दो चरण के चुनाव में कौन आगे, कौन पीछे

-अनिता चौधरी

17 वीं लोकसभा चुनाव के लिए हो रहे मतदान में अभी दो चरण के मतदान हो चुके हैं। जहां विपक्ष का दावा है कि सरकार विरोधी लहर चल रही है वहीं सत्ता पक्ष यानी भाजपा का मानना है कि मोदी को पूर्ण समर्थन देश भर में मिल रही है। अभी दावे का दौर है यह चलता ही रहेगा। चार चरण के चुनाव के लिए अभी प्रचार अभी जोरों पर है ऐसे में जहां चुनाव घोषणा के पहले कांग्रेस को मिली तीन राज्यों में जीत का उत्साह आया। वहीं बाद में भाजपा के अभियान शुरू होने के बाद कांग्रेस पिछड़ती नजर आ रही है। खास बात यह है कि कांग्रेस ने यूपी में अपने जनाधार बढ़ाने के लिए कई योजनाओं पर कार्य कर रही है। जिसे धरातल पर उतारने की कोशिश भी की जा रही है।

हालांकि वह कितना सफल होते है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना तय है कि अभी कांग्रेस को काफी मेहनत करनी पड़ेगी। राहुल ने प्रियंका गांधी की नियुक्ति महासचिव पद पर की और उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र का कमान भी दे दिया। लेकिन क्या यह तरुप का पत्ता काम आएगा। कांग्रेस के लिए परिणाम आने बाकी हैं। लेकिन कांग्रेस ने देर कर दी है। प्रियंका गांधी निश्चित रूप से असर डालेंगी। लेकिन अब चुनाव पहले जैसा नहीं है कई बदलाव आ गए हैं। ऐसे में देखना है कि कांग्रेस प्रिंयका के साथ-साथ और कौन से प्रयोग करती है। यह तो तय हो गया है कि कांग्रेस विधानसभा की तैयारी में लग गई है।

यह तो मानना ही पड़ेगा कि कांग्रेस को एक ही परिवार पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर प्रियंका अपने प्रयोग में सफल होती है तो तय है कि राहुल गांधी सफल होंगे। और राहुल को प्रधानमंत्री बना डालेंगे।अब जरा नजर दौड़ाएं राहुल के 72 हजार रुपए पर। राहुल गांधी ने 72 हजार रुपए सालाना न्यूनतम आय गारंटी योजना का जो वादा किया है उसके राजनीतिक नफा नुकसान चुनाव नतीजों के बाद ही पता चल पाएगा। मौजूदा आर्थिक स्थिति के मद्देनजर यह योजना लागू भी हो पाएगी यह नहीं इस पर संशय है या कह सकते हैं भविष्य के खाते में है। चुनावी वादों और उन्हें लागू करने में काफी फर्क रहा है। उससे इस तरह की आशंकाएं सामाजिक किसान सम्मान निधि के तौर पर साल में छह हजार रुपए देने की घोषणा कर चुकी है।

इसकी पहली किस्त के रूप में दो हजार रुपए की रकम करोड़ों किसानों के खाते में ट्रांसफर हो चुकी है। इन योजनाओं के बहाने यह बहस शुरू हो गई है कि उदारीकरण के साथ भारतीय राज्य व्यवस्था अपने जिस लोक कल्याणकारी भूमिका से पीछे हटने लगी थी, क्या अब वह फिर से उसी ओर लौट रही है। खैर ऐसे सवाल है और यही सब हमारे लोकतंत्र की विशेषता है जहां सभी तरह के वादे किए जाते हैं जिसे भारतीय बड़े गौर से देखते और सुनते हैं और उसके बाद प्रतिनिधि चुनते हैं। अब देखना है कि इस बार के दंगल में कौन बाजी मारता है। खैर इस दंगल के फाइनल में हार जीत को दिलाने में जनता की भूमिका काफी अहम हो जाती है। मतदान अवश्य करें जिससे की स्वस्थ लोकतंत्र का देश में विकास हो सके।

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