रितेश सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक।
मोदी सरनेम मामले में कांग्रेसी नेता राहुल गांधी की पुनर्विचार याचिका को गुजरात हाईकोर्ट ने सिरे से खारिज करते हुए कहा कि सजा पर रोक लगाने के लिए कोई उचित आधार नहीं है। निचली अदालत का दोषसिद्धि का फैसला उचित, न्यायसंगत और कानूनी रूप से दिया गया है।
अपने आदेश में कड़ी टिपण्णी करते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस हेमंत प्रच्छक ने कहा कि याचिकाकर्ता एक अस्तित्वहीन आधार पर राहत की मांग कर रहे हैं। उन्होंने टिपण्णी की कि निचली अदालत के फैसले पर रोक लगाने का कोई नियम नहीं है, ये अपवाद की श्रेणी में आता है। नसीहत देते हुए उन्होंने कहा कि यह विशेष परिस्थितियों के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। राहुल गांधी के खिलाफ 10 और मामले विचाराधीन हैं।
टीम राहुल के सूत्रों ने बताया कि गुजरात हाईकोर्ट की ओर से निचली अदालत से मिली सजा को बरकरार रखे जाने के बाद राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे। हालांकि कांग्रेस प्रवक्ता एवं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीम कोर्ट जाने की बात पर टालमटोल करते हुए कुछ स्पष्ट बातें नहीं कह पाए, मगर जनता की अदालत जाने की बात रखने को प्रमुखता दी। उनका ये रवैया कांग्रसियों को रास नहीं आ रहा है।
वहीं कांग्रेस के प्रमुख प्रवक्ता जयराम रमेश राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र के चुनाव संबंधित सवाल पर न केवल पत्रकार वार्ता छोड़कर निकल गए, बल्कि उनकी नाराजगी भी साफ झलक रही थी। गुजरात हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस हेमंत ने कहा कि राहुल गांधी के खिलाफ पुणे कोर्ट में भी एक शिकायत सावरकर के पोते की ओर से दर्ज कराई गई है जो उनके संज्ञान में है।
इस मामले में राहुल गांधी पर कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में सावरकर का अपमान करने का आरोप है। सजा पर रोक न लगाना याचिकाकर्ता के साथ अन्याय नहीं होगा। एक जन प्रतिनिधि को साफ चरित्र का व्यक्ति होना चाहिए। इन सभी मामलों से बने मुकदमों से बेपरवाह राहुल गांधी पूरा जोर कांग्रेस को मजबूती देने में लगाए हुए हैं। राहुल नित प्रतिदिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, कोषाध्यक्ष पवन बंसल के अलावा अलग-अलग प्रदेश के प्रभारियों, प्रदेश अध्यक्षों एवं अन्य पदाधिकारियों के साथ चुनावी रणनीति को अमली-जामा देने में जुटे हैं।
ये मीटिंग कभी वार रूम में हुआ करती थी, लेकिन सूत्रों के हवाले से मीटिंग की सारी खबर और फूटेज खास चैनलों और विपक्षी खेमों तक पहुंचाई जाती थी। 2024 की चुनावी तैयारियों में अब वार रूम सूना है। वार रूम के कर्ता-धर्ता बने हवा-हवाई नेता नए कारोबार में अपनी भूमिका तलाश रहे हैं। अपनी चुनावी तैयारियों में अग्रिम संगठनों की भूमिका को चुस्त-दुरस्त करते राहुल गांधी ने चर्चित और मोदी पर टीका-टिपण्णियों से कांग्रेस के पोस्टर ब्यॉय बने कन्हैया कुमार को पार्टी का छात्र संगठन एनएसयूआई का इंचार्ज बना दिया।
अब तक कांग्रेस के अग्रिम संगठनों पर मुकुल वासनिक का पिछले 30 सालों से कब्जा रहा है। इसे टीम राहुल मुक्त कराने की कोशिशों में जुटी है। इसकी पहली किश्त में कन्हैया की नियुक्ति हुई है। राहुल अपने खिलाफ प्रियंका गांधी के निवास पर पनप रहे छुटभैया नेताओं का कद नापने के फिराक में हैं। इनमें प्रमोद त्यागी, जो अब आचार्य कृष्णन के नाम से अपनी पहचान बनाने में जुटे हैं, मौका पाते ही प्रियंका का नाम लेकर राहुल विरोधी बयान देने से नहीं चूकते।
अगली कड़ी में जेएनयू से इंपोर्ट किए संदीप सिंह, तौकिर आलम, नरवाल, धीरज गुर्जर जैसे नेताओं को संगठन से अलग रखने की कवायद पूरी हो सकती है। इन सभी नेताओं ने यूपी कांग्रेस को बसपा से धकियाए गए नेताओं के हाथों में ही सौंप दिया है। राहुल ने 2024 के लोकसभा चुनावों में बिहार और यूपी से विशेष उम्मीदें लगा रखी हैं, लेकिन उससे पहले संगठन को अपने हाथों में लेना चाहते हैं। किसी तर्जुबेकार नेता को प्रदेश प्रभारी बनाकर कांग्रेस को सींचने में लगे हैं।
