*मेरी साड़ियां*
मेरे घर के अनगिन बढ़ते बक्सों के बीच
बॉक्स नं 7 मेरा अपना है
मेरा नितांत अपना निजी बक्सा , जिसे खोल कर
साड़ियों को उलटना पलटना हर तीसरे – चौथे महीने की घटना है।
आज फिर खोला मैंने पिटारा
कहीं शिफॉन कहीं बंधेज कहीं चंदेरी है
रंगीन झिलमिल कोमल रेशमी
मेरे कमरे में फैली यह दुनिया मेरी है।
जब खोलो बक्सा, श्रीमान जी जरूर कमरे में चले आते हैं।
‘बाप रे , इतनी साड़ियां!’ ऑंखें फैला कर बुदबुदाते हैं।
क्या करोगी इनका? बस अच्छी अच्छी छांट दो।
बाकी जो नहीं पहनती गरीबों में बाँट दो।
जवाब में यही कहती हूँ, सुनो बाहर जाओ,
पहले ही कम हैं, तुम नज़र मत लगाओ।
वे हंस कर चले जाते हैं, जेंटलमैन जो ठहरे।
पर यह बात लग जाती है भीतर कहीं गहरे।
लाओ देख ही लूँ , क्या पता कुछ निकल आये,
सालों से न पहनी हुई कोई साड़ी किसी गरीब का तन ढकने के काम आये।
देखो तो यह लाल सितारों जड़ी रंगीन बॉर्डर वाली साड़ी ,
पर यह तो माँ ने पहली तीज पर दी थी।
काली सफ़ेद प्योर शिफॉन अपनी पहली salary से ली थी।
यह भारी भरकम बनारसी पहन कर मैं विदा हो ससुराल आयी थी।
और यह हलकी फुल्की लहरिया मैं जोधपुर से लायी थी।
यह पीली माहेश्वरी साड़ी श्रीमान जी खुद पसंद कर महू से लाये थे।
और वो नीली लिनन मेरी पसंद से ऑनलाइन मंगाए थे।
वेलफेयर और लेडीज मीट की साड़ियों का अलग हिसाब है।
सर्दी में सिल्क और गर्मी में शिफॉन का फौजी रुआब है।
एक दो बेकार सी साड़ियाँ हैं, जिन्हे लायी थीं मेरी सहेलियां और बहनें ,
मेरे दिल में बसी हैं ये, चाहे हम इन्हे पहनें या ना पहनें।
सासुमा की दी हुई कई एक हैं, कुछ पसंद कुछ नापसंद, बाँट आउंगी,
पर वो सालों बाद भी पूछ बैठेंगी तो उनका दिल कैसे दुखाऊँगी?
फिर हैं करीब आधा-आधा दर्जन, माँ और सास से उधार ली हुई,
वापस करुँगी सोचा है, पहन पहन कर हैं रखी हुई।
शादी में मिली हुई साड़ियां, जो खास पसंद तो नहीं हैं,
पर कैसे दे दूँ इन्हें , मेरी यादों की पहली कड़ी तो यही हैं।
और कड़ी दर कड़ी ही तो बनती है यादों की लड़ी,
इन पुरानी कड़ियों को कैसे मिटाऊं?
फिर आगे लड़ी कैसे बनेगी,
यही सोच कर रह जाऊं।
मेरी मामूली साड़ियों से किसी की गरीबी क्या ढंकेगी ,
अलबत्ता मैं यादों से गरीब हो जाऊंगी।
खुलता है बक्सा तो दिल को बेहद सुकून मिलता है,
खाली बक्से में यह रेशमी छुअन कैसे पाऊँगी?
कहाँ मिलेगी इतनी नाज़ुक यादों की डोर,
ज़िन्दगी की तपन में वो सूती छाँव कहाँ से लाऊंगी ?
भले ही तुम्हें जगह और पैसे की बर्बादी लगे,
इस बक्से को मेरे कमरे में पड़ा रहने दो,
go green के नारे से परे मेरी साड़ियों
और उनकी यादों को हरा रहने दो।
तुम गरीबों में कुछ और बाँट दो,
मेरे बक्से को ऐसे ही भरा रहने दो
भरा रहने दो ..भरा रहने दो।