आओ जाने – शिवालय का तत्त्व-रहस्य

आओ जाने – शिवालय का तत्त्व-रहस्य ?

प्राय: सभी शिवालय (शिव-मन्दिरों) में प्रवेश करते ही सबसे पहले नन्दी के दर्शन होते हैं।
उसके बाद कच्छप (कछुआ), गणेशजी, हनुमानजी, जलधारा, नाग आदि सभी शिव-मन्दिरों में क्यो विराजित रहते हैं।

क्या आप जानते है कि भगवान के इन प्रतीकों में बड़ा ही सूक्ष्मभाव व गूढ़ ज्ञान छिपा है।

नन्दी:
यह सामान्य बैल नहीं है, यह ब्रह्मचर्य का प्रतीक है, भगवान धर्म ही नन्दी वृषभ के रूप में उनके वाहन बन गए हैं।

जैसे नन्दी शिव का वाहन है वैसे ही हमारी आत्मा का वाहन शरीर (काया) है।
अत: शिव को आत्मा का एवं नन्दी को शरीर का प्रतीक माना जा सकता है।

जैसे नन्दी की दृष्टि सदा शिव की ओर ही होती है, वैसे ही हमारा शरीर आत्माभिमुख बने अर्थात् शिवभाव से ओतप्रोत बने, इसके लिए तप एवं ब्रह्मचर्य की साधना जरूरी है, नन्दी के माध्यम से यही शिक्षा दी गई है।

कश्यप – कछुआ:
कछुआ मन को दर्शाता है अर्थात् हमारा मन कछुए जैसा कवचधारी सुदृढ़ बनना चाहिए। धैर्ययवान होना चाहिए। जैसे कछुआ सदैव शिव की ओर ही गतिशील है, नन्दी की तरफ नहीं।
वैसे ही हमारा मन भी आत्माभिमुख, शिवमय बनें, भौतिक या देहाभिमुख नहीं।

श्री गणेश जी:
जब मनुष्य के कर्म, साधना व मानसिक चिन्तन दोनों आत्मा की ओर बढ़ रहे हैं तब उनमें शिवरूपी आत्मा को प्राप्त करने की योग्यता आई है या नहीं, इसकी परख के लिए द्वार पर दो द्वारपाल खड़े हैं, श्री गणेशजी और श्री हनुमानजी।

श्री गणेशजी बताते हैं बुद्धि एवं समृद्धि का सदुपयोग करना, गणेशजी के हाथों में अंकुश आत्मनियन्त्रण व संयम का प्रतीक है।
कमल निर्लेपता व पवित्रता का, पुस्तक उच्च विचारधारा की व मोदक मधुर स्वभाव का प्रतीक है।

ऐसे गुण रखने पर ही मनुष्य शिव के दर्शन का पात्र होता है।

हनुमान जी:
हनुमानजी विश्वहित के लिए सदैव सेवापरायण व संयमी रहे हैं, यही कारण है कि वे अर्जुन के रथ पर विराजित रहे व श्रीराम के प्रिय सेवक हैं।

ऐसे गुणों से ही व्यक्ति शिवत्व का पात्र बनता है।

गणेश जी और हनुमान जी की परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने पर ही साधक को शिवरूप आत्मा की प्राप्ति हो सकती है।

किन्तु इतनी कठिन परीक्षा में विजय मिलने पर साधक को अहंकार आ जाता है, इसीलिए शिव-मन्दिर में प्रवेश-द्वार की सीढ़ी भूमि से कुछ ऊंची व प्रवेशद्वार भी कुछ छोटा होता है।
ताकि साधक अत्यन्त विनम्रता व सावधानी से सिर झुकाकर अन्तिम प्रवेशद्वार में कदम रखे।

अर्थात् अहंकार का तिमिर नष्ट होने पर ही उसे शिवलिंग के दर्शन होते हैं।

शिव-मन्दिर में जो शिवलिंग है, उसे आत्मलिंग या ब्रह्मलिंग कहते हैं जो विश्व के कल्याण में निमग्न आत्मा है।

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