कश्मीर में अनुच्छेद 35-ए हटाना आसान ?

कश्मीर में अनुच्छेद 35-ए हटाना आसान ?

इस सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 35-ए को दी गई चुनौती पर सुनवाई हो सकती है। 

जाने क्या है  अनुच्छेद 35-ए  ?
– संविधान में जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा है

– 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में जोड़ा

-अनुच्छेद 370 के अंतर्गत दिया गया ये अधिकार

– स्थानीय नागरिकता को परिभाषित करता है

– जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोग संपत्ति नहीं खरीद सकते

– बाहरी लोग राज्य सरकार की नौकरी नहीं कर सकते

कहा जा रहा है कि भारत प्रशासित कश्मीर के पुलवामा ज़िले में सीआरपीएफ़ के जवानों  पर कायराना हमले और 40 से अधिक जवानों के बलिदान के बाद मोदी सरकार का रुख़ इस अनुच्छेद पर बदल सकता है।

हालांकि इस पर सरकार ने आधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं कहा है।

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कहा है कि अनुच्छेद 35-ए पर सुनवाई में जल्दबाजी नहीं करने का जो उसका रुख़ था उसमें कोई बदलाव नहीं आया है। जम्मू-कश्मीर प्रशासन के प्रवक्ता रोहित कंसल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट इस पर अभी सुनवाई नहीं करे क्योंकि यहां अभी कोई चुनी हुई सरकार नहीं है। वैसे भी वहां चुनी या बिना चुनी सरकार का कोई मतलब नहीं होता है।

35-ए से जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार मिला हुआ है। जम्मू-कश्मीर से बाहर का कोई भी व्यक्ति यहां अचल संपत्ति नहीं ख़रीद सकता है।  इसके साथ ही कोई बाहरी व्यक्ति यहां की महिला से शादी करता है तब भी संपत्ति पर उसका अधिकार नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35-ए के विरुद्ध कई याचिकाएं दाख़िल की गई हैं।

1954 में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आदेश से अनुच्छेद 35-ए को भारतीय संविधान में जोड़ा गया था। ऐसा कश्मीर के महाराजा हरि सिंह और भारत सरकार के बीच हुए समझौते के बाद किया गया था। इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल करने से कश्मीरियों को यह विशेषाधिकार मिला कि बाहरी यहां नहीं बस सकते हैं। लेकिन इसमें ये भी तो कही नहीं लिखा कि वह के कुछ गुण्डे मवाली किसी विशेष धर्म के लोगो को वह से रातो रात वह से पलायन को बाध्य कर दें। ऐसा कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ हो चुका है। वहां धर्म के नाम पर हो रहे अत्याचार रोकने है तो ३५ए हटानी ही होगी।

भारत और मानवता के हित में 35ए हटाने का ये उचित समय है।

राष्ट्रपति ने यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 370 (1) (d) के अंतर्गत दिया था।  इसके अंतर्गत राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर के हित में कुछ ख़ास ‘अपवादों और परिवर्तनों’ को लेकर फ़ैसला ले सकते हैं।  इसीलिए बाद में अनुच्छेद 35-ए जोडा गया ताकि स्थायी निवासी को लेकर भारत सरकार जम्मू-कश्मीर के अनुरूप ही व्यवहार करे। लेकिन अब इसे हटाने का ये उचित समय है। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत और मानवता के हित में 35ए हटाने का ये उचित समय है।

जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय पाकिस्तान ने किया धोखा

भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय में ‘द इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ को क़ानूनी दस्तावेज़ माना जाता है।  तीन जून, 1947 को भारत के विभाजन की घोषणा के बाद राजे-रजवाड़ों के नियंत्रण वाले राज्य निर्णय ले रहे थे कि उन्हें किसके साथ जाना है उस वक़्त जम्मू-कश्मीर दुविधा में था।  12 अगस्त 1947 को जम्मू-कश्मीर महाराज हरि सिंह ने भारत और पाकिस्तान के साथ ‘स्टैंड्सस्टिल अग्रीमेंट’ पर हस्ताक्षर किया। स्टैंड्सस्टिल अग्रीमेंट मतलब महाराजा हरि सिंह ने निर्णय किया जम्मू-कश्मीर स्वतंत्र रहेगा। वो न भारत में समाहित होगा और न ही पाकिस्तान में। यही से राजा हरी सिंह ने विवाद के नए बीज बो दिए थे।  भारत ने तो अपने चरित्र के अनुसार मान लिया लेकिन पाकिस्तान ने इस समझौते को मानने के बाद भी इसका सम्मान नहीं किया और उसने कश्मीर पर हमला कर दिया। पाकिस्तान में बलपूर्वक शामिल किए जाने से बचने के लिए महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर किया।

‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा होगा लेकिन उसे ख़ास स्वायत्तता मिलेगी। इसमें साफ़ कहा गया है कि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर के लिए केवल रक्षा, विदेशी मामलों और संचार माध्यमों को लेकर ही नियम बना सकती है।

अनुच्छेद 35-ए 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के बाद आया।  यह ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ की अगली कड़ी थी।  ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ के कारण भारत सरकार को जम्मू-कश्मीर में किसी भी तरह के हस्तक्षेप के लिए बहुत ही सीमित अधिकार मिले थे। ये तत्कालीन राजनेताओं के उदारवादिता का परिणाम था जो आज तक कष्टकारी बना हुआ है।

अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर को विेशेष राज्य का दर्जा दिया गया। इसमें कहा गया है कि संसद के पास जम्मू-कश्मीर के लिए संघीय सूची और समवर्ती सूची के तहत क़ानून बनाने के सीमित अधिकार हैं। अर्थात कश्मीरियों की रक्षा भारत के लोग टैक्स देकर करेंगे। अपनी सेना का व्यय करेगे, लेकिन वहाँ संपत्ति नहीं क्रय कर सकते। ये भी भारतीयों के साथ किसी अन्याय से काम नहीं है। भारत को एकता के सूत्र में बांधने के लिए भी अनुच्छेद 370 को तुरंत हटा देना चाहिए।

ज़मीन, भूमि पर अधिकार और राज्य में बसने के मामले सबसे महत्वपूर्ण हैं।  भूमि जम्मू-कश्मीर का विषय है। अनुच्छेद 35-ए भारत सरकार के लिए जम्मू-कश्मीर में सशर्त हस्तक्षेप करने का एकमात्र साधन है। इसके साथ ही यह भी साफ़ कहा गया है कि संसद और संविधान की सामान्य शक्तियां जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होंगी। इस कारण कुछ कश्मीरी तो अपने आपको भारतीय कहने में हिचकते है। इसका भरपूर लाभ वह के अलगाववादी नेता उठाते है। स्थानीय लोगो को भड़कते रहते रहते है।

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी है क़ानून 

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी क़ानून है कि कोई बाहरी व्यक्ति यहां सीमित ज़मीन ही ख़रीद सकता है। एक सीमा से अधिक सम्पत्ति हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी कोई बाहरी व्यक्ति नहीं खरीद सकता। हमारा मानना हैं कि हिमाचल और उत्तराखंड के ये क़ानून भी पूरी तरह से देश के किसी भी हिस्से में बसने के मौलिक अधिकार का हनन ही है।

अनुच्छेद 35-ए को संविधान में ग़लत तरीक़े से जोड़ा गया?

कई लोग मानते हैं कि अनुच्छेद 35-ए को संविधान में जिस तरह से जोड़ा गया वो प्रक्रिया के अंतर्गत नहीं था। बीजेपी से पहले जनसंघ का तो सबसे पहले यही कहना था कि एक राष्ट्र भारत का एक निशान हो। अटलजी और उनके साथी ऐसा ही मानते थे। संविधान में अनुच्छेद 35-ए को जोड़ने के लिए संसद से क़ानून पास कर संविधान संशोधन नहीं किया गया था। इसलिए इसे अब अविलम्ब हटाने का समय आगया है।

संविधान के अनुच्छेद 368 (i) अनुसार संविधान संशोधन का अधिकार केवल संसद को है। तो क्या राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का यह आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर का था? कुछ लोग मानते हैं कि राष्ट्रपति का यह फ़ैसला विवादित था।

तो क्या अनुच्छेद 35-ए निरस्त किया जा सकता है क्योंकि नेहरू सरकार ने संसद के अधिकारों की उपेक्षा की थी? 1961 में पांच जजों की बेंच ने पुरनलाल लखनपाल बनाम भारत के राष्ट्रपति मामले में अनुच्छेद 370 के अंतर्गत राष्ट्रपति के अधिकारों पर चर्चा की थी। कोर्ट का आकलन था कि राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 के तहत उसके प्रवाधानों में परिवर्तन कर सकता है। हालांकि इस फ़ैसले में इस पर कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा गया है कि क्या राष्ट्रपति संसद को बाइपास कर ऐसा कर सकता है। यह प्रश्न आज भी वैसा ही बना हुआ है। चाहे संसद से कानून पास हो या राष्ट्रपति द्वारा किया जाए। लेकिन समाधान तुरंत हो। आज अनुच्छेद 35-ए का निरस्त किया जाना नितांत आवश्यक है। अब तुरंत समाधान हो जाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां निर्विवाद भारत में सुख चैन से रह सकें।

विचारक
श्री गुरुजी भू
मुस्कान योग के प्रणेता,
प्रकृति प्रेमी, विश्व चिंतक,
बहुविध-बहुआयामी शोधार्थी

 

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