विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी, 2025 को “भारत ऑस्ट्रेलिया साहित्य सेतु“ के तत्वावधान में “विश्व में हिन्दी, हिन्दी में विश्व “विषय पर साहित्य-विमर्श का आयोजन आभासी-माध्यम जूम पर आयोजित किया गया।
आयोजन की शुरुआत में संस्था के संस्थापक अध्यक्ष अनिल कुमार शर्मा ने साहित्य सेतु के मुख्य उद्देश्य के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि हिन्दी भाषा के समग्र प्रसार हेतु उनकी संस्था 2018 से काम कर रही है। संस्था द्वारा भारत के साहित्यकारों व प्रवासी लेखकों को एक मंच पर लाकर हिन्दी भाषा एवं साहित्य के विमर्श व गोष्ठियों का आयोजन करना देश व विदेश में अनवरत जारी है।
अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध हिन्दी भाषा विज्ञान विद् भगवान सिंह जी ने विषय पर व्यापक चर्चा करते हुए कहा उन्होंने बताया बोलियों का भी संस्कृत भाषा के सुदृढ़ आधार में योगदान है ।भारत सांस्कृतिक एवं भाषा विज्ञान की विरासत का देश है, हिन्दी ,बोलियों एवं अन्य भाषाओं से समृद्ध हुई और यही भाव देश को जोड़े रखता है ।हिन्दी भाषा संस्कृति,समाज एंव संस्कारों की भाषा है। जी. हरिसिंह पॉल ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा, “वैश्विक स्तर पर हिन्दी की पैठ बनने लगी है और इसे प्रवासी भारतीय और विदेशी उत्साह के साथ सीखने लगे हैं।”
हैदराबाद के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो० ऋषभदेव शर्मा ने कहा “विश्वभर में प्रसार की दृष्टि से हिंदी प्रथम स्थान प्राप्त कर चुकी है। उसकी विविध बोलियों और शैलियों को काटकर अलग करना उचित नहीं है। आशा की जानी चाहिए कि इस अपार संख्याबल का सम्मान करते हुए संयुक्त राष्ट्र भी देर-सबेर हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्ज़ा देगा ही। रही बात हिंदी में विश्व की, तो कहना ग़लत न होगा कि आज इंटरनेट पर लगातार बढ़ती अपनी उपस्थिति के बल पर हिंदी विश्व के समस्त ज्ञान-विज्ञान और साहित्य को ग्रहण करके स्वयं को समृद्ध कर रही है। इसमें अनुवाद की बड़ी भूमिका है। मेरा सपना है कि हमारी हिंदी सही अर्थों में विश्वभर के ज्ञान की खिड़की बन सके।
“इस अवसर पर चन्द्रकांत पाराशर हिंदी-सेवी व एडिटर प्ब्छ हिंदी, ने हिंदी भाषा के व्यवहारिक पक्ष को सामने रखते हुए कहा कि हिन्दी के प्रति अंग्रेज़ी मानसिकता के साथियों को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा,”हिन्दी की बात”-से अधिक -“हिन्दी में बात” -पर बल देने से हमारी वर्तमान व भावी पीढ़ियों के मन में भी हिन्दी भाषा के प्रति गौरव, स्वाभिमान, सम्मान व श्रद्धा जागृत होगी, जो कि हम सभी अपने सहज व्यवहार, मन व वाणी के माध्यम से कर ही सकते हैं।
”मुख्य अतिथि श्रीमती जया वर्मा (लंदन) ने विदेशों में हिन्दी भाषा की दशा एवं दिशा पर विस्तृत विचार व्यक्त किये एवं रचना, जहॉं मैं चली हिन्दी चली, हिन्दी ही मेरे साथ साथ चली, लगता है कि हिंदी में विश्व समाविष्ट हो गया है,
डा० आर रमेश आर्या भू पू निदेशक राजभाषा विभाग ने बताया कि आदिवासी एवं जनजातियों की बोलियों को भी हिन्दी में स्थान देना होगा भारत का लोक साहित्य इन बोलियों से प्रभावित है। हमें बोलियों की स्वीकार के साथ हिन्दी को समृद्ध करने में मदद मिलेगी।
प्रांजल धर दिल्ली ने अपने व्याख्यान में कहा हर साल विश्व हिन्दी दिवस का एक थीम यानी विषय निर्धारित किया जाता है जो इसके महत्व को दर्शाते हुए इसके प्रचार-प्रसार को सुगम और तेज बनाए। इस बार विश्व हिन्दी दिवस का विषय है ’एकता और सांस्कृतिक गौरव की वैश्विक आवाज’ रखा गया है। जिसका उद्देश्य भाषाई और अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान के लिए हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना है।
हिन्दी को दो तरफा प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ रही है। वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा तो हैं ही, हिन्दी को देश में भी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। रोजनामचा, जमा तलाशी, फौजदारी, दरियाफ्त, मौजा, हुकम, हिकमत, अमली, मुखबिर, मजमून, फिकरा, तहरीर, शहादत… आदि अनेक यैसे शब्द हैं जिसे हिंदुस्तान का ज्यादातर व्यक्ति जानता है, और जीवन में कभी न कभी पुलिस थाना और कचहरी में उसका पाला भी इनसे पड़ता है।
हर रोज हजारों लाखों बार ये शब्द काम में आते हैं। जरूरी नहीं है कि इन शब्दों को हटा दिया जाए या खत्म कर दिया जाए। हिन्दी भाषा के समक्ष आने वाली इन चुनौतियों से हमें निपटना होगा। इसे रोजगार से जोड़ना होगा। हिन्दी यूनेस्को की सात भाषाओं में शामिल है, दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी बड़ी भाषा है जो लगभग दो सौ देशों में बोली या समझी जाती है और ग्लोब के करीब एक अरब लोग हिन्दी बोल या समझ लेते हैं।
