महाबली हनुमान शोध व अनुसंधान का बडा विषय है- श्री गुरुजी भू

 महाबली हनुमान जी
 🇮🇳विशेष सम्पादकीय🇮🇳
     आजकल लोगों में लगता है कि सेवाभाव समाप्त होता जा रहा है और अपनी सेवाओं से नही वरन कहानी सुनाकर लोगों का मन लुभाने,  देवी देवताओं के नाम पर झूठी कहानियां घढ़कर भ्रमित करने का काम जोरो पर है। झूठ से लुभाने की परम्परा शुरू हो गई है। अब तक राम व कुरान के नाम राजनैतिक रोटियां सेकीं जा रही थी।  अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण को लेकर कोर्ट से संसद तक की चर्चा सभी चैनलो पर खूब चल रही है। लगता है जैसे 129 करोड लोगो के देश में कोई ओर समाचार बनने लायक विषय है ही नही। दर्शक भी चैनलो पर कुत्ते बिल्ली जैसी बहस देखकर अब थक चुके है। उधर लगातार राम का वनवास बढवाने अर्थात मन्दिर का निर्माण सम्बन्धी निर्णय टालने की  सिफारिश हेतु (रावण सेना का एक राक्षस रुपी न्याय का दलाल) तरह तरह के कुतर्क देकर सर्वोच्च न्यायालय पर दबाव बनाने का प्रयास लगातार कर रहा है। राजनैतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति करने की निरन्तर कोशिशें हो रही है। यह सही है कि भगवान राम सकल समाज के अगुवा थे और उन्होंने वनवास के समय आज की अनुसूचित जनजातियों को बंदर नही वरन वानर, भील जाति (आज भी ये गोत्र है) व भालूओं नही वरन् भील आदि तक को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया और उन्हीं के सहारे लंका पर विजय प्राप्त करने में सफल हो सके थे। यही कारण है कि उन्हे मर्यादा पुर्षोत्तम कहा गया। आज भी सकल समाज उनका अनुयायी हैं और दो युग बीत जाने के बाद भी उनकी प्रासंगिकता यथावत बनी हुयी है और लोग उनके नाम पर अपनी जान तक न्यौछावर करने के लिए तत्पर हैं। अगर धार्मिक मान्यताओं पर विश्वास किया जाय तो भगवान विष्णु ने अपने द्वारा अलग अलग दिये गये वचनों को पूरा करने के लिए राम के रूप में अयोध्या में अवतरित हुए थे। उनके सानिध्य में रहकर उनकी सुरक्षा का दायित्व निभाने के लिए भगवान भोलेनाथ ने अपने वचन के अनुरूप वानर प्रजाति में विशेष  रूप धारण करके भगवान शिव के ग्यारहवें रूद्र के रूप में उनके साथ ही इस धराधाम पर केसरीनन्दन बनकर अवतरित हुए थे। हनुमान जी के बाल स्वरूप को ही बालाजी महाराज कहा जाता है और हनुमानजी को कष्टनिवारक अष्टसिद्धि के दाता एवं अतुलित बलधाम के साथ भक्त शिरोमणि भी कहा जाता है। जैसा कि सभी जानते हैं कि पहले मनुष्य भी बंदरों की तरह नंगे प्राकृतिक तरीके से प्रकृति की गोद में अर्थात जंगलों व पेड़ों पर रहते थे शायद यही कारण है कि मनुष्य को बंदरों का खानदानी एवं बंदरों को आदिमानव माना जाता है। यह सही है कि हनुमान जी राजा केसरी एवं रानी अंजना के पुत्र थे और राजा की कोई जाति बिरादरी नहीं होती है और उसे भगवान का प्रत्यक्ष रूप माना जाता है। लोकतांत्रिक प्रणाली में आजकल मतदाताओं को रिझाने के लिए कोई इस्लाम को खतरे में बताकर अरब के आक्रांता बाबर को अपना आराध्य मान रहा है तो कोई भगवान राम के नाम पर खून बहाने की बात कर रहा है जबकि सभी जानते हैं कि भगवान और इस्लाम दोनों का राजनीति से कोई वास्ततिक सरोकार नहीं है। राजनीति में धर्म का सहारा वहीं लोग लेते हैं जिनके पास जनसेवा का अभाव होता है। मुगलकाल में ईस्लाम के नाम पर मारकाट के भी यही कारण थे। आज अपनी सेवाओं के बल पर मतदाताओं के मध्य जाने से नेता कतराते रहते हैं। अभी कुछ दिनों पहले भगवान राम के साथ ही महाबली अंजनी कुमार मारूति नंदन को राजनैतिक बिसात पर दाँव लगा दिया गया है। हनुमानजी को जंगली निर्वासित जनजाति से जोड़ दिया और दावा किया कि वह वनवासी समाज से जुड़े हुए थे। इसमें कोई बुराई नही थी। लेकिन योगीजी के इस वक्तव्य के बाद राजनैतिक गलियारे में भी हलचल शुरू हो गई और दूसरे दिन ही अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार ने उनके बयान का खंडन करते हुए हनुमानजी को अपना खानदानी बता दिया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने हनुमान जी को किस संदर्भ में दलित कहा है इसे वह नहीं जानते हैं लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि हमारी जनजातियों में वानर गोत्र होती है। हनुमानजी के भगवान राम के अनन्य भक्त एवं करीबी थे इसलिये उनके नाम पर जनजातियों के गोत्र होते हैं। शायद यही कारण है कि आज भी जनजातियों में उनका सम्मान एवं श्रद्धा भक्ति के साथ स्मरण किया जाता है। लगता है कि जैसे राम के इर्द गिर्द घूम रही राजनीति में उनके परमप्रिय भक्त हनुमानजी को भी शामिल करने की योजना बनाई जा रही है। हनुमानजी जंगलों एवं आदि बस्तियों में रहने वाले ही नहीं वरन् परमाणुवाद के महान वैज्ञानिक थे। सूर्य पर उसके  परमाणुओं पर अब तक के सबसे बडे ज्ञाता थे। एक वह एक जंगली राजा के पुत्र थे और उस समय के उसी तरह के जंगली महलों में रहते थे इसलिए उन्हें दलित या अनुसूचित जनजाति नहीं माना जा सकता है।
वैसे भी उस समय काल में जातिवादी मानसिकता का कोई अस्तित्व ही नहीं था। वैसे भी बंदर भालू रीछ हमेशा जंगलों कंदराओं गुफाओं में रहते थे और वही हाल आज भी है। हनुमानजी इतने बडे परमाणु वैज्ञानिक थे जो वानर गोत्र होने के उपरान्त भी अपनी इच्छानुसार  कोई भी स्वरूप धारण कर सकते थे और उनका पूरा परिवार अध्यात्मिक साधक था। उन्होने जंगल में भी मंगल ही किया था। भगवान राम के उस काल में महाप्रबन्धन की जंगल व जंगलवासी, वनवासी लोगों को राजा के साथ जोड़ने की इस महाक्रांति का हमें भरपूर सम्मान करना चाहिए।
सच में महाबली हनुमान शोध व अनुसंधान का बडा विषय है।
धन्यवादम्।।
          श्री गुरुजी भू
मुस्कान योग के प्रणेता, अध्यात्मिक शोधार्थी
 वरिष्ठ पत्रकार/प्रकृति प्रेमी/ समाजसेवी
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