीं समझते है| और इसाई भी गैर इसाई को जन्नत के काबिल नहीं समझते है| इसलिए मुस्लिम और इसाई जबरदस्ती से/लालच दिखाकर धर्मान्तरण कराते है और उनकी अपनी नजर में पुण्य कमाते है| पुनर्जन्म पर यहूदी कुछ नहीं कहते पर उससे इंकार भी नहीं करते है|
*८.२: भारत में कान्ग्रेसी व्यवस्था में स्कूलों में बहुत सारा तथ्य और सच्चाई छुपाया जाता है जब की ISC जैसे बहुदेशीय स्कुल शिक्षा बोर्ड के अभ्यासक्रम/SYLLABUS में यह बताया जाता है| इसलिए भारत की जनता मुर्ख बन जाती है और क्या हो रहा है यह समझती ही नहीं है |*
*८.३: भारत की आम जनता तीनो अब्राहमी धर्मों की बहुत सारी बाते नहीं जानती| आखिर येहोवा और अल्लाह कौन है?*
भारत की आम जनता यह नहीं जानती की हजरत मूसा (इन्होने ज्यू धर्म बनाया) खुदा के चहेते पैगम्बर है जो खुदा से सीधी बाते करते थे और उन्होंने खुदा से पूछा की आप को लोग अब्राहम का खुदा कहते है, आप का नाम क्या है? तब खुदा ने हिब्रू भाषा में कहा *येहोवा (मतलब मै जो हु सो हु)*| फिर यहूदी उस खुदा को येहोवा कहने लगे| जीजस नाम के यहूदी ने भी उस खुदा को येहोवा नाम से माना और इसाई धर्म शुरू किया| हजरत मुहम्मद पैगम्बर के अनुसार येहोवा ही अल्लाह है|
*८.४ क्या यहूदी के नजर में मुहम्मद और जीजस खुदा के पैगम्बर/मैसेंजर है?*
पहली विडम्बना यह है की यहूदी कहते है की मोजेस (मूसा) उनके पैगम्बर थे और खुदा ने उनको तोराह नाम का धर्मग्रन्थ दिया है| वे जीजस और मुहम्मद को पैगम्बर नहीं मानते है क्यों की तोराह में दिए हुए अगले पैगम्बर के लक्षण जीजस और मुहम्मद में बिलकुल ही नहीं है| ज्यू कहते है की उनका पैगम्बर आयेगा और दुनियाभर के युद्ध समाप्त करके यहोवा का तीसरा मंदिर बनवाएगा| जीजस और मुहम्मद यह कर नहीं सके और इसलिए यहूदियों के लिए जीजस और मुहम्मद छद्म पैगम्बर है यानि FALSE PROPHET है|
*८.५ इसाई मुस्लिमों के बारे में क्या सोचते है? क्रुसेड क्या है? इजराइल क्यों बनाया गया? अमेरिका और उसके सहयोगी देश खलीफा (मुस्लिमों का वैश्विक सर्वोच्च नेता) को टिकने क्यों नहीं देते?*
दूसरी विडम्बना यह है की इसाई मूसा यानि मोसेस को पैगम्बर मानते है पर मुहम्मद को पैगम्बर नहीं मानते| इसाई कहते है की खुदा येहोवा ने जीजस द्वारा नयी किताब दी जिसे बाइबल का *नया करार* कहते है और उसके साथ पुरानी किताब तोराह की बाते उनपर लागु नहीं है| इसाई मानते है की जीजस फिर आयेगा और इसलिए वे मुहम्मद को पैगम्बर नहीं मानते| भारत में स्कूली शिक्षा में क्रुसेड का इतिहास छुपाया जाता है| उन युद्धों में मुस्लिम और इसाई जेरुसलेम के कब्जे के लिए ३०० साल लड़ते रहे| यह क्रुसेड युद्ध अब भी छिपकर चालू है| अमेरिका और सहयोगी देश मुस्लिमों का कोई भी खलीफा टिकने नहीं देती क्योंकि जब भी मुस्लिमों का नया खलीफा घोषित होता है, आतंकवादी हमले पूरी दुनिया में और जोर से होने लगते है| खलीफा आते ही पुरी दुनिया को मुस्लिम बनाने के लिए आतंकवाद बहुत जोर से शुरू होता है|
*८.६: इस्लामी एजेंडा क्या है? यहूदी लोगों से मुस्लिम नाराज क्यों है?*
पूरी दुनिया मुस्लिम बनाए और मूर्तिपूजक नष्ट करे यह इस्लाम का अजेंडा छुपा नहीं है – ढेर सारी कुरान की आयते और हदीसे इस विषय पर मौजूद है और इंटरनेट पर आम आदमी उसे देख/पढ़ सकता है| भारत में इसपर कुछ बोलना भी पाप जैसा बना है और स्कूलों में यह सत्य छुपाया जाता है|
