महिलाओं के सुरक्षा की मांग हुई बुलंद 

पटना: सहयोगी के द्वारा 8 वर्ष पूर्व हुए ज्योति सिंह ( निर्भया की घटना ) को याद करते हुए ऐसी होने वाली सभी घटनाओं के खिलाफ आवाज बुलन्द किया गया।

अलग-अलग गांवों से महिलाओं और किशोरियों ने बैनर, सेल्फी एवं सन्देश के माध्यम से महिला सुरक्षा के सवाल पर आपनी आवाज बुलंद की।

गाँव हो या शहर, चौपाल हो या डगर, रात हो या दिन, भीड़ भरी सड़के हो या सुनसान रास्ता, एक महिला बेख़ौफ़ कही आ जा सके ये मांग रखा किशोरियों एवं महिलाओं ने

16 दिसम्बर, 2012 को दिल्ली में 23 वर्षीया निर्भया के साथ चलती हुई बस में सामूहिक बलात्कार और हत्या करने की कोशिश की क्रूरतापूर्ण घटना हुई थी,

आज उस घता के 08 वर्ष हो चुके हैं लेकिन दावे से यह नहीं कहा जा सकता है कि वो घटना आज भी दुहराई नहीं जा सकती.

एक संवेदनशील समाज कि पहचान है कि कोई दुर्घटना हो तो जो कि समाज और न्यायिक व्यवस्था के विरुद्ध हो या फिर उस समाज में रह रहे लोगों को किसी भी तरह से हानि पहुंचाता हो तो उसे दुहराया न जा सके इसकी पूर्ण व्यवस्था की जाये.

लेकिन 08 वर्षों के उपरांत भी यह नहीं किया जा सका है इसलिए यह जरुरी है कि महिला सुरक्षा की मांग को पुरजोर तरीके से उठाया जाय.

यद्यपि सरकार के द्वारा इस की घटना  के बाद लड़कियों-महिलाओं को सुरक्षित करने के उद्देश्य से ‘निर्भया कोष’ भी बनाया गया है, साथ ही सम्बद्ध कानून में भी बदलाव लाया गया है,

परन्तु इस कोष में उपलब्ध राशि का अभी भी सही उपयोग नहीं हो सका है। आवश्यकता है कि सभी लोगों में महिलाओं के प्रति हो रहे भेदभाव और हिंसा के विषय में जागरूकता हो और इसे रोकने में उनका पूर्ण सहयोग हो।

तो यह कोशिश है समाज और सरकार दोनों का इस मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करने का ताकि महिलाओं को भी पूर्ण बराबरी के साथ सुरक्षा मिल सके.

सहयोगी की निदेशिका रजनी ने कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़े महिला सशक्तिकरण के दिशा में कुछ उत्साहजनक जरुर हैं

लेकिन इसके व्यवहारिक मायने तभी होंगे जब महिलाएं एवं किशोरियां अपने आप को सुरक्षित महसूस करें. राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ्य सर्वेक्षण के हालिया आंकड़े दिखाते हैं कि पति द्वारा किये जाने वाले हिंसा में कमी आई है

जो पिछले 5 वर्षों में 43.7 से घटकर 40 प्रतिशत हुई है साथ ही 18-29 वर्ष आयु समूह की महिलाएं या किशोरियां जो १८ वर्ष उम्र पूर्ण करने तक यौनिक हिंसा की शिकार होती थीं उनका प्रतिशत भी 14.2 से घटकर 8.3 हुआ है.

लेकिन आज भी महिलाएं एवं किशोरियां सुरक्षित एवं आजाद महसूस नहीं कर रही हैं. इसके लिए समाज और सरकार दोनों के स्तर पर प्रयास की आवश्यकता है.

महिलाओं एवं किशोरियों के सुरक्षा की मांग को उठाने वालों में उनके साथ पुरुष एवं युवा भी शामिल हुए.

सहयोगी की कार्यक्रम समन्वयक उन्नति ने बताया कि सहयोगी अपने सभी अभियान एवं कार्यक्रमों में पुरुषों को शामिल करने की रणनीति के साथ काम करना रही है.

क्योंकि बिना उनके भागीदारी के यह संभव नहीं हो पायेगा क्योंकि एक तरफ सरकार अपनी भूमिका का निर्वहन करे और दूसरी ओर समाज.

लेकिन परिवर्तन जहाँ होना है वह है पुरुषों का व्यवहार. इसलिए पूरी प्रक्रिया में उनका शामिल होना आवश्यक है.

राजू पाल ने कहा कि एक बेहतर समाज निर्माण के लिए यह जरुरी है कि हर व्यक्ति अपने आप को सुरक्षित महसूस करे.

जेंडर के आधार पर होने वाली हिंसा किसी भी समाज में अस्वीकार्य होनी चाहिए. जब समाज में इसके प्रति अस्वीकार्यता आ जाएगी तभी यह रुकेगा.

तक़रीबन 300 लोगों ने अलग-अलग गाँव, बस्ती एवं मुहल्ले से इसमें भाग लेकर अभियान को अपना समर्थन दिया.

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