आयुर्वेद का सर्वनाश हुआ नही वरन् एक षडयंत्र के अन्तर्गत किया गया – गुरुजी भू

आयुर्वेद का सर्वनाश हुआ नही वरन् एक षडयंत्र के अन्तर्गत किया गया।

आओ जानें कैसे हुआ ये विनाश?

– गुरुजी भू
यह आलेख मैं अपने अध्ययनों व अपनी स्मृति  के आधार पर लिख रहा हूँ , यदि आपके पिता या पितामह की यह स्मृति में हो तो अनुमोदित करे। बचपन से मैने जो सुना या पढ़ा वैसा ही लिख रहा हूँ ।
विश्व का इतिहास साक्षी है कि भारत में आयुर्वेद और आयुर्वेद के वैद्य की एक स्वस्थ परम्परा रही है। जिसका मूलमंत्र था सेवाभाव। जैसा की आप जानते ही हैं कि हमारे आयुर्वेद में रोगी का उपचार होता है रोग का नहीं। अर्थात जिस holiastic approach of medical system की बात आज आधुनिक मेडिकल साईंस कर रहा है वह आयुर्वेद की जड़ में हैं।
अब चलते हैं थोडा पीछे , मेरे जन्म से और मेरे पिताजी के भी जन्म से पहले मेरे दादाजी के जन्म के समय तक पूरे देश में आयुर्वेदिक डॉक्टर थे और उन्हें 10 रूपए ( या उसके आस पास ) महीने ज़िला प्रशासन से मिलते थे और उसके पहले जैसे बनारस में 17 वीं और 18 वीं सदी में महाराजा बनारस उन डॉक्टरों की देख रेख करते थे और सामान्य जनता को लगभग मुफ्त चिकित्सीय सुविधा मिलती थी।
लेकिन अंग्रेज़ों को किसी प्रकार से षडयंत्र करके सनातनी आयुर्वेद का ढाँचा तोड़ना था, अंग्रेज़ी दवाओं का जाल फैलाना था अत: अग्रजों ने क़ानून बना दिया कि बिना विश्वविद्यालय की डिग्री के किसी डॉक्टर को सरकारी शुल्क या सरकारी सहायता नहीं मिल सकती। तब अचानक ही 90% आयुर्वेदिक चिकित्सक एक झटके में बेरोज़गार हो गए।
आप सोच नहीं सकते की कितनी स्वस्थ परम्परा के आयुर्वेदाचार्य थे जो नाड़ी  देखकर, सटीक उपचार करते थे क्योकि वह ज्ञान व अनुभव मानव कल्याणकारी थे, धनोपार्जन के लिये कोई भी वैद्य काम नही करता था। केवल सेवाभाव ही उनका उद्देश्य था। प्राकृतिक, प्राचीन भारतीय संस्कृति के ज्ञान के आधार पर लाखों वर्ष पुरानी पद्धति पर ही शोध कार्य व अनुसंधान होते रहते थे। जिससे आयुर्वेद का वर्चस्व था। जो ज्ञान अंग्रेजों के पास आज भी नही है।
उस समय महामना मदन मोहन मालवीय बहुत आहत हुए अग्रजों के इस निर्णय से, उन्होने सभी ख्याति प्राप्त आयुर्वेदिक चिकित्सको से कहा की वे काशी हिन्दु विश्वविद्यालय आएँ और उन्होने अपने हाथो से लिखकर अनुभव के आधार पर डिग्रियाँ बांंटनी प्रारम्भ कर दी, जो अंग्रेजों को सहन नही हुआ।
वे 30-40 लोगों को ही डिग्री बाट पाए थे कि अंंग्रजों ने कुछ और नियम डाल दिया की ऐसे डिग्री नही दी जा सकती और भारत की लगभग 9,00,000 वर्ष पुरानी चिकित्सा प्रणाली, परम्परा एक झटके में ढह गयी। लेकिन लोगों का विश्वास नही टूटा था तो कुछ हिम्मत वाले चिकित्सकों ने अपनी सेवा जारी रखी जिसके कारण आज भी आयुर्वेदिक उपचारक उपलब्ध हैं।
आज धीरे धीरे ही , पर पुन: आयुर्वेद जीवित हो रहा है। विश्व में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को अपनाकर लोग सुखद अनुभव कर रहे है।
जानलो भारतीयों कि आजादी के बाद भी जितना पैसा जी हांं भारतीयों के रक्त व पसीने का पैसा अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति के शोध अनुसंधान पर व्यय हुआ है, अगर उससे चौथाई भी व्यय आयुर्वेदिक पद्धति हुआ होता तो भी आज भारतीय चिकित्सा पद्धति विश्व की सर्वश्रेष्ठ पद्धति होती।
फिर भी चलिये, हम लोग अंग्रेजों के कुकर्मों पर ताली बजाते रहे क्योकि हमें इन सर्वनाशों की बातें भी नहीं बताई गई।
क्योंकि अंग्रेजों का भारत में पदार्पण ही चिकित्सा पद्धति के कारण हुआ था इसलिए समस्त भोले भारतीयों ने मान लिया कि अंग्रेजों की पद्धति ही सर्वश्रेष्ठ है।

विनम्र निवेदन: स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहें, प्रतिदिन योग एवं प्राणायाम् करें, प्राकृतिक चिकित्सा एवं आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को अपनाएँ।

संकलन कर्ता – गुरुजी भू
प्रकृति प्रेमी, विश्वचिंतक
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