राहुल का जलवा अब मैदान में दिखने लगा है। तेलांगना प्रदेश कांग्रेस कमिटी द्वारा आयोजित खम्मम में हुई ऐतिहासिक जनसभा में राहुल गांधी ने अपने चुनावी प्रचार की शुरूआत कर पहल कर दी। इसी के जवाब में प्रधानमंत्री मोदी को आनन-फानन में दो दिनों में कई रैलियों को संबोधित करना पड़ा। वंदे भारत की सौगात देकर मोदी अपने आधार को बचाए रखने की कोशिशों में हैं।
बसपा और सपा के वोटर बना अल्पसंख्यक समुदाय राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद मामले में कांग्रेस को पिछले 30 सालों से कांग्रेस को छोड़े हुए था, वो अब मोदी-योगी के हिन्दुत्व एजेंडे लागू करने के बाद कांग्रेस के पीछे लामबंद होने लगा है। अल्पसंख्यक समुदाय ने योगी के खिलाफ पूरी ताकत से सपा को वोट दिया था, मगर अखिलेश सरकार बनाने में नाकाम रहे। वहीं कई बार सरकार बना चुकी बसपा को विधानसभा में जीरों पर ला खड़ा किया। अब वो अल्पसंख्यक समाज मोदी बनाम राहुल की लड़ाई में कांग्रेस के पीछे पूरी ताकत से खड़ा दिख रहा है।
भारत जोड़ो यात्रा की सफलता और कर्नाटक में भाजपा का नाटक खत्म करने के बाद राहुल के नेतृत्व में तेलांगना में खम्मम के बाद इस साल के अंत में 5 राज्यों में होने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस अब पूरी तरह से तैयार दिख रही है। मल्लिकार्जुन खड़गे जरूर कांग्रेस अध्यक्ष हैं, मगर कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष के पीछे खड़ी दिख रही है। खड़गे इस बात को बेहतर जानते हैं इसलिए कांग्रेस की सभी बैठकों में जिसमें बतौर अध्यक्ष वो शामिल होते हैं, उसमें वे सुनिश्चित करते हैं कि राहुल से तय करने के बाद और उनकी भागीदारी जरूर हो।
108 दिनों की 1360 किलोमीटर की पदयात्रा के बाद पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ-साथ पूरी पार्टी के हौसले बुलंद दिख रहे हैं। भाजपा अभी कार्यालयों में बैठकें ही कर रही है, जबकि राहुल चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। खम्मम की ऐतिहासिक रैली इस बात की गवाही दे रही है।
वर्तमान में भाजपा का परचम लगभग पूरे देश में लहरा रहा है। देश में अब चुनावी माहौल मोदी बनाम राहुल में बदल चुका है। क्षेत्रीय दल अपनी अस्मिता को बचाने के लिए गठबंधन का हिस्सा बनने की कोशिशों में जुटे हैं। डैमेज कंट्रोल में जुटे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा दक्षिण का किला बचाने के लिए केंद्रीय कार्यालय में समीकरण बनाते हुए गुणा-भाग में लगे हैं। वहीं राहुल दक्षिण भारत के 130 लोकसभा सीटों पर नजरें गड़ाए हुए हैं जिसमें 29 सीटें भाजपा के पास है, बाकी अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस भी इकाई में खड़ी है।
उत्तर भारत के साथ-साथ दक्षिण भारत को भी कांग्रेस ने फोकस किया हुआ है। कांग्रेस हर प्रदेश में लोकसभा के अंदर अपनी बड़ी हिस्सेदारी चाहती है जो उसकी लोकसभा में चुनावी रणनीति का एक हिस्सा है। मणिपुर में लगातार हो रही है हिंसात्मक गतिविधियों के बीच कांग्रेस की ओर से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मरहम लगाने की पूरी कोशिश की। राहुल गांधी को मणिपुर के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में जाने से रोका गया, फिर भी उन्होंने वहां दो दिनों तक अलग-अलग राहत शिविरों में जाकर प्रभावित परिवारों से जाकर मुलाकातें की।
राहुल ने मणिपुर दौरे के दूसरे दिन अन्य राहत शिविर में पहुंचे, लोगों का हाल-चाल जाना। राहुल के इस दौरे का 2024 के लोकसभा चुनाव पर कितना असर होगा, ये चुनावी मैदान में उम्मीदवारों की घोषणा के बाद ही पता चलेगा, मगर उन्होंने एक राजनीतिक छाप पूर्वोत्तर के राज्यों में छोड़ दी है। देखना है कि गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के बाद राजनीतिक हालात क्या बनते हैं, इस पर सबकी नजर बनेगी। मगर इतना तय है कि इन सभी मामलों से राहुल की सकरात्मक छवि जनता के बीच उभर रही है।