मुस्लिम और इसाईयों के युद्ध से शांतिप्रिय ज्यू लोग (जिनमे उच्च दर्जे के कलाकार, वैज्ञानिक, संशोधक आदि शामिल है) दुनिया भर में तितर बितर हुए| लेकिन यहूदी लोगों ने जबरन या लालच से धर्मान्तरण कही भी नहीं किये|
वो तो दुसरे विश्वयुद्ध के विजेता देश है जिन्होंने १९४५ में इजराइल देश बनाकर बाइबल का इश्वर वचन पूरा किया और ज्यू लोगों के लिए इजराइल नाम का देश पवित्र जेरुसलेम शहर और फिलिस्तानी भूमि पर बना दिया गया| लेकिन तबसे मुस्लिम इजराइल के दुश्मन बने है|
*८.८: मुस्लिम इसाई और यहूदियों के बारे में क्या सोचते है? क्या वे इसाई और यहूदियों की भावनाओं को आहत करते है?*
अब्राहमी धर्म पैगम्बर सिस्टम से चलते है| कैसे जीना/रहना है, क्या करना है इसके नियम अल्लाह/येहोवा पैगम्बरों द्वारा भेजते है ऐसा मन जाता है|
इसाई कहते है मूसा/मोजेस पैगम्बर तो थे पर बाद में खुदा ने जीजस (येहोवा का पुत्र) पैगम्बर बनाके भेजा गया और नया इसाई संविधान (बाइबल नया करार) आ गया|
मुस्लिम कहते है की मूसा, इसा (जीजस) पैगम्बर तो थे पर बाद में खुदा ने मुहम्मद को अपना सबसे चहेता और आखरी पैगम्बर बनके भेजा और साथ में नया धर्मग्रन्थ यानि कुरान भेजी| इसलिए बाइबल, तोराह ये ग्रन्थ अब गैरलागू है और कुरान ही फुल and फाइनल है| मुहम्मद के बाद कोई पैगम्बर नहीं आयेगा| पूरी दुनिया मुस्लिम होने के बाद क़यामत आयेगी और कबर में पड़े हुए जन्नत या नरक के भेजे जायेंगे| उसके बाद पृथ्वी से मानव जात (उम्मत) ख़तम हो जायेंगे| इसलिए मुस्लिम और इसाई आपस में लड़ते भी है| मुस्लिम कहते है की गैर मुस्लिम (हिन्दू, सिख, जैन, इसाई, यहूदी इत्यादि) व्यक्ति चाहे जीतना अच्छा हो, वह जन्नत का हक़दार नहीं हो सकता|
अजान में ‘अशहदु अन-ना मुहम्मदर्रसूलुल्लाह’ यानि की ‘मैं गवाही देता हूँ कि हजरत मुहम्मद अल्लाह के रसूल (उपदेशक) हैं’ ये शब्द मुहम्मद को इसाई और यहूदी समाज पर थोपते है और इसी कारण से इसाई और यहूदी लोगों की धार्मिक भावनाए आहत होती है|
*९: सारांश:*
-९.१-
यह जरुरी है की मस्जिद पर लाऊडस्पीकर लगे है तो उनके पास लाइसेंस है या नहीं इसकी जाँच जरुरी है| RTI के तहत यह जानकारी ले सकते है|
-९.२-
किसी भी हालत में मस्जिद से रात के १० बजेसे सुबह ६ बजे तक अजान नहीं होनी चाहिए| *ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000* सब पर लागु है|
-९.३-
अजान में गैर मुस्लिमों की धार्मिक भावना आहत करनेवाले जो शब्द है उनको हटा देने चाहिए| या फिर अजान के लिए लाऊडस्पीकर का उपयोग बंद करना चाहिए| मुस्लिम अजान के लिए अजान एप डाउनलोड कर सकते है|
-९.४-
*अजान से पीड़ित व्यक्ति पोलिस थाने जाने के बजाय सीधे जेएमएफसी कोर्ट में मुकादमा सीआरपीसी धरा २०० के तहत कर सकते है| पुलिस प्राय: भ्रष्ट होती है और गुनाहगारों से और गैरक़ानूनी कम करनेवालों से उनकी दोस्ती होती है और उनको गैरकानूनी काम करनेवालो से काफी हफ्ता मिलता है इसलिए पुलिस से कुछ खास उम्मीद नहीं रख सकते है| स्थानिक हिन्दू/गैर मुस्लिम संगठन के सहयोग से कोर्ट में सीआरपीसी धरा २०० के तहत मुक़दमा करना बेहतर होगा, क्योंकि दहशत इतनी है की ऐसा मुक़दमा करनेवाले को जान माल का खतरा हो सकता है|*
-९.५-
अजान में ‘ह़य्य ‘अलस्सलाह’, ‘ह़य्य ‘अलल्फलाह’, और ‘अस्सलातु खैरूं मिनन नउम’ इन शब्दों का होना यह इस्लाम का आतंरिक मामला (internal matter) है और इसपर किसी गैर मुस्लिम को कोई आपत्ति नहीं है| अन्य शब्दों पर आपत्ति है और उसका खुलासा ऊपर दिया हुआ है|
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