डा.कीर्ति बंसल दिल्ली ने कहा आज 10 जनवरी 2025 का यह दिन 1975 में नागपुर, भारत में आयोजित पहले विश्व हिंदी सम्मेलन की ऐतिहासिक घटना की याद दिलाता है, जिसने हिंदी को एक वैश्विक भाषा के रूप में पहचान दिलाने की शुरुआत की। आज हिंदी केवल भारत में नहीं, बल्कि दुनिया भर के कई देशों में बोली, लिखी और समझी जाती है। इंटरनेट, ई-कॉमर्स और तकनीकी क्षेत्र में भी हिंदी का महत्व तेजी से बढ़ रहा है। आज, इस विशेष अवसर पर, हमें यह स्मरण करना चाहिए कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, पहचान और आपसी संवाद का एक सशक्त माध्यम है और हमें हिंदी के प्रसार और उसकी वैश्विक भूमिका को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।
आशुतोष लंदन ने यह कविता पाठ किया ,परदेस में रहकर जब हम, जड़ से कटने लगते हैं, पूरब और पश्चिम में जब, रस्ते बँटने लगते हैं, हिन्दी मिट्टी से जुड़कर, रहने का हुनर देती है, अनजाने देशों में भी, अपना सा वो घर देती है ,गीतकार विजय कुमार सिंह सुनाया – क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ, रुद्ध कंठ है खंडित है स्वर मन ही मन ही घबराऊँ, सुर नर मुनि सब महिमा गाते, गाते सब किन्नर किन्नरियाँ, राग नये दिन रात सजाते, आह्लादित करती हुई ध्वनियाँ, मन के टूटे इन तारों पर कौन सा राग सजाऊँ, क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ।
डा० भावना कुंअर सिडनी का ग़ज़ल पाठ कुछ इस तरह रहा-
कुछ असर ऐसा हुआ उनसे हुई बातों के बाद
बन गए अपने वो हमदम दो मुलाक़ातों के बाद
कवि प्रगीत कुँअर ने आस्ट्रेलिया से यह सुनाया
थक चुका है अब नहीं तू काम कर
मैं दवा देता हूँ तू आराम कर
वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल बघेल मधु कनाडा ने बताया कि
विश्व की मूल भाषा संस्कृत थी और उसी से देश काल पात्रों की आवश्यकता, शरीर तंत्र की अवस्थिति और भौगोलिक व सांस्कृतिक स्थिति के अनुसार हिंदी व अन्य सभी विश्व भाषाओं का आविर्भाव हुआ। आज हिंदी वैज्ञानिक, कम्प्यूटर तकनीक, व्यावहारिक, व्यावसायिक, साहित्यिक और बड़ी जनसंख्या में उपयोग में आने वाली उत्कृष्ट विश्व भाषा बन गई है।
आज हिंदी भाषा और साहित्य का पूरा विश्व प्रयोग कर आनन्द ले रहा है। हिंदी भाषी लोग अब विश्व भर में हैं। अनेक हिंदी बोलने, समझने, लिखने वाले और साहित्य पढ़ने वाले जन समुदाय, होने वाले कार्यक्रमों, विभिन्न पटलों, व्यवहार, आदि को देखकर लगता है कि हिंदी में विश्व समाविष्ट हो गया है।
विजय कुमार सिंह ने अपनी गीत गंगा के माध्यम से हिन्दी की सुचित्रा एवं उपादेयता को स्थापित किया।
सुशील कश्यप चेन्नई से बोल रहे थे ,हिन्दी विश्व की भाषा नहीं बल्कि विश्व की आत्मा है। आज भारत और हिंदी विश्व को एक्जुट करने के लिए कृत संकल्प है। हिंदी 21 सदी की और संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनकर विश्व मे उबरेगी।
संस्था के सचिव अंतरराष्ट्रीय कवि राजीव खण्डेलवाल ने कहा विश्व में हिन्दी को स्थापित करने के लिये हमें भाषाओं को साथ लेकर चलना होगा।
डा० विमल कुमार शर्मा रवींद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय के भू पू कुलपति ने कहा कि हिन्दी दुनिया में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषाओं में से एक है। यह लगभग 60 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा मातृभाषा के रूप में बोली जाती है, और 90 करोड़ से ज्यादा लोग इसे दूसरी भाषा के रूप में उपयोग करते हैं।
हिन्दी को अंतरराष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिलने से इसे संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं (जैसे अंग्रेजी, फ्रेंच, चीनी, अरबी, स्पेनिश और रूसी) में शामिल करने की संभावना बढ़ सकती है। यह भारत के वैश्विक प्रभाव को और मजबूत करेगा।
सभी वक्ताओं के व्याख्यान पर संस्था के प्रवक्ता डा.आर एस तिवारी शिखरेश ने प्रभावी समीक्षा प्रस्तुत करते हुऐ कहा कि हिन्दी का भविष्य उज्जवल है एवं हमें सकारात्मक एवं भाषाई व्यावहारिक दर्शन की अवधारणा से आगे बढ़ना चाहिए, सतत प्रयास ही हमारी मंज़िल की गारंटी है। संस्था के उपाध्यक्ष डा० बलराम गुमास्ता ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुऐ हिन्दी को विश्व मंच पर सार्थक स्थान दिलाने के भारत आस्ट्रेलिया साहित्य सेतु संस्था की हृदय से सराहना की।
आयोजन की सफलता इस बात से समझी जा सकती है कि समय सीमा के समाप्ति के बाद भी देश विदेश के श्रोताओं की सहभागिता बनी रही और अनिल कुमार शर्मा के कुशल संचालन में आयोजन काफी देर तक चलता रहा ।